दफ्तर दरबारी: किसे बचाने के लिए हो गई पटवारी की बलि, न चला बुलडोजर, न हुई कार्रवाई

हर छोटे मामले पर बुल्डोजर चला कर अपराध खत्‍म करने का दावा करने वाली बीजेपी सरकार की अनदेखी और माफिया के संरक्षण से कर्मचारी संगठनों में तीखी नाराजगी है। उस वक्‍त जब कर्मचारी मुस्‍तैदी से अपनी ड्यूटी कर रहे होते हैं, सरकार का राजस्‍व बचाने का जतन कर रहे होते हैं तब अपराधी के उन पर हमला करते हैं, ईमानदार कर्मचारी की जान ले लेते हैं और सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

Updated: Dec 02, 2023, 10:36 PM IST

खनन माफिया के हौसले बुलंद, कर दी पटवारी की हत्‍या
खनन माफिया के हौसले बुलंद, कर दी पटवारी की हत्‍या

सरकार की अनदेखी से कर्मचारियों में रोष 

आचार संहिता के बीच ही शहडोल में 26 नवंबर को ट्रेक्टर से कुचलकर पटवारी प्रसन्न सिंह की हत्या कर दी गई। 45 साल के प्रसन्न सिंह रेत के अवैध उत्खनन की सूचना पर देर रात खनन क्षेत्र में पहुंचे थे। पटवारी प्रसन्न सिंह ने ट्रैक्टर को रोकने की कोशिश की, लेकिन ट्रैक्टर चालक पटवारी को रौंदते हुए वहां से फरार हो गया। इसके पहले पिछले तीन दिन से प्रशासन उसी इलाके में अवैध रेत उत्खनन के खिलाफ कार्रवाई भी कर रहा था, लेकिन बेखौफ माफिया लगातार सोन नदी से अवैध उत्खनन में लगा हुआ था।

हत्‍या के बाद न अपराधियों के घर बुल्‍डोजर चला और न ही सख्‍त कार्रवाई देखने को मिली है। इस पर कर्मचारी संगठनों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव उमाशंकर तिवारी ने इस नाराजगी पर कहा है कि एक तरफ भोपाल में नगर निगम अधिकारी को चांटा मारने, उज्जैन में सवारी पर पत्थर फेंकने वालों, सीधी में पेशाब करने पर घर तोड़ दिए गए हैं। प्रदेश में अन्‍य अपराधियों के घरों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं लेकिन सरकारी ड्यूटी करते हुए पूर्व सैनिक एवं वर्तमान में पटवारी प्रसन्न सिंह के हत्यारों के घरों पर अभी तक बुलडोजर नहीं चला है। यह कहीं ना कहीं पक्षपात है। 

माफिया के हितों के आगे कर्मचारियों के बलिदान का प्रदेश में यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले 2012 में मुरैना जिले में प्रशिक्षु एसडीपीओ 2009 बैच के आईपीएस नरेंद्र कुमार सिंह की भी हत्‍या कर दी गई थी। वे अवैध खनन रोकने पहुंचे थे तब खनन माफिया ने ट्रैक्‍टर चढ़ा कर उनकी हत्‍या कर दी थी। प्रदेश में इतिहास ने एक बार फिर खुद को दोहराया और सरकार हाथ-हाथ पर धरे और आंखों पर पट्टी बांधे बैठी हुई है। यह सवाल एकदम मौजूं है कि किसके संरक्षण में माफिया के हौसले इतने बुलंद हो गए कि वे बेखौफ सरकारी कर्मचारी की हत्‍या कर रहे हैं। किसको बचाने के लिए सरकार एक कर्मचारी के बलिदान पर चुप बैठी है।

जिसकी निगहबान सरकार है उस कलेक्टर का क्या ही होगा?

मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव की मतगणना 3 दिसंबर को होनी है लेकिन बालाघाट में यह प्रक्रिया पांच दिन पहले ही शुरू हो गई। हुआ यूं कि बालाघाट में मतगणना के पहले डाक मतपत्रों को गिनने संबंधी एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ। सूचना मिलने पर कांग्रेसी मौके पर पहुंचे। कलेक्टर और रिटर्निंग आफिसर (आरओ) को भी इसकी सूचना दी गई। 

प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि डाक मतपत्र रखने का कार्य किया जा रहा था। डाक मतपत्र आने पर उनके 50-50 के बंडल बनाकर उन्हें सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में रखा जाता है। इस दौरान किसी ने अफवाह फैला दी कि डाक मतपत्रों की गिनती की जा रही है। इसका एक वीडियो भी प्रसारित हो गया। निर्वाचन आयोग ने माना कि जांच में प्रक्रियात्मक त्रुटि पाई गई, जिसके आधार पर डाक मतपत्रों के नोडल अधिकारी तहसीलदार लालबर्रा और बालाघाट के एसडीएम को भी सस्पेंड कर दिया गया। 

कांग्रेस ने इस पर कलेक्‍टर की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने कहा कि यह अत्यंत गंभीर मामला है। दोषियों पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। कांग्रेस का सवाल है कि मतगणना के पहले कोषालय के स्ट्रांग रूम से डाक मतपत्रों को निकालकर कर्मचारियों को कैसे सौंप दिया गया। कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी डॉ. गिरीश कुमार मिश्रा ने नियम का उल्लंघन कराया है। यह संदेह को जन्म देता है। 

कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर राजनेता ही नहीं उनकी बिरादरी के लोग भी सवाल उठा रहे हैं। रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी विजय शंकर सिंह ने प्रतिक्रिया दी कि स्ट्रॉंग रूम बिना रिटर्निंग ऑफिसर और वहां मौजूद पुलिस बल के अफसर की उपस्थिति के खोला ही नहीं जा सकता है। कैंडिडेट को भी सूचित किया जाता है। डीएम को तो बताया ही जाता है। अब नियम बदल गए हों तो नहीं कह सकता। राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट हो कर आईएएस बनी शैलबाला मार्टिन ने सोशल मीडिया पर की में स्ट्रॉंग रूम खुलने की जानकारी जिला निर्वाचन अधिकारी के संज्ञान में ना होना गंभीर विषय है जो सीधी भर्ती के आईएएस अधिकारी की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगाता है। 

कलेक्‍टर डॉ. गिरीश कुमार मिश्रा ने भी बार-बार बयान बदले जिससे उनकी मंशा और कार्यप्रणाली पर सवाल उठे लेकिन जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का तर्ज पर वे सुरक्षित है। जिस अफसर की निगहबान सरकार हो, दोष होने पर भी उसका भला क्‍या ही बिगाड़ हो सकता है? कार्रवाई के दिखावे के लिए छोटे कर्मचारियों को निलंबित जरूर किया गया है। 

सियासी जोड़तोड़ के बीच सीएस उम्मीदवारों की दौड़

तीन साल 8 महीने मुख्य सचिव रहने के बाद अंतत: मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रिय अफसर इकबाल सिंह बैंस की विदाई हो गई। खुद मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने चाहा था कि आईएएस बैंस को तीसरी बार एक्‍सटेंशन मिल जाए लेकिन केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के बाद भी ऐसा हो नहीं पाया। आचार संहिता लगी है और माध्यमिक शिक्षा मंडल की अध्यक्ष वीरा राणा को वरिष्‍ठता के कारण मध्यप्रदेश का प्रभारी मुख्य सचिव बनने का मौका मिला है। वे मार्च 2024 में रिटायर होंगी। लेकिन सरकार बनाने के सियासी जोड़तोड़ के बीच सीएस पद के उम्‍मीदवार आईएएस अफसरों में दौड़ जारी है। 

