दफ्तर दरबारी: क्या मजबूरी में हुई शिवराज के सुलेमान की विदाई

शिवराज सिंह चौहान सरकार में अपने दबदबे के कारण सबसे ताकतवर आईएएस मोहम्‍मद सुलेमान नौकरी छोड़ रहे हैं। वे जुलाई 2025 में रिटायर होने वाले थे लेकिन चार माह पहले ही वीआरएस लेकर पद छोड़ रहे हैं। उनकी इस विदाई के कई तरह के अर्थ हैं, सवाल यही है कि यह विदाई मजबूरी में है या मनचाही?

Updated: Mar 09, 2025, 01:22 PM IST

सीएस अनुराग जैन, एसीएस मोहम्‍मद सुलेमान और मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव
सीएस अनुराग जैन, एसीएस मोहम्‍मद सुलेमान और मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव

शायर मिर्जा गालिब ने लिखा है, ‘निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले।’ एमपी के सीनियर और ताकतवर आईएएस मोहम्‍मद सुलेमान के मामले में यह शेर एकदम ठीक लागू हो रहा है। रिटायर तो हर अधिकारी होता है लेकिन जैसी विदाई मोहम्‍मद सुलेमान की हो रही है वैसी कोई चाहता भी नहीं है। 

मध्‍य प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक जगत में मोहम्‍मद सुलेमान का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। लंबे समय तक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के मुखिया रहे मोहम्‍मद सुलेमान इन दिनों एसीएस कृषि उत्‍पादन हैं। उनके पास कर्मचारी चयन मंडल के अध्‍यक्ष का अतिरिक्‍त प्रभार हैं। सिवनी, बालाघाट और इंदौर जैसे महत्वपूर्ण जिलों में कलेक्टर रहे आईएएस मोहम्‍मद सुलेमान तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सर्वाधिक पसंदीदा अफसरों में से एक थे। उद्योग विभाग की जिम्‍मेदारी संभालने वाले मोहम्‍मद सुलेमान को कोरोना महामारी के दौरान स्‍वास्‍थ्‍य विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी।

अपनी कार्यप्रणाली को लेकर वे हमेशा चर्चा में रहे लेकिन उनकी जिम्‍मेदारियों कभी कम नहीं हुई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के वे जितने विश्वासपात्र थे 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने पर भी उनका जलवा कायम रहा। तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने उन्‍हें उद्योग विभाग का कार्यभार सौंपा था। 

वे मुख्‍यसचिव पद के प्रमुख दावेदार थे लेकिन किसी न किसी कारण से हर बार कुर्सी उनसे दूर चली गई। सितंबर 2024 में भी जब मुख्‍य सचिव का चयन होना तब एक ही बैच के अधिकारियों में मोहम्‍मद सुलेमान और अनुराग जैन प्रमुख दावेदार थे। अंत समय में दिल्‍ली से प्रतिनियुक्ति खत्‍म करवा कर अनुराग जैन को मुख्‍य सचिव बनाया गया। अनुराग जैन अगस्‍त 2025 में रिटायर होंगे जबकि मोहम्‍मद सुलेमान को जुलाई 2025 में रिटायर होना था। साथी आईएएस अनुराग जैन को सीएस बनाने के बाद मोहम्‍मद सुलेमान लगभग साइड लाइन हो गए थे। नई प्रशासनिक व्‍यवस्‍था में उनका मन लग नहीं रहा था। यही कारण है कि उन्‍होंने 13 फरवरी को वीआरएस का आवेदन दिया और अब उसे स्‍वीकार कर लिया गया है। 12 मार्च उनकी शासकीय सर्विस का आखिरी दिन होगा। 

रिटायरमेंट के बाद वे दिल्ली में 'द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट' से पीएचडी करेंगे। माना जा रहा है कि वीआरएस की तय अवधि के बाद वे किसी मल्‍टी नेशनल कंपनी में बड़े पद को संभालेंगे। वे काम तो करेंगे लेकिन सरकार में नहीं रहेंगे। वे जुलाई तक भी एसीएस पद पर बने रहे सकते थे लेकिन प्रशासनिक जमावट में मिस फिट होना ऐसी मजबूरी हो गई कि तय समय से पहले ही उन्‍होंने कुर्सी ही छोड़ने का फैसला कर लिया। 

