कोरल की प्रजातियां हो रही विलुप्त, समुद्र के सुंदर संसार को लगी प्रदूषण की नजर

संसार की करीब 14 फीसदी कोरल रीफ खराब होने की कगार पर, जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा इकोसिस्टम में बदलाव

Updated: Oct 05, 2021, 02:05 PM IST

Photo Courtesy: Wikipedia
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प्रवाल या कोरल दुनियाभर के करीब 500 मिलियन से ज्यादा लोगों के जीवन का आधार है। लेकिन अब हाल यह है कि धरती पर सबसे ज्यादा संकटग्रस्त इको सिस्टम में से एक कोरल हैं। कोरल्स समुद्र का एक छोटा सा भाग ही कवर करते हैं। लेकिन ये लोगों को कई तरह से फायदा पहुंचाने का काम करती है। समुद्र के बीच कोरल में पनाह पाने वाली मछली लगभग 1 अरब लोगों के लिए महत्वपूर्ण प्रोटीन स्रोत की आपूर्ति करती है।

विभिन्न कोरल रीफ या प्रवाल भित्तियों पर क्लाइमेट चेंज का असर देखने को मिल रहा है। दरअसल इको सिस्टम पर जलवायु परिवर्तन से कई बदलाव होते हैं। जिससे समुद्री वातावण पर बुरा प्रभाव पड़ता है।  जैसे जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, समुद्र के पानी के तापमान में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। जिसकी वजह से कोरल रीफ पर भी असर पड़ता है। वे बीमारों के जैसे सफेद रंग के होते नजर आते हैं। अगर यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब कोरल्स खत्म ही हो जाएंगे।

 मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि संसार की करीब 14 फीसदी की कोरल रीफ खराब होने की कगार पर है। कोरल्स की सेहत में गिरावट गहरी चिंता का कारण है।  ऐसी स्थिति 1998 में भी बनी थी, लेकिन उसके बाद कोरल्स की स्थिति में काफी हद तक सुधार आ गया था। सेंटर फॉर आइलैंड रिसर्च एंड ऑब्जर्वेटरी ऑफ द एनवायरनमेंट इन मूरिया, फ्रेंच पोलिनेशिया की एक शोध की मानें तो  2009 के बाद से स्थितियों में गिरावट बढ़ती जा रही है, जो कि अब 14 प्रतिशत तक कोरल्स को खराब कर चुकी है।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो दुनिया भर में कोरल याने मूंगे की 900 प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन बहुत सी प्रजातियां विलुप्त हो रही है। इसका मुख्यकारण जलवायु परिवर्तन, समुद्र का बढ़ता तापमान और एसीडिफिकेशन है। कोरल धीमी गति से बढ़ते हैं। ये समृद्ध जैव विविधता का जीता जागता उदाहरण है, इनका नष्ट होना प्रकृति के लिए हानिकारक है। कोरल रीफ को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन से सख्ती से निपटना होगा। प्रदूषण कम करने पर जोर देना होगा।

समुद्रों का तापमान बनाए रखने के लिए हानिकारक प्रदूषण जैसे सीवेज और कृषि अपशिष्टों पानी में मिलने से रोकना होगा। क्योंकि ये सभी कोरल्स पर गंदगी और मेटल की पर्त जमा देते हैं। जिससे  कोरल्स को भारी नुकसान होता है। किसी भी बीच या समुद्र में आकर्षण का केंद्र कहे जाने वाली प्रवाल भित्तियां या कोरल रीफ पर्यटकों को लुभाती हैं। दुनिया भर में इन्हें देखने के लिए लाखों पर्यटक अरबों रुपए खर्च करते हैं। एक अनुमान के तहत कोरल से बनी वस्तुओं और उससे जुड़ी सेवाओं में सालाना 2.7 ट्रिलियन डालर का व्यापार होता है।  

प्रवाल याने कोरल उष्णकटिबंधों में पाए जाते हैं, इन्हें जीवित रहने के लिये 20°C - 21°C  तापमान की जरूरत पड़ती है। कोरल अक्सर उथले क्षेत्रों में पाया जाता है। ज्यादा गहराई में ये नष्ट हो जाते हैं। 200 से 250 फीट से ज्यादा गहराई में ऑक्सीजन और सूर्य के प्रकाश की कमी की वजह से इन्हें नुकसान होता है।   कोरल के विकास के लिए साफ पानी की जरूरत होती है। प्रदूषण और गंदगी की वजह से कोरल के सूक्ष्म पोर्स बंद हो जाते हैं। जिसके बाद वे धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं। वहीं समुद्र के पानी की 27-30% लवणता कोरल के विकास के लिये फायदेमंद होती है। कहा जाता है कि ओशन करंट कोरल्स के लिए लाभदायक होते हैं। यह इनके लिए भोजन उपलब्ध करवाने का काम करता है। यही वजह है कि जो सागर शांत रहते हैं, उनमें कोरल या प्रवाल कम पाया जाता है।