दफ्तर दरबारी: मैदान में असहाय, मंच से स्‍वार्थ सुविधा साध रहे हैं अफसर

सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा डिंडौरी में खाद्य अधिकारी को हटाने के निर्देश वाला वीडियो ट्वीट हुआ तो जनता सबूतों के साथ मैदान में आ गई.. जनता लापरवाहियों का खुलासा कर मानो मुखिया को चुनौती दे रही है कि ताली के लिए ख़ाली आश्वासन से काम नहीं चलेगा

Updated: Sep 24, 2022, 10:27 AM IST

भला ये शेर किसी पर रहम खानेवाला है, लगता है जंगल में चुनाव आनेवाला है।

आजकल मध्‍य प्रदेश में मुखिया के तेवर देख कर प्रख्‍यात कवि अशोक चक्रधर की यही पंक्तियां याद आती हैं। सभी जानते हैं कि 2023 में विधानसभा चुनाव होना है। जनता के बीच नाराजगी की शिकायतें भोपाल और दिल्‍ली तक पहुंच चुकी है। ऐसे में जनता की पीड़ा सुनने के लिए सरकार मैदान में हैं और जनता के बीच ही न्‍याय हो रहा है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के डिंडौरी में आयोजित जनसेवा शिविर में ऐसा ही नजारा दिखाई दिया। हद तो तब हो गई जब मैदान में असहाय कलेक्‍टर ने स्‍वार्थ सुविधा साध ली। सांप भी मर गया और लाठी भी न टूटी की तर्ज पर खुद कार्रवाई से बच गए तथा जिससे परेशान थे वह मातहत अधिकारी सस्‍पेंड हो गया।  

हुआ यूं कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनसेवा शिविर के लिए डिंडौरी पहुंचे थे। जैसा कि वे इनदिनों अपने आयोजनों में कर रहे हैं मंच से ही उन्‍होंने जनता से उज्‍जवला योजना की फीडबैक ले लिया। सीएम चौहान ने जनता से पूछा गैस एजेंसी वाला पैसा लेता है, जवाब मिला हां। कलेक्‍टर रत्नाकर झा और जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी टीआर अहिरवार को बुलाकर जब उज्जवला योजना की प्रगति के बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि जनवरी में जिले में 70 हजार लोगों को उज्ज्वला योजना का लाभ देने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें अभी तक केवल 22 हजार लोगों को ही लाभ मिला है। 

इस लापरवाही पर सीएम चौहान ने डीएसओ टीआर अहिरवार को मंच से ही फटकार लगाते हुए कहा कि आपको निलंबित कर रहे हैं, आप जाओ। जैसे ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिला खाद्य अधिकारी को सस्‍पेंड करने की घोषणा की जनता तालियां बजाने लगी। इस घोषणा के वीडियो में देखा जा सकता है कि मैदान में कार्रवाई नहीं करने वाले कलेक्‍टर रत्‍नाकर झा कानाफुसी कर रहे हैं कि अहिरवार लापरवाह अफसर है। कलेक्‍टर कहना चाह रहे थे कि मैं तो कार्रवाई कर नहीं पाया, अच्‍छा हुआ सीएम ने सस्‍पेंड कर दिया। इस तरह जनता के साथ कलेक्‍टर साहब भी खुश हो गए। उनकी खुशी दोहरी थी। मंच से केवल फटकार मिली। खुद तो किसी कार्रवाई से बच गए परेशानी का कारण बना जिला आपूर्ति अधिकारी सस्‍पेंड भी हो गया। 

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसके पहले भी उमरिया और सौंसर में मंच से अफसरों को फटकार चुके हैं। झाबुआ  कलेक्‍टर को हटा चुके हैं और एसपी को सस्‍पेंड चुके हैं। ऐसी कार्रवाई कोई नई बात नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव और उसके पहले भी चुनावों के पहले मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मैदान में ऐसी लोकलुभावन कार्रवाइयां करते रहे हैं। जनता खुश हो जाती है कि उनकी सुनवाई नहीं करने वाले अफसरों को सीएम खुलेआम सजा दे रहे हैं। 