एक दिन में तीन कलेक्‍टरों पर हाईकोर्ट की टेढ़ी नजर 

अधिकारी ऑफिस में बैठकर खुद को शेर समझते हैं, किसी की सुनते भी नहीं हैं। संभागायुक्त अपने दिमाग का उपयोग करें, डाकघर की तरह काम न करें। 

जिला कलेक्‍टरों और संभागायुक्‍त के काम पर यह टिप्‍पणी सामान्‍य नहीं है। मध्‍य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने आदेश नहीं मानने वाले अधिकारियों के काम से नाराज हो कर ऐसी सख्‍त टिप्‍पणियां की हैं। एक दिन में तीन आईएएस तथा कलेक्‍टरों को कोर्ट की फटकार के ऐसे मामले पहले कभी नहीं आए।

सात और आठ मार्च को प्रशासनिक इतिहास में ऐसा हुआ जब जबलपुर और ग्‍वालियर हाईकोर्ट ने कलेक्‍टरों को आड़े हाथों लिया। भिंड के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के काम से हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति इतने नाराज हैं कि उन्हें माफी मिलने की संभावनाएं ही नहीं बची हैं। कोर्ट ने कहा कि कलेक्टर ने कोई सबक नहीं सीखा है। उनके द्वारा पीडब्ल्यूडी की संपत्ति कुर्क करना दिखावा मात्र है। ऐसा अधिकारी फील्ड में रहना चाहिए या नहीं, मुख्य सचिव खुद यह तय करें। कोर्ट ने अवमानना के लिए दोषी मानते हुए 11 मार्च को दंड सुनाने का निर्णय लिया है।

इसी तरह ग्वालियर कलेक्टर रूचिका सिंह चौहान के काम पर भी कोर्ट ने तीखी टिप्‍पणी की है। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अवमानना याचिका में कलेक्टर रुचिका चौहान को कहा कि अधिकारी ऑफिस में बैठकर खुद को शेर समझते हैं। किसी की सुनते नहीं है। कोर्ट को भी नहीं गिन रहे। कोर्ट ने कलेक्टर रुचिका चौहान को अवमानना के लिए दोषी मानते हुए दंड पर सुनवाई के लिए 11 मार्च को तलब किया है।

हाईकोर्ट जबलपुर ने उमरिया जिले के कलेक्टर धरणेंद्र कुमार जैन पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। कलेक्‍टर ने सिर्फ 6 अपराधिक प्रकरण दर्ज होने पर एक महिला को जिला बदर कर दियाथा जबकि महिला को किसी भी केस में सजा नहीं हुई थी। कलेक्‍टर पर जुर्माना लगाते हुए कोर्ट ने शहडोल कमिश्नर पर गंभीर टिप्पणी की है। कमिश्नर ने तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया और बिना सोचे-समझे अपील खारिज कर दी थी। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, "संभागायुक्त अपने दिमाग का उपयोग करें, डाकघर की तरह काम न करें।"

एक दिन पहले ही हाईकोर्ट ने लोक शिक्षण आयुक्त आईएएस शिल्पा गुप्ता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। हाईकोर्ट ने आदेश का पालन न करने पर 10 हजार रुपए का जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। रीवा कलेक्‍टर प्रतिभा पाटिल तो ऐसी कलेक्‍टर हैं जिन्‍हें हाई कोर्ट ने छह माह में दूसरी बार पेश होने के लिए कहा है। 