मतदान के बाद कोई आकलन विश्‍वास के साथ यह नहीं कह पाया कि प्रदेश में किस दल को बहुमत मिलने की संभावना है। एक्जिट पोल ने तो इस असमंजस को और गहरा दिया। सारे अनुमान अलग-अलग परिणाम बता रहे हैं। पूर्ण बहुमत नहीं मिलने वाली 2018 जैसी स्थिति की आशंका को देखते हुए निर्दलीय उम्‍मीदवारों से संपर्क बढ़ा दिया गया है। सत्‍ता के इस राजनीतिक जोड़तोड़ के बीच नई सरकार के पसंदीदा नए सीएस की दौड़ भी तेज हो गई है। नए सीएस के रूप में 1989 बैच के आईएएस अनुराग जैन, मोहम्‍मद सुलेमान सहित 1990 बैच के आईएएस राजेश राजौरा, मलय श्रीवास्‍तव के नाम कई दिनो से चर्चा में हैं। आईएएस अजय तिर्की, संजय बंदोपाध्याय आशीष उपाध्याय, विनोद कुमार, राजीव रंजन और एसएन मिश्रा भी वरिष्‍ठता के आधार पर दावेदार हैं। 

माना जा रहा है कि बीजेपी की सरकार बनती है तो एसीएस होम राजेश राजौरा पहली पसंद होंगे। उनके पहले दिल्ली में पदस्थ अनुराग जैन और एसीएस मोहम्‍मद सुलेमान पहली पसंद माने जा रहे थे लेकिन पीएमओ से अनुराग जैने को भोपाल आने की सहमति नहीं मिली। अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान के नाम बीजेपी संगठन की असहमति है। अपर मुख्य सचिव एसएन मिश्रा भी प्रमुख दावेदार हैं। जबकि कांग्रेस की सरकार बनने पर एसीएस मलय श्रीवास्‍तव का नाम सीएस के रूप में अव्‍वल है। बहरहाल, सरकार कोई भी हो, नया सीएस इन्‍हीं नामों में से एक होगा। 

नारायण ने राम को दान की अपनी लक्ष्मी 

मूलत: चैन्‍नई के निवासी मप्र कैडर के 1970 बैच के आईएएस एस. लक्ष्मीनारायण अपनी सेवानिवृत्ति के 17 बरस बाद फिर खासकारण से चर्चा में हैं। कभी जनसंपर्क विभाग के सचिव रहे लक्ष्मीनारायण केंद्र में गृह सचिव भी रहे हैं। उन्‍होंने अयोध्‍या में बन रहे राम मंदिर को अपनी जिंदगीभर की कमाई सौंप दी है। 

अपनी पत्नी के साथ अयोध्या पहुंचे आईएएस लक्ष्‍मीनारायण ने राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पहुंच कर संकल्‍प लिया कि वे राम भगवान की मूर्ति के सामने पांच करोड़ से तैयार 151 किलो की रामचरितमानस स्थापित करवाएंगे। इस पुस्‍तक  का हर पन्ना तांबे का होगा, जिन्हें 24 कैरेट सोने में डुबोया जाएगा। स्वर्ण जड़ित अक्षर लिखे जाएंगे। 

एस.लक्ष्मी नारायणन ने कहा है कि ईश्वर ने मुझे जीवनपर्यंत बहुत कुछ दिया है। प्रमुख पदों पर रहा। मेरा जीवन अच्छा चला। रिटायरमेंट के बाद भी खूब पैसा मिल रहा है। दाल-रोटी खाने वाला इंसान  हूं। पेंशन ही खर्च नहीं होती। ईश्वर का दिया हुआ उन्हें वापस कर रहा हूं। 

आईएएस लक्ष्‍मीनाराण फिलवक्‍त अपनी पत्‍नी सरस्वती के साथ दिल्‍ली में रह रहे हैं। उनकी बेटी प्रियदर्शिनी अमरीका में रहती हैं। उनके इस निर्णय पर मध्‍य प्रदेश में व्‍यापक प्रतिक्रिया हुई है। कुछ लोगों ने इस कार्य को अनुकरणीय बताया है तो उनके साथ कार्य कर चुके अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि जिस मंदिर को सभी दान दे रहे हैं वहां पूंजी प्रदान करने की जगह चेरिटी का कार्य किया जाना बेहतर होता। कुछ लोगों ने आय के स्रोत पर भी संदेह जताते हुए मंदिर में दान पर सवाल उठाए हैं। बहरहाल, कभी सरकार के प्रचार का जिम्‍मा संभालने वाले अफसर अपने एक निर्णय के कारण प्रचार पा रहे हैं।