कोरोना से बचाव के लिए पर्याप्त नहीं है एक मास्क, स्टडी में दो मास्क पहनने को बताया गया ज़रूरी

जामा इंटरनल मेडिसिन की रिसर्च में हुआ खुलासा, वायरस से बचाव के लिए दो मास्क पहनना ज़रूरी, दो मास्क पहनने से गैप बचने की गुंजाइश नहीं रहती जो कि वायरस को चेहरे और नाक तक पहुंचने नहीं देता

Updated: Apr 21, 2021, 10:29 AM IST

Photo Courtesy: Times Of India
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नई दिल्ली। कोरोना से बचाव के लिए अब दो गज़ की दूरी के साथ साथ दो मास्क भी ज़रूरी हो गए हैं। एक मास्क कोरोना के वायरस से बचाव कर पाने में सक्षम नहीं है। अगर कोरोना वायरस से बचे रहना है तो इसके लिए ज़रूरी है कि लोग अब दो मास्क पहनें। इस बात का खुलासा जामा इंटरनल मेडिसिन के जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च से हुआ है।

क्यों है दो मास्क की आवश्यकता 

जामा इंटरनल मेडिसिन की रिसर्च के मुताबिक अच्छी फिटिंग वाले दो मास्क SARS-CoV-2 कणों को रोकने में अधिक कारगर साबित होते हैं। चेहरे पर दो मास्क लगाने की वजह से कणों को रोकने की क्षमता लगभग दोगुनी हो जाती है। हालांकि ऐसा चेहरे पर कपड़ों की दो दो परतों के आने के कारण नहीं होता बल्कि अच्छी फिटिंग के दो मादक पहनने से वायरस के चेहरे और नाक तक पहुंचने के रास्ते में कोई गैप नहीं बचता है। 

इस मसले पर अमरीक के नॉर्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर एमिली सिकबर्ट ने अधिक प्रकाश डाला है। प्रोफेसर का कहना है कि चिकित्सीय प्रक्रिया में उपयोग में लाए जाने वाले मास्क में फिल्टरेशन क्वालिटी तो अच्छी होती है लेकिन यह चेहरे पर ठीक तरह से फिट नहीं होते। एमिली सिकबर्ट स्टडी करने वाले प्रमुख अनुसंधानकर्ताओं में से एक हैं।

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कैसे पता चला कि दो मास्क वायरस को रोकने में अधिक सक्षम हैं 

वायरस से बचाव के लिए दो मास्क ज़रूरी होने के नतीजे पर पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने मास्क में फिटेड फिल्टरेशन एफिशिएंसी का पता लगाया। इसके लिए शोधकर्ताओं ने 10/10 फुट की साइज के स्टेनलेस स्टील के एक चैंबर का उपयोग किया। इसमें शोधकर्ताओं ने नमक के छोटे कणों को भेजा। इसके बाद शोधकर्ताओं ने मास्क की प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए अलग अलग तरह के मास्क का उपयोग किया। इसके लिए मास्क पहनने वाले हर शोधकर्ता के मास्क में एक पोर्ट लगाया ताकि मास्क को पार कर नाक तक पहुंचने वाले नमक के कणों का पता लगाया जा सके।

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इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने उस दौरान इधर उधर ताकने ऊपर नीचे झुकने जैसी तमाम गतिविधियां की जो कि कोई व्यक्ति अमूमन करता है। शोध के नतीजे में यह बात निकल कर सामने आई कि चिकित्सीय प्रक्रिया में उपयोग में लाए जाने वाले मास्क 40 फीसदी तक कारगर हैं। वहीं अगर इन मास्क को सर्जिकल मास्क के ऊपर पहना जाए तो इनकी प्रभावकारिता लगभग 20 फीसदी तक बढ़ जाती है। 

कोरोना की पहली और दूसरी लहर में क्या हैं अंतर 

कोरोना की पहली और दूसरी लहर में संक्रमण के लक्षण बिल्कुल अलग हैं। पहली लहर में मरीजों को सुखी खांसी, स्वाद का चले जाना, बदन दर्द जैसी शिकायतें होती थीं। लेकिन इस दफा सांस लेने में तकलीफ़ की शिकायतें ज़्यादा हैं। लक्षणों का अंतर अस्पतालों में भी साफ तौर पर दिख रहा है। पहली लहर में अस्पतालों में वेंटिलेटर की ज़रूरत थी। लेकिन इस लहर में अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग है। 

इसके साथ ही पहली लहर के मुकाबले संक्रमित व्यक्तियों की उम्र में भी अंतर है। पहली लहर बुज़ुर्ग व्यक्तियों को ज़्यादा अपनी चपेट में ले रही थी। लेकिन इस लहर में युवा संक्रमण की चपेट में अधिक आ रहे हैं। बच्चों में भी वायरस की यह लहर अधिक प्रभाव डाल रही है। इस लहर में सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि आरटी पीसीआर जांच भी पूरी तरह से कारगर सिद्ध नहीं हो रही हैं। कोरोना की आरटी पीसीआर जांच भी धोखा दे रही हैं। कई मरीजों के कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ रही है। गुजरात के वडोदरा में तो डाक्टरों ने हाल ही में हाई रिजॉल्यूशन सिटी स्कैन भी शुरू कर दिया है। वडोदरा नगर निगम ने तो बीमा कंपनियों से आरटी पीसीआर जांच में निगेटिव पाए जाने वाले लोगों को भी कोरोना से संक्रमित ही समझने के लिए कहा है। 

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कोरोना के लक्षण महसूस होने पर लगवाएं वैक्सीन 

विभिन्न डॉक्टरों की यह राय है कि जिन लोगों को कोरोना के लक्षण महसूस हो रहे हैं, वे कोरोना की वैक्सीन लगवाने से बचें। अपोलो होम हेल्थकेयर के सीईओ डॉक्टर महेश जोशी ने हाल ही में एक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कहा है कि कोरोना के हल्के लक्षण महसूस करने वाले लोगों को मैं यही सलाह दूंगा कि वे वैक्सीन की दूसरी डोज को दो हफ्तों के लिए टाल दें।

वहीं मैक्स अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट विवेक नांगिया की भी राय में कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों को वैक्सीन लगवाने का इरादा त्याग देना चाहिए। उनका कहना है कि संक्रमित व्यक्ति द्वारा वैक्सीन लगाए जाने पर बहुत दिक्कत हो सकती है। डॉक्टर नांगिया के मुताबिक अगर कोरोना के संक्रमण को लेकर ज़हन में थोड़ा भी शक हो तो वैक्सीन लगवाने के इरादे को त्याग देना ज़्यादा बेहतर होगा। नांगिया ने कहा है कि शोध से यह बात निकल कर सामने आई है कि वैक्सीन की दूसरी खुराक में देरी से इम्युन बढ़ने की संभावना ज़्यादा होती है।