MP में प्रेस की आवाज को दबाने की तैयारी, अस्पतालों की कुव्यवस्था रिपोर्ट करेंगे तो होगी कार्रवाई

मध्यप्रदेश में अस्पतालों की कुव्यवस्था को लेकर रिपोर्टिंग करना पड़ सकता है महंगा, खंडवा भास्कर के खिलाफ प्रशासन ने जारी किया नोटिस, डिजास्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की चेतावनी

Updated: Apr 20, 2021, 01:37 PM IST

Photo Courtesy: Ifex.org
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खंडवा। कोरोना काल में सरकारी कुव्यवस्थाओं के लिए प्रतिदिन देशभर में सुर्खियां बटोरने वाले मध्यप्रदेश में अब मीडिया की आवाज को दबाने की तैयारी की जा रही है। खंडवा जिला प्रशासन ने राज्य के एक प्रमुख दैनिक अखबार को नोटिस भेजा है। अखबार की गलती यह है कि उसने जिला अस्पताल में व्याप्त लापरवाही और कुव्यवस्था को जनता के सामने रख दिया। शासकीय अस्पताल में ऑक्सीजन और बेड्स की कमी की खबर को लेकर प्रशासन ने संपादक को आईटी और डिजास्टर एक्ट जैसी गंभीर धाराओं के तहत कार्रवाई की चेतावनी दी है।

दरअसल, खंडवा भास्कर ने बीते शनिवार जिला अस्पताल की कुव्यवस्थाओं और लापरवाहियों को धड़ल्लेसे रिपोर्ट किया। हिंदी अखबार ने बताया कि जिला अस्पताल के सभी आईसीयू व ऑक्सीजन सपोर्ट बेड्स फुल हो चुके हैं। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया कि किस तरह अस्पताल प्रबंधन द्वारा संदिग्ध कोरोना मरीजों को भी छुट्टी दे दी जा रही है। इसमें बताया गया था कि एक मरीज को 12 घंटे के भीतर ही बोला गया कि वह अस्पताल से जाए क्योंकि वह ठीक हो चुका है। यह बात किसी के गले नहीं उतरी कि करीब 30 फीसदी लंग्स में संक्रमण होने के बाद 12 घंटे में कौन सी घुट्टी पिलाकर मरीज को ठीक किया गया।

इतना ही नहीं अखबार ने विस्तृत रूप से यह भी बताया गया था कि ऑक्सीजन की कमी को हैंडल करने के लिए प्रशासन ने क्या व्यवस्था की है। खंडवा भास्कर के मुताबिक अस्पताल में रातभर के लिए 10 पुलिस के जवानों को ड्यूटी पर भेजा गया था ताकि ऑक्सीजन के लिए तड़पते मरीज अस्पताल में कोई बवाल न करें। इस तरह के अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए अस्पताल में पुलिस लगा दिए गए थे। इतना ही नहीं पुलिस के द्वारा पीड़ितों के परिजनों को धक्के मारकर भगाने की भी जानकारी दी गई थी। 

अखबार की यह रिपोर्ट राज्य की शिवराज सरकार के तमाम दावों को झूठा साबित करने के लिए पर्याप्त थी। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सरकार और खंडवा प्रशासन की खूब किरकिरी भी हुई। लेकिन लोकतंत्र के चौथे खंभे के द्वारा सरकारी दावों को खारिज करना सरकार और प्रशासन को रास नहीं आया। इस खबर के दो दिन बाद प्रशासन ने अपना नोटिसरूपी हथौड़ा चलाया और संपादक को अप्रत्यक्ष रूप से गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी।

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सोमवार को जिला प्रशासन ने अखबार के संपादक को संबोधित एक नोटिस में आरोप लगाया कि आपकी इस रिपोर्ट की वजह से जनमानस के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है साथ ही आमजन को जागरूक करने के प्रयासों को आघात पहुंचा है। प्रशासन ने संपादक को 24 घंटे के भीतर न्यायालय में उपस्थित होकर यह जानकारी देने को कहा है कि ये बात उन्हें कैसे पता चली। इस नोटिस में चेतावनी भरे लहजे में पूछा गया है कि क्यों न आपके विरुद्ध आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 54, आईटी एक्ट 2000 की धारा 66(D) तथा भारतीय दंड विधान 1860 की धारा 505(1) के तहत एफआईआर दर्ज की जाए। 

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से लगातार मरीजों की मौत हो रही है। कल ही राजधानी भोपाल के एक अस्पताल में 10 मरीजों तड़प-तड़प कर मर गए लेकिन उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पाया। पिछले दो हफ्ते के भीतर राज्यभर में करीब 56 मरीजों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई है जो मीडिया में रिपोर्ट हुई है। हालांकि, सरकार ने एक भी मौत का कारण ऑक्सीजन की कमी को नहीं माना है। उधर शिवराज सरकार में मंत्रियों का कहना है कि उम्र होने के बाद लोग मरते ही हैं। ये बयान सरकार की संवेदनशीलता की कहानी बताने के लिए काफी है, और चिंता का विषय यह है कि ऐसे बयान लगातार दिए जा रहे हैं।

राज्य में चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था और मैनेजमेंट की हालत यह है कि तीन दिन पहले ही राजधानी भोपाल से 863 रेमडेसीवीर इंजेक्शन के डोज चोरी हो गए हैं। मध्यप्रदेश के इस हाल को देखते हुए विपक्ष ने आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। चर्चाएं इस बात की भी है कि इन्हीं वजहों से खंडवा प्रशासन ने संपादक को नोटिस भेजा है ताकि इससे प्रदेश के पत्रकारों में एक संदेश जाए और डर कर माहौल उतपन्न हो सके। इससे पत्रकार कुव्यवस्थाओं की हकीकत को लेकर रिपोर्टिंग करने से बचेंगे। 

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यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि खंडवा प्रशासन ने ऐसे समय में मीडिया को दबाने का प्रयास किया है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगातार यह कह रहा है कि भारत मे प्रेस की आवाज को हर दिन दबाया जा रहा है। साल 2014 में जब से नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है तब से भारत का प्रेस फ्रीडम इंडेक्स पर रैंक भी घटता जा रहा है। वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020 के मुताबिक मीडिया की स्वतंत्रता के मामले में दुनिया के 180 देशों में भारत 142वें स्थान पर है। यह वाकई चिंता की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज को इस तरह से दबाया जा रहा है।