दफ्तर दरबारी:  शराब माफिया ने युवा आईएएस को पीटा, एसोसिएशन चुप क्‍यों 

MP News: प्रमोशन की आस लगाए मध्यप्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों के लिए सरकार ने फिर वादे का झुनझुना बजाया है। प्रदेश की एक महिला आईएएस के 'डिमोशन' के पीछे महाभारत धारावाहिक में कृष्‍ण बने नीतीश भारद्वाज की भूमिका देखी जा रही है।

Updated: Sep 19, 2022, 07:00 AM IST

आईएएस नवजीवन पवार
आईएएस नवजीवन पवार

धार जिले के कुक्षी में अवैध शराब को पकड़ने गए ट्रेनी आईएएस नवजीवन पवार के साथ शराब माफियाओं ने मारपीट की और नायब तहसीलदार राजेश भिङे को बांधकर ले गए। पुलिस के मौके पर पहुंचने के बाद नायब तहसीलदार को छुड़ाया गया। आरोप है कि इन शराब माफियाओं को प्रदेश की एक पूर्व मंत्री का संरक्षण प्राप्त है। युवा आईएएस ने ताकतवरों से लड़ने की हिम्‍मत दिखाई जब‍कि इस हौसले पर साथ देना तो दूर आईएएस एसोसिएशन चुप्पी साधे बैठा रहा। सवाल उठ रहा है क्‍या एसोसिएशन साल भर में सांस्‍कृतिक आयोजन करने जैसे कामों के लिए ही रह गया है? ऐसे संगठन का क्‍या औचित्‍य जो अपने साथियों का साथ न दे। 

मामला कुछ यूं है कि ट्रेनी आईएएस नवजीवन पवार धार के कुक्षी में एसडीएम हैं। अवैध शराब परिवहन की सूचना पाकर मौके पर जब आईएएस नवजीवन पवार और नायब तहसीलदार राजेश भिङे पहुंचे तो शराब माफिया ने उप पर हमला बोल दिया। आईएएस नवजीवन पवार के साथ मारपीट की गई और नायब तहसीलदार राजेश भिङे को आरोपी बांधकर ले गए। पुलिस ने नायब तहसीलदार को छुड़वाया। 

कांग्रेस ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया है कि धार जिले में शराब माफियाओं का नियंत्रण बीजेपी की पूर्व मंत्री कर रही है और उन्हीं के इशारे पर आईएएस के साथ मारपीट हुई है। आरोप अपनी जगह मगर एक सवाल उठ रहा है कि मध्‍य प्रदेश में कर्मचारियों व अधिकारियों पर हमले की घटनाएं बढ़ क्‍यों रही है? आईएएस, एसडीएम, तहसीलदार, एसपी, पुलिसकर्मियों पर हमला, पिटाई कर देना आम बात क्‍यों हो गई है? क्‍या अब कानून का इतना खौफ भी नहीं रहा कि छापा टीम को देख माफिया भागने की सोचे न कि हमला करे? 

इस पर भी हैरत की बात यह है तमाम सांस्‍कृतिक व सामाजिक गतिविधियां करने वाला मध्‍य प्रदेश आईएएस एसोसिएशन अपने साथी युवा आईएएस की पिटाई पर मौन रहता है। क्‍यों? ऐसा तब भी हुआ था जब एक महिला आईएएस ने अपने से सीनियर आईएएस से प्रताड़ना के मामले में वरिष्‍ठ महिला आईएएस से सहायता मांगी थी। तब सहायता करना तो दूर पोस्‍ट को सार्वजनिक कर मामले को हवा दी गई थी।

अब तो एक आईएएस सार्वजनिक रूप से पीट दिया जाता है और दिग्‍गज संगठन चुप हैं। यह नजीर अच्‍छी नहीं है। यह आशंका निर्मूल नहीं है कि सरकारी अमले पर हमले पर कड़ा संदेश नहीं जाएगा तो ऐसे हमले आम हो जाएंगे।  

कर्मचारी वोट बैंक को खुश करने के लिए सरकारी वादे का झुनझुना 

भोपाल के प्रसिद्ध शायर दुष्‍यंत कुमार ने लिखा है, 
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं।

प्रमोशन की आस लगाए मध्यप्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों के लिए सरकार ने फिर वादे का झुनझुना बजाया है। प्रमोशन की आस में बीते  एक दशक में कई कर्मचारी रिटायर हो गए, कई पद खाली हैं, उन्‍हें भरने की कवायद भी पूरी नहीं हो पा रही है। प्रमोशन में आरक्षण जैसे निर्णय पर कर्मचारियों का खुश होना या नाराज होना निर्भर है। इतने बड़े वोट बैंक को नाराज कौन करें, सो राजनीतिक दल होते इधर है, दिखते उधर है।  

फिर चुनाव करीब हैं और सरकार ने प्रमोशन के लिए नीति और नियम बनाने का झुनझुना बजाया है। मगर इस सरकारी झुनझुने को असरकारी साबित होना नहीं था और यह हुआ थी। वर्षों से प्रमोशन की राह देख रहे कर्मचारियों में इस जानकारी से उम्‍मीद बंधी थी कि सरकार ने प्रमोशन के नए नियम बनाए हैं। नियमानुसार इन नियमों को पारित करने के लिए कैबिनेट बैठक में रखा जाना था। 

मगर, सामान्‍य प्रशासन विभाग ने जब परामर्श के लिए विधि विभाग में नियमों का प्रारूप भेजा तो सरकार तो ठीक कर्मचारी सकते में आ गए। विधि विभाग ने नियम बना कर कर्मचारियों को लुभाने की मंशा की हवा निकाल दी। 

सामान्‍य प्रशासन विभाग ने एससी-एसटी कर्मचारियों व अधिकारियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए प्रमोशन में आरक्षण की व्‍यवस्‍था तैयार की थी। जवाब में विधि विभाग ने पूछ लिया कि क्‍या सामान्‍य प्रशासन विभाग के पास कर्मचारी-अधिकारियों का डेटा है? आरक्षण के लिए पदों व उपलब्‍ध कर्मचारियों की गणना कैसे होगी? कैसे तय होगा कि पर्याप्‍त प्रतिनिधित्‍व हो गया है?

