Ram Temple: मध्यप्रदेश के कोठारी बंधु गुमनाम नायक

पिता ने बहन की शादी के लिए एक को रुकने कहा, लेकिन जिद पर अड़े थे दोनों भाई

Updated: Aug 06, 2020, 01:38 AM IST

courtsey : twitter
courtsey : twitter

भोपाल। अयोध्या में राम मंदिर का भूमिपूजन किया जा रहा है, ऐसे में अयोध्या आंदोलन के उन गुमनाम नायकों को याद करना जरूरी हो जाता है जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए अपनी शहादत दी थी। यह कहानी है मध्यप्रदेश के 20 और 22 साल के दो भाइयों की जिन्होंने विवादित ढांचे पर सबसे पहले ध्वज फहराया था। 20 वर्षीय शरद कोठारी और 22 वर्षीय रामकुमार कोठारी की 2 नवंबर 1990 को अयोध्या में कारसेवा करने के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। 

बैतूल में पढ़े, अयोध्या में शहीद

युवा कारसेवक राम और शरद मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में पले-बढ़े थे। उन्होंने भारत भारती आवासीय विधायल जामठी से अपनी 5वीं तक कि शिक्षा प्राप्त की थी। दोनों भाइयों ने यहां से पांचवीं की पढ़ाई पूरा करने के बाद कोलकाता चले गए थे। 1990 में जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था तब इन दोनों भाइयों ने भी अयोध्या जाकर कारसेवा करने का निश्चय किया था। 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अपने पिता हीरालाल कोठारी को अपना इरादा बताया। उसी साल दिसंबर में उनकी बहन पूर्णिमा की शादी तय थी। दोनों भाइयों ने वादा किया था कि बहन की शादी के पहले वेदोनों वापस लौट आएंगे। 

शादी में आने का वादा रहा अधूरा 

हीरालाल कोठारी ने दोनों बेटों के समक्ष शर्त रखी कि एक भाई अयोध्या जाएगा और एक भाई यहीं रुककर शादी की तैयारियां करेगा। हालांकि दोनों भाइयों का अयोध्या जाने का निश्चय अटल था। आखिर में हीरालाल एक शर्त पर राजी हुए जिसके मुताबिक दोनों भाईयों को प्रतिदिन अयोध्या से घर के लिए खत लिखना था। अयोध्या के लिए निकलने से पहले उन्होंने ढेर सारे पोस्टकार्ड्स भी खरीदे थे। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। उनका विवाह के पहले लौट आने का वादा अधूरा रह गया और दोनों अयोध्या में कारसेवा के दौरान शहीद हो गए।

मौत के महीने भर बाद पहुंची चिट्ठी

दिसंबर 1990 के पहले सप्ताह में बहन पूर्णिमा के विवाह के पूर्व भाईयों की एक चिट्ठी घर पहुंची थी। यह वही चिट्ठी थी जिसे उन्होंने मरने के एक दिन पहले लिखी थी और उनके मौत के एक महीने बाद घर पहुंची थी। उनके मौत के एक महीने बाद घर पहुंची चिट्ठी में भी उन्होंने जल्द वापस आने का वादा किया था। 

200 किमी पैदल चलकर पहुंचे थे अयोध्या

बताया जाता है कि शरद और राम दोनों ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से अयोध्या के लिए ट्रेन पकड़ी थी। सरकार ने ट्रेनें रद्द कर दिए थे इस वजह से वे बनारस आकर रुक गए। बनारस से वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक पहुंचे। यहां से आगे सड़क मार्ग भी बंद था नतीजन उन्होंने 25 अक्टूबर से 30 अक्टूबर के बीच पांच दिनों तक पैदल चलकर 200 किलोमीटर का रास्ता तय किया। 30 अक्टूबर को विवादित ढांचे पर पहुंचने वाले शरद पहले व्यक्ति थे। उन्होंने विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़कर भगवा पताका लहराई थी। इसके बाद दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठीचार्ज कर वहां से खदेड़ दिया था।

CRPF इंस्पेक्टर ने मारी थी गोली

गुंबद पर भगवा ध्वज लहराकर कोठारी भाइयों ने प्रदेश सरकार की हवा निकाल दी थी और रातों-रात मंदिर आंदोलन के पोस्टर बॉय बन गए थे। उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इसके पहले दावा किया था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। इसके बाद 2 नवंबर को बजरंग दल के नेता विनय कटियार के नेतृत्व में हजारों कारसेवक हनुमानगढ़ी की तरफ बढ़ रहे थे। इसी भीड़ में दोनों भाई भी शामिल थे। इस दौरान सुरक्षाबलों ने गोली चलाई तो दोनों पास के एक घर में जा छिपे। बाद में सुरक्षाबलों के जवानों ने दोनों को गोली मार दी और वे अयोध्या के माटी में विलीन हो गए। 4 नवंबर 1990 को अयोध्या के सरयू घाट पर दोनों का अंतिम संस्कार किया गया था।