सांप्रदायिक रिपोर्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र से कहा, क्यों नहीं रोकते उकसाने वाले प्रोग्राम

सुप्रीम कोर्ट ने तबलीगी जमात पर मीडिया रिपोर्टिंग के मामले की सुनवाई के दौरान कहा, उकसाने वाले कंटेंट दिखाने पर सरकार आंखें बंद क्यों कर लेती है, इसे रोकना बेहद जरूरी है

Updated: Jan 28, 2021, 12:27 PM IST

Photo Courtesy : LiveLaw
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नई दिल्ली। सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाली टीवी रिपोर्टिंग पर सुप्रीम ने सख्त टिप्पणी की है। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि जब टीवी पर उकसाने वाला केंटेंट प्रसारित होता है तो वो उन्हें रोकने के लिए कार्रवाई क्यों नहीं करती। न्यायालय ने अपनी टिप्पणी के दौरान गणतंत्र दिवस पर किसानों के ट्रैक्टर मार्च के कवरेज का ज़िक्र भी किया। अदालत ने कहा कि जब उकसाने वाला कंटेंट प्रसारित होता है तब सरकार अपनी आंखें मूंद लेती है। कोर्ट ने कहा है कि ऐसी टीवी रिपोर्ट्स पर रोक लगाना ज़रूरी है, जिनसे हिंसा भड़कती हो।

दरअसल, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट तबलीगी जमात की मीडिया रिपोर्टों के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिंद व पीस पार्टी समेत अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाओं में उन खबरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है, जिन्होंने तबलीगी जमात के कार्यक्रम वाली जगह पर कोरोना इंफेक्शन के मामले पाए जाने को सांप्रदायिक रूप दिया था। इस दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा का  जिक्र भी किया। इस दौरान इंटरनेट सेवा बंद किए जाने का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि निष्पक्ष और ईमानदार कवरेज पर कोई एतराज नहीं हो सकता। समस्या तब पैदा होती है जब उकसाने वाली बातें कही जाती हैं। सच्चाई यह है कि कई प्रोग्राम्स में उकसाने वाली बातें होती हैं और तब सरकार कुछ नहीं करती।

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कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि भड़काऊ कवरेज पर नियंत्रण उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एहतियाती कदम उठाना। आपको कानून व्यवस्था की स्थिति देखनी है। चीफ जस्टिस ने कहा, 'मैं नहीं जानता कि आपने इस बारे में आंखें क्यों बंद की हुई हैं। हम सरकार को कहना चाहते हैं कि वह कुछ नहीं कर रही है। फेक न्यूज़ कि वजह से हिंसा हो, किसी की जान जाए, यह नहीं होना चाहिए। ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होनी चाहिए किसी खबर की वजह से।'

जस्टिस बोबड़े ने आगे कहा, '26 जनवरी को आपने इंटरनेट शटडाउन किया क्योंकि किसान दिल्ली आ रहे थे। किसी तरह की समस्या उत्पन्न न हो इसलिए आपने इंटरनेट बंद कर दिया। लेकिन उकसावे वाली रिपोर्टिंग की वजह से इस तरह की समस्या कहीं भी उत्पन्न हो सकती है। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रिवेंटिव कदम उठाना जरूरी है। भड़काऊ बातों पर रोक उतनी ही ज़रूरी है जितनी पुलिस के हाथों में लाठी।'

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जमीयत-उलेमा-हिंद ने कोरोना के शुरुआती दौर में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में आए लोगों में कोरोना इनफेक्शन पाए जाने से जुड़े मीडिया कवरेज को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि मीडिया ने इन खबरों को इस तरह दिखाया जैसे मुस्लिम समुदाय के लोग कोरोना फैलाने की मुहिम चला रहे हों। कोर्ट को इस पर रोक लगानी चाहिए और झूठी खबरें फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश देना चाहिए। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट से जवाब मांगा तो उसने अपने हलफनामे में कहा कि सरकार इस मामले में मीडिया को रिपोर्टिंग करने से नहीं रोक सकती। यह प्रेस की स्वतंत्रता का मामला है और तबलीगी जमात के बारे में ज्यादातर रिपोर्ट्स गलत नहीं थीं।' सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस जवाब को संतोषजनक नहीं माना है।