मगर, ऐसी कार्रवाइयों से कुछ सवाल पैदा हो रहे हैं। पहला तो यह कि बार-बार की हिदायतों के बाद मैदान में अफसर क्‍या कर रहे हैं? जब मातहत की लापरवाहियों से कलेक्‍टर रत्‍नाकर झा परेशान थे तो उन्‍होंने कार्रवाई क्‍यों नहीं की? क्‍या उन पर कोई दबाव था और यदि दबाव था तो उन्‍होंने अपने वरिष्‍ठ अधिकारियों को बताया क्‍यों नहीं? 

दूसरा सवाल यह है कि मुख्‍य सचिव से लेकर संभागायुक्‍त तक ब्‍यूरोक्रेसी की एक पूरी शृंखला है जिस पर सरकार के कामों का क्रियान्‍वयन करने की जिम्‍मेदारी है। तो ये सारे अफसर भी काम नहीं कर रहे हैं तभी तो मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद मैदान में अफसरों पर कार्रवाई करनी पड़ रही है? 

और सबसे बड़ा सवाल यह कि खुद मुख्‍यमंत्री ने रोज सुबह समीक्षा बैठक शुरू की हैं जिसमें जिला कलेक्‍टरों से कामकाज का आकलन किया जाता है। इस समीक्षा बैठक में भी अफसरों को टारगेट दिए जाते हैं, फटकार पड़ती है। क्‍या ये सारी बैठकें भी निरर्थक हैं? जब फैसले मैदान में और मंच से ही होने हैं तो फिर इन बैठकों का औचित्‍य क्‍या है? 

अफसरों को हटवाने के लिए जनता मैदान में 

डिंडौरी में डीएसओ पर कार्रवाई के पहले मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने झाबुआ में कड़ा एक्‍शन लिया। आदिवासी बच्‍चों से अपशब्‍दों में बात करने पर उन्‍होंने एसपी अरविंद तिवारी को हटाया फिर ऑडियो जांच के बाद एसपी को सस्‍पेंड कर दिया। इतना ही नहीं अगले ही दिन कलेक्‍टर सोमेश मिश्रा को हटा दिया। बताया गया कि झाबुआ में बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी की शिकायतें आ रही थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब पेटलावद दौरे पर गए थे उस समय उन्हें कलेक्टर की शिकायतें मिली थी। 

एसपी को सस्‍पेंड किए जाने का कारण तो सहज ही पता चल गया कि आदिवासियों को ल़ुभाने का जतन कर रही बीजेपी और शिवराज सरकार के लिए यह एक संदेश देने का मौका था। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने झाबुआ से जरिए पूरे आदिवासी वोट बैंक को संदेश दिया कि सरकार उनके मुद्दे को लेकर संवेदनशील है। मगर आईएएस सोमेश मिश्रा को हटाना गले नहीं उतर रहा है। आईएएस मिश्रा उत्तराखंड के बड़े बीजेपी नेता मदन मोहन कौशिक के दामाद हैं। पड़ताल की जा रही है कि आमतौर पर नेताओं के रिश्‍तेदार अफसरों की गलतियों को नजरअंदाज करने वाले सीएम चौहान ने मदन मोहन कौशिक के दामाद को आनन फानन में क्‍यों हटाया?

