मुख्यमंत्री के सोशल मीडिया पोस्ट के समान नहीं है प्रशासनिक आदेश, एमपी हाई कोर्ट की टिप्पणी

हाई कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जब तक मजिस्ट्रेट के आदेश और किसी सरकारी अधिकारी के सोशल मीडिया पोस्ट में कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हो जाता तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि जिला मजिस्ट्रेट ने सोशल मीडिया पोस्ट या उस सरकारी अधिकारी के निर्देश के तहत काम किया है

Updated: Jul 26, 2021, 12:17 PM IST

भोपाल। मुख्यमंत्री का सोशल मीडिया पोस्ट और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश एक समान नहीं हैं। मुख्यमंत्री द्वारा सोशल मीडिया पर किए गए किसी पोस्ट को किसी प्रशासनिक आदेश से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी के एक आरोपी की हिरासत को बरकरार रखते हुए की। 

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की सुजॉय पॉल और अनिल वर्मा की खंडपीठ ने यह स्पष्ट रूप में कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा किए गए सोशल मीडिया पोस्ट को किसी प्रशासनिक पदानुक्रम में नहीं देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जब तक उच्च अधिकारी के पोस्ट में और प्रशासनिक आदेश में कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हो जाता तब तक इसे अलग अलग कर के ही देखा जाना चाहिए।  

दरअसल हाई कोर्ट में रेमडेसिविर की कालाबाज़ारी के आरोपी के वकील मुदित महाश्वरी ने यह तर्क दिया कि मुख्यमंत्री केवल अपनी राय व्यक्त कर रहे थे कि रेमडेसिविर की कालाबाज़ारी करने वालों के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई की जा सकती है और जिला मजिस्ट्रेट ने मुख्यमंत्री के पोस्ट के आधार पर ही आदेश को पारित किया। 

याचिकाकर्ता के इस तर्क पर अदालत ने कहा कि उच्च अधिकारी के सोशल मीडिया पोस्ट को और किसी प्रशासनिक के आदेश को एक साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता। जब तक कि सोशल मीडिया पोस्ट और आदेश में कोई सीधा संबंध न स्थापित हो जाए। साथ ही में कोर्ट ने यह भी कहा कि जिला मजिस्ट्रेट के आदेश की जब कोर्ट ने समीक्षा की तब कोर्ट इसी नतीजे पर पहुंचा कि आदेश विवेक और कानून के अनुसार जारी किया गया। कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि अत्यधिक संकट के समय में रेमडेसिविर की कालाबाज़ारी करना एक घिनौना कृत्य। है और रासुका की धारा 3 का इस्तेमाल कालाबाज़ारी करने वालों के खिलाफ किया जा सकता है।