केंद्र सरकार और ट्विटर के बीच बढ़ी तनातनी, कंटेंट ब्लॉक करने के आदेश को कंपनी ने दी कोर्ट में चुनौती

केंद्र सरकार ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर को कुछ कंटेंट हटाने का निर्देश दिया था, हालांकि, अब कंपनी ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करार देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया है

Updated: Jul 06, 2022, 03:54 AM IST

नई दिल्ली। केंद्र सरकार और माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। कंपनी ने सरकार के कुछ आदेशों के खिलाफ न्यायालय का रुख किया है। केंद्र ने ट्विटर को कंटेंट ब्लॉक करने संबंधी जो निर्देश दिए थे, उसे कंपनी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करार देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर किया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र सरकार ने ट्विटर को कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे किसान आंदोलन से जुड़े प्रोफाइल के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए थे। केंद्र ने इन्हें खालिस्तानी समर्थक बताया था। इसके अलावा कोरोना महामारी से निपटने में मोदी सरकार की आलोचना करने वाली पोस्ट समेत विभिन्न सामग्रियों पर कार्रवाई करने को भी कहा था। जिन लोगों के अकाउंट्स में पब्लिश सामग्री को हटाने के लिए कहा गया था, उनमें बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा और विनोद कापड़ी भी शामिल थे।

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केंद्र सरकार की ओर से बीते साल जनवरी और अप्रैल में ये नोटिस जारी किए गए थे। इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड आईटी मिनिस्ट्री का कहना था कि यदि इन ट्वीट्स को नहीं हटाया गया तो फिर ट्विटर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सरकार का कहना था कि आदेश का उल्लंघन करने पर ट्विटर के मुख्य अनुपालन अधिकारी पर आपराधिक कार्रवाई की जाएगी। इन्हीं आदेशों को चुनौती देते हुए ट्विटर ने अब कर्नाटक हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। 

कंपनी का कहना है कि कॉन्टेंट को ब्लॉक करने का आदेश आईटी ऐक्ट के सेक्शन 69A से अलग है। आईटी ऐक्ट के सेक्शन 69 (A) के मुताबिक यदि कोई सोशल मीडिया पोस्ट या अकाउंट सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ सकता है या फिर देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ सामग्री पोस्ट करता है तो फिर ऐसी पोस्ट्स और अकाउंट के खिलाफ सरकार ऐक्शन ले सकती है। 

ट्विटर ने इन ट्वीट्स के खिलाफ यह कहते हुए कार्रवाई करने से इनकार कर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। मामले पर सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कोई चाहे भी कंपनी हो, किसी भी सेक्टर की हो। उन्हें भारत के कानून मानने ही होंगे। यह हर एक की जिम्मेदारी है कि वह संसद द्वारा पारित कानूनों का पालन करे।