यह भी पढ़ें दफ्तर दरबारी: बीजेपी की राजनीति में एसपी कलेक्‍टर की दुर्गति, जनता बोली लाचार हैं अफसर

इस निर्णय की राजनीति अपनी जगह लेकिन ज्‍यों ही मुख्‍यमंत्री चौहान ने कलेक्‍टर को हटाने निर्णय लिया जनता मैदान में आ गई। उमरिया के कलेक्‍टर का एक वीडियो वायरल हो गया है। इस वीडियो में कलेक्टर, प्रदर्शनकारी महिला को दुत्कार कर भगाते हुए दिखाई दे रहे हैं। 

उमरिया जिले के चंदिया रेलवे स्टेशन परिसर मे 80 गांव के लगभग 15 हजार ग्रामीणों द्वारा प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुई। इन्हीं में से एक प्रदर्शनकारी महिला शोर-शराबे के बीच अपनी समस्याओं को कलेक्टर के सामने रख रही थी। इसी दौरान कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने प्रदर्शनकारी महिला से कहा कि आपने धारा 144 का उल्लंघन किया है। महिला ने वापस जाने से इनकार कर दिया। महिला ने कहा कि यदि आप कुछ नहीं कर रहे थे संबंधित अधिकारी को बुलाओ। यह सुनते ही कलेक्टर भड़क उठे। उन्होंने कहा कि अधिकारी नहीं आएगा जो करना है करो। उन्होंने मौजूद पुलिस अधिकारियों को कहा कि दूर करो इसे। जब कलेक्‍टर उखड़े तो घटना को रिकार्ड कर रहे पुलिस अधीक्षक प्रमोद सिन्हा ने वीडियो रिकॉर्डिंग बंद कर दी।

इस वीडियो वायरल करते हुए लोगों ने मांग रखी कि ऐसे अफसरों को भी हटाओ। इतना ही नहीं जब डिंडौरी में खाद्य अधिकारी को हटाने के निर्देश वाला वीडियो जनसंपर्क विभाग से ट्वीट हुआ तो सवाल हुआ क्‍या कि इस लापरवाही के लिए कलेक्‍टर जिम्‍मेदार नहीं है, उस पर कार्रवाई क्‍यों नहीं? पूछा गया कि छोटे कर्मचारियों को ही दंड क्‍यों? सड़क बह जाने, काम के लिए पैसे मांगे जाने की शिकायतें ट्वीट कर अधिकारियों को हटवाने के लिए जनता मैदान में आ गई है। जनता लापरवाहियों का खुलासा कर मानो मुखिया को चुनौती दे रही है कि इन्‍हें भी हटाने और सस्‍पेंड करने का निर्णय लीजिए। 

पार्टनर, तुम्‍हारी पॉलिटिक्‍स क्‍या है? 

हिंदी के प्रख्‍यात कवि गजानन माधव मुक्तिबोध अकसर सवाल के रूप में एक जुमला कहा करते थे, पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है? मुक्तिबोध का यह सवाल मध्‍य प्रदेश में एक पूर्व आईएएस की गति‍विधियों के कारण मौजूं हो गया है। 

दो दशक तक राज्‍य प्रशासनिक सेवा की नौकरी करने वाले वरदमूर्ति मिश्रा ने जब आईएएस अवार्ड होने के दो माह ही नौकरी छोड़ दी थी तब ही शक हुआ था वे राजनीति में आएंगे। लेकिन नगरीय निकाय चुनाव के बाद भी राजनीतिक दलों ने उनको तवज्‍जो नहीं दी तो वे तीसरा मोर्चा बनाने का संकल्‍प लेकर मैदान में उतर आए हैं। 

पूर्व आईएएस वरदमूर्ति मिश्रा मध्य प्रदेश में तीसरी शक्ति बनने का सपना देख रहे हैं। राजनीतिक दल बनाने की घोषणा करते हुए उन्‍होंने भोपाल में पत्रकारों से कहा था कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने जनता से धोखा किया है। अब इंदौर प्रेस क्लब में मीडिया से रूबरू होते हुए उन्होंने कहा कि वे अक्टूबर में नई पार्टी की घोषणा करेंगे। उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में सभी 230 सीटों पर अपने प्रत्याशी को उतारेगी।

