Green Tax: 8 साल से ज्यादा पुराने वाहनों पर लगेगा भारी-भरकम ग्रीन टैक्स
दिल्ली-एनसीआर जैसे ज़्यादा प्रदूषित इलाक़ों में रोड टैक्स के 50 फ़ीसदी के बराबर लग सकता है ग्रीन टैक्स, मंदी से जूझते ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लिए यह नया बोझ उठाना मुश्किल हो सकता है

नई दिल्ली। मोदी सरकार आठ साल से ज़्यादा पुराने वाहनों पर भारी भरकम ग्रीन टैक्स (Green Tax) लगाने जा रही है। केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने इस फैसले को मंजूरी भी दे दी है। मंजूर किए गए नियमों के तहत कॉमर्शियल वाहनों पर अधिकतम ग्रीन टैक्स रोड टैक्स के पचास फीसदी तक हो सकता है। 15 साल से ज्यादा पुराने निजी वाहनों पर भी ग्रीन टैक्स लगाने का प्रस्ताव मंजूर हो गया है। वैसे तो यह फ़ैसला प्रदूषण घटाने के नाम पर किया जा रहा है, लेकिन लॉकडाउन के समय से मुसीबतों का सामना कर रहे ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लिए यह एक और बड़ा सदमा साबित हो सकता है।
8 साल से ज्यादा पुराने कॉमर्शियल वाहनों पर ग्रीन टैक्स लगाने के इस फ़ैसले को केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने तो मंजूरी दे दी है। इन वाहनों पर फिटनेस सर्टिफिकेट के नवीनीकरण (Fitness Certificate Renewal) के दौरान यह टैक्स वसूला जाएगा। मौजूदा प्रस्ताव के मुताबिक ऐसे वाहनों का फिटनेस सर्टिफिकेट रिन्यू करते समय उन पर रोड टैक्स के 10 से 25 फीसदी तक ग्रीन टैक्स लगाने का प्रस्ताव है। लेकिन सरकार का इरादा ज़्यादा प्रदूषण वाले शहरों में टैक्स की रकम ज्यादा रखने का है। मिसाल के तौर पर दिल्ली-एनसीआर जैसे अत्यधिक प्रदूषित इलाकों में रजिस्टर्ड वाहनों पर रोड टैक्स के 50% तक ग्रीन टैक्स लगाने का प्रस्ताव किया गया है। नए नियमों को 1 अप्रैल 2022 को नोटिफाई किए जाने की योजना है।
मौजूदा नियमों के तहत हर नए कॉमर्शियल ट्रांसपोर्ट वेहिकल के लिए पहले दो साल पर और उसके बाद हर साल फ़िटनेस सर्टिफिकेट लेना ज़रूरी है। जबकि प्राइवेट वाहनों से 15 साल बाद रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट रिन्यू कराते समय ग्रीन टैक्स वसूला जाएगा। सार्वजनिक परिवहन के वाहनों जैसे सिटी बसों पर कम ग्रीन टैक्स लगेगा।
नए नियम को नोटिफाइ करने से पहले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास प्रस्ताव भेजा जाएगा। परिवहन मंत्रालय ने सोमवार को इसकी जानकारी देते हुए बताया कि इस टैक्स से मिलने वाले राजस्व का इस्तेमाल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किया जाएगा। परिवहन मंत्री गड़करी ने यह भी बताया कि सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के मालिकाना हक़ वाले 15 साल से पुराने वाहनों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने और फिर उन्हें स्क्रैप करने की नीति को भी मंज़ूरी दे दी गई है।
मंत्रालय का कहना है कि कॉमर्शियल वेहिकल्स देश में वाहनों की कुल संख्या का महज़ 5% फ़ीसदी हैं, लेकिन गाड़ियों की वजह से होने वाले कुल प्रदूषण में उनकी हिस्सेदारी करीब 65 से 70 फ़ीसदी तक होती है। इसी तरह साल 2000 से पहले बने वाहन सिर्फ़ 1% हैं, लेकिन गाड़ियों से होने वाले कुल प्रदूषण में उनका हिस्सा 15 फीसदी है।
टैक्स बढ़ाने के रास्ते पर क्यों चल रही सरकार
कोरोना महामारी के कारण उपजे आर्थिक संकट से निपटने के लिए दुनिया के तमाम बड़े अर्थशास्त्री सरकारों को अपना खर्च बढ़ाकर लोगों की जेब में ज़्यादा पैसे पहुँचाने की सलाह देते हैं। अमेरिका समेत दुनिया के कई बड़े देशों ने ऐसा ही किया भी है। लेकिन भारत सरकार लगातार खर्च से ज़्यादा टैक्स बढ़ाने के रास्ते पर चलती नज़र आ रही है। वो भी तब जबकि दुनिया के तमाम बड़े देशों में आर्थिक मंदी की सबसे ज़्यादा मार भारत पर ही पड़ी है। महीनों तक चले लॉकडाउन और डीज़ल के आसमान छूते दामों के कारण पहले से बेहाल चल रहे ट्रांसपोर्ट सेक्टर को अगर ग्रीन टैक्स के कारण और ज़्यादा मुसीबत का सामना करना पड़ा तो ये न सिर्फ़ ट्रांसपोर्टरों के लिए, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला फैसला साबित हो सकता है।