गरीबों के लिए कुछ करो सर, आपसे नहीं होता तो मुझे कलेक्टर बना दो, आदिवासी बेटी की DM से गुहार

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ में छात्राओं ने कलेक्टर आवास को घेरा, ग्रेजुएशन की छात्रा बोली- हम यहां भीख मांगने नहीं आए हैं, हम गरीबों के लिए कुछ करो, 2 वर्ष से नहीं मिली है छात्रवृत्ति

Updated: Dec 22, 2021, 02:45 PM IST

झाबुआ। "नहीं तो सर हमें कलेक्टर बना दो, हम बनने के लिए तैयार हैं। सबकी मांगें पूरी कर देंगे सर। आप काम कर नहीं पाते तो। किसके लिए बनी है ये सरकार? जैसे कि हम भीख मांगने के लिए यहां आए हैं। हम गरीबों के लिए तो कुछ व्यवस्था करो सर। हम इतने दूर से आते हैं आदिवासी लोग, कितने पैसे किराया देकर आते हैं।' कलेक्टर आवास के बाहर निर्भीकता से खड़े होकर एक कम उम्र की छात्रा का यह बोलते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।

वायरल वीडियो मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले का है। वीडियो में कलेक्टर से डटकर अपना हक मांग रही छात्रा का नाम निर्मला चौहान है। 20 वर्षीय निर्मला झाबुआ स्थित कन्या महाविद्यालय से बीए फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रही हैं। हम समवेत ने निर्मला से जब इस गुस्से की वजह पूछा तो पता चला कि उन्हें कॉलेज जाने के दौरान बीच रास्ते में ही बस से उतार दिया जाता है। कारण यह है कि किराया भरने के लिए 5-10 रुपए भी उनके पास रोज नहीं होते।

निर्मला के मुताबिक साल भर से आदिवासी छात्राओं को अबतक छात्रवृत्ति की राशि नहीं मिली है। सरकार यदि छात्रवृत्ति की राशि देती तो वो कम से कम बस का किराया देकर कॉलेज पढ़ने के लिए तो आ सकते हैं। निर्मला बताती हैं कि वे और उनके साथ पढ़ने वाली अधिकांश छात्राएं सुदूर ग्रामीण इलाकों से आती हैं। सिर्फ कॉलेज आने-जाने में ही प्रतिदिन किसी को 10 रुपए तो किसी को 20 रुपए बस का किराया देना होता है। कई बार एक साइड के किराए का इंतजाम हो जाता है तो वापस पैदल घर आना पड़ता हैं।

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निर्मला और उनके साथ कलेक्ट्रेट का घेराव कर रही छात्राओं की बस इतनी मांग है कि सरकार बस का किराया फ्री कर दे और उन्हें छात्रवृत्ति की राशि दे। वरना संसाधनों के आभाव में सैंकड़ों छात्राओं का सपना अधूरा रह जाएगा। छात्राओं के साथ इस दौरान कई छात्र और छात्र संगठन एनएसयूआई के कुछ सदस्य भी प्रदर्शन कर रहे थे। छात्रों की भी कमोबेश इतनी ही मांग है कि लाइब्रेरी जैसी आवश्यक चीजें उपलब्ध हो सके।

प्रदर्शन का नेतृत्व रहे झाबुआ NSUI जिलाध्यक्ष विनय भाभोर में कहा कि, 'हम अपना अधिकार मांग रहे हैं। आदिवासियों को सरकार शिक्षा से वंचित नहीं कर सकती। ये हमारा संवैधानिक अधिकार है। इस देश के मूलनिवासियों के साथ इतना भेदभाव क्यों? हमारी पीढ़ी पहली बार कॉलेजों के चारदीवारी के भीतर दाखिल हुई है। ये चाहते कि आदिवासियों का कोई बच्चा पढ़कर अफसर न बने। शिवराज सरकार हमें सिर्फ जल, जंगल और जमीन तक सीमित रखना चाहती है लेकिन सरकार ये जान ले कि दुनिया की कोई भी ताकत आदिवासियों को कलम, कागज और किताब से वंचित नहीं कर सकती।'

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बता दें कि मध्य प्रदेश सरकार आदिवासी वोट बैंक को लुभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। बिरसा मुंडा जयंती पर आदिवासी गौरव दिवस से लेकर टंट्या भील बलिदान दिवस तक के समरोह कराने में सरकार ने करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए। हालांकि, इन समारोहों से आदिवासियों के जीवन में कोई क्रांतिकारी तब्दीली नहीं आ सकी क्योंकि जो पैसे आदिवासियों के कल्याण में खर्च होने थे उन पैसों को सरकारी समारोहों और प्रचार प्रसार में खर्च कर दिया गया। ऐसे में अब सुविधाओं से वंचित आदिवासी समाज के लोगों का सरकार के खिलाफ गुस्सा सामने आ रहा है।