मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाक़ों में 5760 स्कूल बंद करेगी शिवराज सरकार

कर्ज में डूबी मध्यप्रदेश सरकार को उबारने के लिए आदिवासी बच्चों को चुकानी होगी कीमत, कांग्रेस बोली- छोड़ पढ़ाई, उठा कढ़ाई

Updated: Dec 14, 2020, 08:52 PM IST

भोपाल। शिवराज सरकार द्वारा लगातार लिए गए कर्ज की कीमत अब आदिवासी बच्चों को चुकानी होगी। मध्यप्रदेश सरकार ने खर्चे कम करने के लिए प्रदेश के आदिवासी इलाकों में पांच हजार से ज्यादा स्कूलों को बंद करने का फैसला लिया है। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी हालिया आदेश के मुताबिक राज्य के 20 जिलों के 89 आदिवासी ब्लॉक में संचालित हो रहे 5760 स्कूलों को बंद किया जाएगा। 

स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा 20 जिलों के 89 आदिवासी ब्लॉक में अब तक 10506 संचालित हो रहे थे। लेकिन सरकार के इस नए फैसले के तहत 5760 स्कूल बंद होने के बाद अब इन क्षेत्रों में 4746 ही स्कूल संचालित किए जाएंगे। ये सभी स्कूल हॉयर सेकेंडरी स्कूल होंगे। इनमें 1 से 12वीं तक की क्लासें एक ही शाला परिसर में लगेंगी। स्कूल शिक्षा विभाग ने यह निर्देश संबंधित जिलों को भेज दिया है।

शिवराज सरकार के इस फैसले पर विपक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई है। कांग्रेस ने सरकार को आदिवासी विरोधी करार दिया है। मध्यप्रदेश कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से ट्वीट किया, 'मध्य प्रदेश के- 20 जिलों के 5760 स्कूल बंद होंगे। “छोड़ पढ़ाई, उठा कढ़ाई”

 

 

आदिवासियों से इतनी नफरत क्यों ?

सरकार के इस फैसले पर कुक्षि विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल ने पूछा है कि सीएम शिवराज सिंह चौहान को आदिवासियों से इतनी नफरत क्यों है? उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि आदिवासियों को शिक्षा से वंचित करने के शिवराज सरकार के मंसूबे को कांग्रेस कामयाब नहीं होने देगी। बघेल ने ट्वीट किया, '5 हजार स्कूल आदिवासी ब्लॉक क्षेत्रों में बंद करेगी शिवराज सरकार??? आदिवासियों को शिक्षा से वंचित करने के शिवराज सरकार के मंसूबे को सफल नहीं होने देंगे हम। शिवराज जी आखिर आदिवासी समाज से इतनी नफरत क्यों??'

 

 

स्कूल बंद करने को लेकर दिए जा रहे हैं अजीबोगरीब तर्क

हैरान करने वाली बात यह है कि प्रदेश सरकार इस फैसले को लेकर अजीबोगरीब तर्क दे रही है। सरकार का कहना है कि इन आदिवासी ब्लॉकों में कई स्कूल बेहद ग्रामीण क्षेत्रों में थे। जहां शिक्षकों को हर दिन जाने में परेशानी होती थी। जबकि यहां छात्रों की संख्या भी ज्यादा नहीं रहती थी। इसलिए स्कूल शिक्षा विभाग ने यह फैसला किया है कि 150 मीटर की परिधि में एक ही स्कूल संचालित होने से टीचरों को भी परेशानी नहीं होगी और छात्रों को भी बार-बार स्कूल नहीं बदलना पड़ेगा।

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हालांकि, जानकारों का कहना है की सरकार के इस फैसले के पीछे मुख्य वजह प्रदेश की बदहाल अर्थ व्यवस्था और फिसड्डी आर्थिक नीतियां हैं जिसका कीमत आदिवासी बच्चों को चुकाना पड़ रहा है। बात दें की दुबारा सत्ता में वापसी के बाद पिछले नौ महीनों में सरकार ने 10 बार बाजार से कर्ज लिया है। सरकार ने इस दौरान करीब 12 हजार करोड़ रुपए कर्ज लिए हैं। बीते महीनों में शिवराज सरकार ने जिस तरह लगातार कर्ज़ लिए हैं, उससे लगता है, प्रदेश की सरकार कर्ज़ के भरोसे ही चलाई जा रही है। 

हैरान करने वाली बात यह है कि आबादी के लिहाज से प्रदेश के प्रत्येक नागरिक पर पहले से ही 34 हजार रुपए से ज्यादा का कर्ज है। फिलहाल मध्य प्रदेश सरकार पर 2 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा कर्ज हैं। मध्य प्रदेश के कुल बजट का 15 फीसदी से ज्यादा हिस्सा कर्ज चुकाने में ही चला जाता है। मध्य प्रदेश सरकार हर साल 16 हजार करोड़ रुपये ब्याज़ भरती है। अब सवाल यह है कि अगर ऐसे ही आर्थिक हालात बदतर होते रहे तो आने वाली पीढ़ियों का भविष्य कैसे सुरक्षित होगा।