दफ्तर दरबारी: किसके वादे पर मारा गया मध्‍यप्रदेश का यह आईएएस 

आईएएस वरदमूर्ति मिश्रा की चर्चा आते ही गाना याद आता है ... वादे पे मारा गया बंदा सीधा साधा। किसके वाद पर मारा गया यह आईएएस और क्‍यों एमपी के आईएएस को प्रताड़ना अधिकारी कहा जाने लगा है, जानिए इस बार दफ्तर दरबारी में।

Updated: Aug 06, 2022, 05:22 AM IST

आईएएस वरद मूर्ति मिश्रा
आईएएस वरद मूर्ति मिश्रा

आपको वो गाना याद होगा... वादा तेरा वादा, तेरे वादे पे मारा गया बंदा मैं सीधा साधा। मध्‍य प्रदेश के आईएएस वरदमूर्ति मिश्रा को लेकर आजकल यही कहा जा रहा है। मध्‍य प्रदेश राज्‍य सेवा के अफसर वरदमूर्ति मिश्रा ने जब कुल जमा दो माह आईएएस रह कर वीआरएस मांग लिया था तो सबको अचरज हुआ था। आईएएस बनने के लिए युवा रातदिन एक कर देते हैं, फिर भी सपना पूरा नहीं होता है। 1996 में राज्‍य प्रशासनिक सेवा में आए वरदमूर्ति मिश्रा को प्रमोशन के लिए करीब ढ़ाई दशक इंतजार करना पड़ा। 

इसलिए जब उन्‍होंने पद छोड़ा तो कयास लगाए गए कि उनकी कोई तगड़ी जुगाड़ हुई है। माना गया कि किसी राजनेता ने उन्‍हें राजनीति में उतारने का वादा कर लिया है। नगरीय निकाय चुनाव में जब उन्‍हें प्रत्‍याशी के रूप में नहीं पाया गया तो सोचा गया कि वे विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। 

लेकिन ये क्‍या, चुनाव के साल भर पहले वरद मूर्ति मिश्रा ने नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। यह घोषणा करते समय उन्‍होंने कांग्रेस और बीजेपी सरकारों को जमकर कोसा। नई पार्टी क्‍यों बनाई इस की पड़ताल के जवाब में इस आकलन में दम है कि उनके साथ राजनीति हो गई है। किसी के वादे पर ऐतबार कर उन्होंने आईएएस की नौकरी गंवाई और टिकट मिलने की संभावना जाती रही। अब वे नया दल बना कर अपनी नई जुगत जमाने की कोशिश कर रहे हैं। 

ऐसा नहीं है कि राजनीति ने ही उन्‍हें झटका दिया है। उनके अपनी बिरादी ने भी उन्हें सही सलाह नहीं दी। वीआरएस लेते समय वरदमूर्ति मिश्रा ने वेतन के तीन लाख रुपए भी जमा करवा दिए। सामान्‍य प्रशासन विभाग ने पैसे रख भी लिए। किसी ने उन्‍हें नहीं बताया कि आईएएस को तीन माह का वेतन जमा नहीं करवाना पड़ता है। यह नियम तो राज्य प्रशासनिक अफसरों के लिए ही है। यानि, राजनीति तो ठीक अपनों ने भी बंदे को चपत लगा दी। 

इस सबसे उबरने के लिए वरदमूर्ति मिश्रा ने नई पार्टी का एलान तो कर दिया है मगर इसकी राह कितन कठिन है, यह वे खुद भी जानते होंगे। पिछले चुनाव में रिटायर्ड आईएएस हीरालाल त्रिवेदी की पार्टी सपाक्‍स का हश्र सभी जानते हैं। आरक्षण का विरोध करते हुए राजनीति में आई इस पार्टी को जनता से अधिक महत्‍व नहीं दिया। जबकि उन्‍हें सवर्ण वोट मिलने की बड़ी उम्‍मीद थी। इस परिणाम का आकलन कर हो सकता है वरदमूर्ति मिश्रा भी किसी तीसरे दल का दामन थाम लें। 

राजन‍ीति में आने का सपना देख रहे वर्तमान तथा पूर्व अफसर पड़ताल करने में जुटे हैं कि आईएएस वरद मूर्ति मिश्रा से किसने वादा खिलाफी की है। ताकि वे भी सतर्क रहें। ऐसा न हो कि उनकी गिनती भी दूध के जलो में हो। 

मध्‍य प्रदेश में आईएएस मतलब प्रताड़ना अधिकारी 

मध्यप्रदेश में इन दिनों आईएएस अफसरों को प्रताड़ना अधिकारी की संज्ञा दी जाने लगी है। इसके कारण हालिया मामले हैं। बीते दिनों राज्य औद्योगिक विकास निगम की प्रबंधक रानी शर्मा ने भोपाल में अपने अपार्टमेंट की पांचवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। उनके पिता वेदराम शर्मा ने आरोप लगाया कि बेटी ने सीनियर आईएएस की प्रताड़ना से तंग आ कर जान दी है। 

रानी को एक साल पहले नौकरी मिली थी। पिता वेदराम शर्मा ने कहा कि मेरी बेटी एक महीने से उदास थी। विभाग के वरिष्ठ अधिकारी व उनके सहायक अधिकारी परेशान कर रहे थे। नौकरी से निकालने की धमकी दी गई थी। त्महत्या के बाद भी पुलिस सहयोग नहीं कर रही है। 

