जानिए कौन सा सुख वास्तव में दुःख है

पहले जीव अपने सुख या सुख के साधनों के अभाव का अनुभव करता है और फिर उसे प्राप्त करने का उद्यम करता है, इस प्राप्ति में सुख और दुःख का मूल छिपा है

Publish: Aug 07, 2020, 12:43 PM IST

photo courtesy: wallpaper flare
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सुख की इच्छा प्राणी मात्र की मौलिक इच्छा है। पर सुख भी सातिशय और निरतिशय भेद से दो प्रकार का होता है। विषय के संबंध से उत्पन्न अंतःकरण की वृत्ति के तारतम्य से होने वाले आनंद विशेष के आविर्भाव को सातिशय सुख कहते हैं। निरतिशय सुख ब्रह्म है। समस्त प्राणियों का अंतर आत्मा ही ब्रह्म है। वही वास्तविक अनंत सुख है। विषयों के संबंध से होने वाला सुख उसकी मात्रा है।

विषयजन्य सुख के अनुभव का क्रम है- पहले जीव अपने सुख के या सुख के साधनों के अभाव का अनुभव करता है। इसके पश्चात किसी प्राणी या पदार्थ में रमणीय बुद्धि करके उसकी प्राप्ति को सुख का साधन मान बैठता है। फिर उसको प्राप्त करने की तीव्र इच्छा करता है। जब एक इच्छा प्रबल हो जाती है तब अन्य इच्छाओं को गौण कर देती है।  जब तक इच्छा पूर्ण नहीं हो जाती तब तक कांटे की भांति चुभती रहती है। और जब इच्छित की प्राप्ति हो जाती है तब एक साथ मन में प्रसन्नता और इच्छा के अभाव की स्थिति बनती है। अंतः करण की इस शांत और सात्विक अवस्था में परमानंद स्वरूप आत्मा का प्रतिबिंब पड़ता है, यही विषय सुख कहलाता है। पर इसमें भ्रांति हो जाती है कि यह सुख विषय की प्राप्ति से हुआ है। जबकि यह उसका आत्मा ही है। इस सुख में विषय की पराधीनता और क्षणिकता के कारण इसको हेय माना जाता है। साथ ही इसके पश्चात दु:ख होता है जैसे दिन और रात का जोड़ा होता है दिन के पश्चात रात्रि और रात्रि के पश्चात नियम से दिन होता है उसी प्रकार दु:ख के पश्चात सुख और सुख के पश्चात नियम से दु:ख होता ही है।

जब कोई शिशु खिलखिला कर हंसता है तब माताएं कहती हैं कि अब यह रोयेगा क्यूंकि सुख दुःख का जोड़ा है। ऐसे सुख को विचार वान पुरुष दुःख ही समझते हैं। वे विषय और इन्द्रियों के संयोग से मिलने वाले सुख-दु:ख की उपेक्षा करके उस नित्य सुख की खोज करते हैं जो नित्य और पूर्ण है। हमें भी इसी सच्चे सुख का अन्वेषण करना है।