शासक बदलने से खत्म नहीं होता तानाशाही का खतरा, चीफ जस्टिस रमन्ना ने की टिप्पणी

चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा कि जो कुछ भी समाज में घटित होता है, उससे जज अछूते नहीं रहते, क्योंकि वे सब भी इसी समाज का हिस्सा हैं

Updated: Jul 01, 2021, 09:33 AM IST

Photo Courtesy : Indian Express
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नई दिल्ली।चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा है कि शासक बदलने से तानाशाही का खतरा कम नहीं हो जाता है। चीफ जस्टिस ने पीडी देसाई मेमोरिल में ऑनलाइन लेक्चर देते समय यह बात कही। चीफ जस्टिस ने कहा कि शासक का बदल जाना तानशाही के खतरे के कम होने की गारंटी नहीं होता। चीफ जस्टिस ने असहमति और विरोध को लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा करार दिया।  

इसके साथ ही चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने न्यायाधीशों को सोशल मीडिया के प्रभाव से बचने की हिदायत दी है। चीफ जस्टिस ने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सोशल मीडिया का प्रभाव समाज में ज्यादा है। इसलिए यह जरूरी है कि जज सोशल मीडिया के प्रभाव को खुद पर हावी न होने दें। 

चीफ जस्टिस ने कहा कि सोशल मीडिया का शोर बहुत दूर तक सुनाई देता है। ऐसा न्यू मीडिया के टूल्स में ताकत के कारण होता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यू मीडिया की टूल्स में इस बात की क्षमता नहीं है कि वह सही और गलत का फर्क कर सके। लिहाजा जजों को हमेशा यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सोशल मीडिया की राय के बहाव में आना किसी भी लिहाज से उचित नहीं है। चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि जो कुछ भी समाज में घटित होता है, उससे जज अछूते नहीं रह सकते, क्योंकि वे भी इसी समाज का हिस्सा हैं। 

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न्यायपालिका की पूर्ण आजादी है ज़रूरी 
चीफ जस्टिस ने न्यायपालिका की आजादी को सबसे जरूरी बताया। चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर सरकार की ताकत और उसके एक्शन पर किसी तरह का चेक लगाना है तो यह ज़रूरी है कि न्यायपालिका पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी किसी तरह का दबाव न हो। न्यायपालिका पर विधायिका का किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा होगा तो फिर देश में कानून का शासन वैसा नहीं रहेगा, जैसा कि रहना चाहिए।