दूसरी तरफ, वन विहार भोपाल के डिप्टी डायरेक्टर वरिष्‍ठ आईएएस पर प्रताड़ना का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि रिटायरमेंट के 6 महीने पहले उनका तबादला मंडला कर दिया गया क्योंकि एक आईएस उनसे नाराज हो गए थे। 

चर्चा है कि मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अफसर के मेहमान को वन विहार में नियम तोड़ कर सफारी नहीं करवाना डिप्टी डायरेक्टर को भारी पड़ा जबकि वे नियम विरूद्ध अफसर के अतिथि को वन विहार की सैर करवा चुके थे। वे सफारी करवाते और शिकायत होती तो सस्‍पेंड हो जाते। इस डर से नियम तोड़ने से इनकार किया तो 1 घंटे में डिप्टी डायरेक्टर का तबादला भोपाल से मंडला कर दिया गया। जब तक उन्होंने यह बताया कि उनका रिटायरमेंट होने वाला है, नियमानुसार ट्रांसफर नहीं हो सकता तब तक उन्हें रिलीव किया जा चुका था। यह आरोप कितना सही कितना गलत यह तो वे जाने मगर आईएएस अफसर की प्रताड़ना का एक केस चर्चा में तो आ गया।  

ऐसा नहीं है कि आईएएस अफसर छोटे कर्मचारियों को ही प्रताड़ित करते हैं। उन पर अपनी बिरादरी के अफसरों ने भी परेशान करने का आरोप लगाया है। एक युवा महिला आईएएस की अपने सीनियर आईएएस पर प्रताड़ना वाली सोशल मीडिया पोस्ट लोग भूले नहीं हैं। इस तेजतर्रार युवा महिला आईएएस ने भ्रष्‍टाचार के एक मामले की जांच की थी। कहा जाता है कि इस जांच से उच्‍च अधिकारी के हित प्रभावित हो रहे थे। फिर क्‍या था, उन्‍हें पद से हटाया, बेकाम का पद दिया, गाड़ी भी छीन ली। महिला आईएएस ग्रुप में सहायता मांगी तो किसी ने पोस्‍ट वायरल कर दी। प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि किसी जहर से कोई बच सकता है मगर आईएएस का काटा पानी भी नहीं मांगता है। 

कलेक्टर हैं या पॉलीटिकल एजेंट 

पंचायत चुनाव में प्रदेश के कई कलेक्टरों पर बीजेपी समर्थक प्रत्याशियों का खुल कर साथ देने के आरोप लगे हैं। कांग्रेस सहित कई निर्दलियों ने आरोप लगाए हैं कि कलेक्‍टरों ने हार रहे उम्‍मीदवारों को जीता कर पार्टी विशेष के प्रति निष्‍ठा साबित की है। ये आरोप राजनीतिक ही होते यदि हाईकोर्ट ने यह न कह दिया होता कि पन्ना कलेक्टर सत्ताधारी दल के एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने पन्ना के जिला कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा को फटकार लगाते हुए कहा कि वह राजनीतिक एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। असल में, कलेक्टर मिश्रा ने बीजेपी समर्थित पराजित प्रत्याशी को विजयी घोषित कर सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया था। इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उच्च न्यायालय ने कलेक्टर को उनके पद के लिए अनुपयुक्त बताते हुए नोटिस जारी किया है। 

इस फटकार के बाद कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को यह कहने का मौका मिल गया कि अधिकारियों ने निकाय चुनाव में कठपुतली की तरह काम किया है। कलेक्‍टर की इस चूक पर वरिष्ठ अफसरों की प्रतिक्रिया है कि कोर्ट की ऐसी टिप्‍पणियां कॅरियर के लिए ठीक नहीं है। नए-नए कलेक्टर बने अधिकारियों को अपने उत्साह पर काबू रख संयम से काम करना चाहिए अन्यथा ऐसे एकतरफा रुझान दिखाया और मुसीबत बड़ी तो कोई बचाने नहीं आता है। 

सरकार ने खुद क्यों लीक किया प्रपोजल 

कर्मचारी नाराज हैं, हुजूर। मध्‍य प्रदेश के राजनीति और प्रशासनिक गलियारों में सरकार के हितैषाी यही दोहरा रहे हैं। वे याद दिला रहे हैं कि 2018 में कर्मचारियों ने साथ नहीं दिया था तो सरकार चली गई थी। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के परिणाम के बाद तो यह चिंता और बढ़ गई है। यही कारण है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ताबड़तोड़ महंगाई भत्‍ता बढ़ाने की घोषणा की। साथ ही एक प्रपोजल चर्चा में आ गया। कहते हैं, सरकार ने खुद यह प्रपोजल लीक किया है। 

यह प्रस्‍ताव कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण को लेकर नए नियम का है। तय किया गया है कि आरक्षित वर्ग के पदों के लिए यदि कर्मचारी उपलब्ध नहीं होते हैं तो ये पद रिक्त ही रखे जाएंगे। सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को इन पदों पर प्रमोशन नहीं मिलेगा। सामान्‍य वर्ग कर्मचारी इस प्रस्‍ताव का विरोध कर रहे हैं। 

सरकार का काम हो चुका है। प्रपोजल लीक कर चेक कर रही थी कि इस प्रस्ताव पर कर्मचारी संगठनों की क्या प्रतिक्रिया होती है। अब तक की प्रतिक्रियाओं में सवर्ण कर्मचारी संगठनों ने आपत्ति जताई है देखना होगा कि सरकार सवर्णों के साथ खड़ी होती है या आरक्षित वर्ग के साथ रहती है।