खासबात यह है कि ये सारे मामले बहुत बड़े नहीं है। आम लोगों या छोटे कर्मचारियों को उनके हक से वंचित करने के प्रकरण हैं। इन मामलों में कोर्ट पहले निर्देश दे चुका है लेकिन अफसर हाईकोर्ट की भी नहीं सुन रहे हैं और कोर्ट की भी अवमानना कर रहे हैं। इस स्‍तर की अवमानना कि कोर्ट को जुर्माना लगाने पर मजबूर होना पड़ा। यह एमपी का नया वर्क कल्‍चर हैं जहां हर माह किसी न किसी आईएएस को कोर्ट उनकी ठसक के लिए फटकार लगा रही है। 

चीता सफारी के लिए अफसरों के आराम की फिक्र

प्रदेश के श्‍योपुर में स्थित कूनो नेशनल पार्क में चीता अब दिखाई देने लगा है। चीतों की लगातार मौत में कमी आई है और नए शावकों ने जन्‍म लिया है। वन विभाग के लिए यही राहत की बात है। कूनो में कुल 26 चीते हैं। इनमें से 14 चीतों को बड़े बाड़ों में रखा गया है जबकि 12 चीते खुले जंगल में घूम रहे हैं और अपना शिकार कर रहे हैं। ये चीते पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गए हैं। जाहिर है, प्रदेश के अफसर भी चीता सफारी के लिए कूनो पहुंच रहे हैं। वन विभाग ने प्रदेश के अफसरों की चीता सफारी को अधिक आरामदेह बनाने के लिए मोटा बजट तैयार किया है। 

वन विभाग ने पालपुर, श्‍योपुर, सेसईपुरा और अगरा के चार फारेस्‍ट गेस्ट हाउस को सजाने, संवारने के लिए बजट प्रस्‍ताव भेजा है। इन गेस्‍ट हाउस में आम पर्यटकों को भी रूकने की सुविधा मिल सकती है लेकिन ऐसा तब ही होगा जब कक्ष किसी वीआईपी अफसर के लिए आरक्षित न हों। यानी, पयर्टकों के नाम पर संवारे और सुविधापूर्ण बनाए जा रहे गेस्‍ट हाउस काम तो अफसरों के ही आएंगे। 

अफसर के बदलते ही बदल गए करोड़ों के टेंडर 

उच्‍च शिक्षा विभाग का एक अंग है राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान यानी रूसा। रूसा मध्‍य प्रदेश के सभी सरकारी कॉलेजों के भवन‍ निर्माण, उनके रखरखाव, फर्नीचर आदि खरीदने सहित तमाम विकास कार्यों की नोडल एजेंसी हैं। यहां विश्‍व बैंक सहित अन्‍य स्‍थानों से मिली ग्रांट से यह कार्य किए जाते हैं। 

रूसा में कॉलेजो के विकास के लिए आए करोड़ों रुपए के कार्यों के लिए टेंडर निकाले गए थे। बीते दिनों उच्‍च शिक्षा विभाग ने रूसा के प्रभारी ओएसडी अखिलेश कुमार शर्मा को हटा दिया। उनकी जगह सुनील सिंह को प्रभारी बनाया गया है। अखिलेश कुमार शर्मा के पहले भी रूसा का चार्ज सुनील कुमार सिंह के पास ही था। 

सुनील कुमार सिंह ने पद संभाले ही अपने पूर्ववर्ती प्रभारी अखिलेश कुमार शर्मा द्वारा लिए गए निर्णयों को पलटना शुरू कर दिया। उन्‍होंने पूर्व प्रभारी द्वारा जारी एवं स्‍वीकृत किए गए सारे टेंडर निरस्त कर दिए। इससे कॉलेजों के विकास के काम अटक गए हैं। नए प्रभारी के आदेश के बाद नई टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है। 

एक अधिकारी के जाने के साथ ही उसके द्वारा तय की गई टेंडर प्रक्रिया को बदलना सवाल खड़े करता है। यदि नए प्रभारी को सारे टेंडर में नुक्‍स दिखाई दिया है तो इसका एक अर्थ यह भी है कि अतीत में रूसा में भ्रष्‍टाचार का खेल हुआ है। यदि अखिलेश कुमार शर्मा के निर्णय सही थे तो फिर नए प्रभारी ओएसडी सुनील सिंह के निर्णय में कोई खोट है।