यह भी पढ़ें  दफ्तर दरबारी: किसके वादे पर मारा गया मध्‍यप्रदेश का यह आईएएस

उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी के पास कोई विशेष अधिकार, शक्तियां नहीं बची। सारी शक्तियां राजनीति में आ गई है। आज ब्यूरोक्रेसी पर बहुत ज्यादा राजनीतिक दबाव है। उन्होंने ये भी दावा किया कि कई प्रशासनिक अधिकारी उनके साथ जुड़ने को तैयार हैं। 

पूर्व आईएएस वरदमूर्ति मिश्रा की बातें अच्‍छी सुनाई देती है मगर जब हकीकत की तराजू पर तोलें तो ये ख्‍याल ही ज्‍यादा साबित होता है। सपा, बसपा, गोंगपा, आम आदमी पार्टी यहां तक कि सपाक्‍स जैसे संगठन भी अपनी ताकत को प्रदेश व्‍यापी नहीं बना सके हैं। ऐसे में अकेले वरदमूर्ति मिश्रा का दल कैसे कमाल दिखा पाएगा, समझा जा सकता है। राजनीति में रूचि रखने वाले अफसर भी रिटायर्ड होने के बाद किसी न किसी दल के साथ आस्‍था जता चुके हैं। ऐसे में सवाल यही है कि वरदमूर्ति मिश्रा की पॉलिटिक्‍स आखिर है क्‍या? क्‍या उन्‍होंने किसी राजनेता के वादे पर भरोसा कर नौकरी छोड़ी थी और राजनीति में छले जाने के बाद वे बदले की राजनीति करना चाहते हैं? वे किस दल का सहयोग कर किसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं? कुछ दिनों में यह भी साफ हो ही जाएगा।  

पुलिस परिवारों का ‘गरबा ट्रीटमेंट’

आम दिन हों या त्‍योहार का मौका, पुलिसकर्मी हमेशा ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। कर्मचारियों की कमी और कार्य का बोझ पुलिसकर्मियों को बीमारियां दे रहा है। कई अध्‍ययनों में पता चला है कि कार्य के दबाव के चलते पुलिस कर्मचारी तनाव का शिकार हो रहे हैं। मानसिक बीमारियों ने पुलिस कर्मचारियों को ही नहीं, उनके परिवारों पर भी असर डाला है। पुलिस कर्मचारियों के दबाव को कम करने के लिए साप्‍ताहिक छुट्टी सहित तरह तरह के कदम उठाए जाते रहे हैं, हालांकि निरंतरता एक बड़ा सवाल है। 

ऐसे ही कदमों की श्रेणी में है ‘गरबा ट्रीटमेंट’। डीजीपी के रूप में आईपीएस सुधीर सक्‍सेना की आमद के बाद पुलिस परिवारों के लिए सामूहिक आयोजन का एक कदम उठाया जा रहा है। नेहरू नगर पुलिस लाइन में इस बार गरबा आयोजन की तैयारी है। पुलिसकर्मियों के परिजनों के लिए पहले गरबा सहित अन्‍य आयोजन होते थे लेकिन लंबे समय से गरबा आयोजन बंद है।

यह भी पढ़ें ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के प्रिय अफसर को हटाने की साजिश किसने की

जब कोरोना महामारी से निपटने के बाद इस वर्ष जब सार्वजनिक गरबा उत्‍सव उसी धूम के साथ शुरू हो  रहे हैं तो आईपीएस वाइव्‍स एसोसिएशन ने भी पुलिस परिवारों के लिए गरबा आयोजन का निर्णय लिया है। यह पहल डीजीपी सुधीर सक्‍सेना की पत्‍नी ने की है। आमतौर पर सावर्जनिक कार्यक्रमों से दूर रहने वाली श्रीमती सक्‍सेना भी बिना में प्रचार में रहे इस परंपरा को शुरू करवा रही है। इस पहल के पीछे उद्देश्‍य है कि पुलिस परिवार सामूहिक कार्यक्रम में शिरकत करें, उनमें उत्‍सवधर्मिता हो ताकि उनके तनाव कम हो सकें।