यह वैसा ही सवाल है जो पिछड़ा वर्ग आरक्षण के समय उठा था। सुप्रीम कोर्ट में जानकारी देने के लिए सरकार ने ताबड़तोड़ पिछड़ा वर्ग कल्‍याण आयोग का गठन कर उसे सर्वे करने को कहा था। आयोग ने सेम्‍पल सर्वे की तरह एक औसत सर्वे किया जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने विस्‍तृत रिपोर्ट मांगी ली। 

ऐसे मामलों में सरकारी भाषा में कहा जाता है कि जानकारी जुटाई जा रही है। कर्मचारियों के मामले में भी ऐसा होगा। वादे का झुनझुना बजता रहेगा और वे वादे पर भरोसा कर जीते रहेंगे। 
 
महिला पीएस को सचिव बनाने में ‘कृष्‍ण’ फेक्‍टर 

यूं तो प्रशासनिक व्‍यवस्‍थाओं के तहत अधिकारियों को इधर से उधर करना सामान्‍य प्रक्रिया है। मगर जब पिछले दिनों हुए तबादले में राज्य शासन के एक निर्णय ने बरबस ध्‍यान आकर्षित किया। सरकार ने प्रमुख सचिव कुटीर और ग्रामोद्योग आईएएस स्मिता (गाटे चंद्रा) भारद्वाज को हटा कर मानव अधिकार आयोग में सचिव पदस्थ कर दिया है। अचरज इस बात का कि इस महिला आईएएस को लूप लाइन में भेजने के लिए केवल कमतर विभाग ही नहीं दिया बल्कि पद भी छोटा दिया। प्रमुख सचिव स्तर की अधिकारी को सचिव बनाने की बात हजम नहीं हुई। 

इस निर्णय की पड़ताल हुई तो पता चला कि दफ्तर में काम न आने की शिकायत को आधार बना कर यह तबादला हुआ है। मगर खबरी बताते हैं कि इस डिमोशन के पीछे बात ही कुछ ओर है। असल में इस निर्णय के पीछे महाभारत धारावाहिक में कृष्‍ण की भूमिका निभाने वाले नीतीश भारद्वाज की नाराजगी को देखा  जा रहाा  है। नीतीश भारद्वाज और मध्‍य प्रदेश कैडर की आईएएस स्मिता गाटे चंद्रा ने 2009 में विवाह किया था। शादी के करीब 12 साल बाद दोनों अलग हो गए। 

बताते हैं कि बीजेपी के स्टार प्रचारक की भूमिका में नगरीय निकाय चुनाव में प्रचार के लिए मध्‍य प्रदेश आए नीतीश भारद्वाज ने मंत्रियों के साथ अनौपचारिक चर्चा में अपनी पूर्व पत्‍नी आईएएस स्मिता भारद्वाज को लेकर टिप्‍पणियों की थी। तब तो मंत्रियों ने आईएएस स्मिता भारद्वाज की प्रशंसा कर नीतीश कुमार को चुप करवा दिया था। मगर वे निष्क्रिय नहीं हुए। आईएएस स्मिता भारद्वाज के इस तबादले और डिमोशन में इसी राजनीतिक रसूख के तारों को जोड़ कर देखा जा रहा है। 

क्‍या सच में सीएम की नहीं सुन रहे हैं अफसर  

एक तरफ जहां, माफिया के बेलगाम होने की खबरें है तो दूसरी तरफ सवाल उठ रहे हैं कि क्‍या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के प्रिय अफसर उन्हीं के एजेंडे को लंगड़ी मार रहे हैं? क्‍या सच में मुख्‍यमंत्री चौहान को अफसर अंधरे में रख सकते हैं? यह सवाल किसानों को फसल का पैसा देने में चार साल की देरी और इस मुद्दे पर हाई कोर्ट से मिली फटकार के बाद उपजा है। 

कौन अफसर होंगा जो इस बात से अ‍नभिज्ञ होगा कि बीजेपी सरकार किसानों को अपनी प्राथमिकता बताती है। फिर भी अफसर किसानों को तंग करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ताजा मामला है कि उड़द बेचने के बाद भुगतान का इंतजार कर रहे थे, लेकिन, शासन की ओर से राशि जारी नहीं की जा रही थी।

4 साल में समर्थन मूल्य पर उड़द की खरीदी करने के बाद पूरा भुगतान न करने पर हाई कोर्ट जबलपुर ने शिवराज सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव और कलेक्टर को 28 दिन के अंदर किसानों को लंबित राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है। किसान कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हुए थे क्‍योंकि विधानसभा उपचुनाव के दौरान आंदोलन के बाद मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उड़द का पैसा देने के निर्देश दिए थे। मगर मुख्‍यमंत्री के निर्देशों पर अफसरों ने ध्‍यान ही नहीं दिया। 

यूं भी उपचुनाव में हार तथा दिग्‍गज नेता रहे जयंत मलैया परिवार के बगावती तेवर के कारण दमोह क्षेत्र बीजेपी की चिंता का सबब है। ऐसे भी किसानों को फसल का समर्थन मूल्‍य पाने के लिए चार सालों तक प्रतीक्षा करनी पड़े तथा फिर हाई कोर्ट को आदेश देना पड़े तो मैदानी हालत को समझा जा सकता है।