तब नायक बने थे, अब सवालों से घिर गए गोगाई

Publish: Mar 18, 2020, 12:45 PM IST

ranjan gogoi and PM modi
ranjan gogoi and PM modi

नईदिल्‍ली।

पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को 16 मार्च के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए नामित किया। इस खबर के आते ही इस फैसले पर सवाल उठने लगे। सवाल इस लिए कि पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने 12 जनवरी 2018 को जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस मदन बी लोकुर के साथ बहुचर्चित प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। यह पहली बार था, जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने इस तरह से लोगों के बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मोर्चा खोला हो। कई मुद्दों को लेकर उन्होंने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की कार्यशैली के साथ केसों के बंटवारे को लेकर भी सवाल उठाया था। उन्होंने तब कहा था कि न्यायापालिका की आजादी खतरे में है।

साथी जज कुरियन ने जताया अचरज
उन्होंने राज्यसभा का नामांकन स्वीकार किया तो साथी जज जस्टिस कुरियन ने हैरत से कहा कि वे हैरान हैं कि जिस सीजेआई ने कभी न्यायपालिका की निष्पक्षता और आजादी के लिए ऐसा साहस दिखाया था, उन्होंने ही आजादी के सिद्धांत से समझौता कर लिया। राज्यसभा नॉमिनेशन स्वीकार करके पूर्व सीजेआई ने न्यायपालिका की आजादी पर आम आदमी के यकीन को हिला दिया है और यह आजादी ही भारत के संविधान के मूल में हैं। इस घटना से लोगों के बीच ऐसी धारणा बन रही है कि न्यायपालिका में मौजूद न्यायाधीशों का एक धड़ा या तो निष्पक्ष नहीं रह गया है, या फिर भविष्य की योजनाओं पर काम कर रहा है। जिस मजबूत बुनियाद पर देश का ढांचा खड़ा किया गया है, वह हिल गया है।

तब नायक बन कर उभरे थे...

गौरतलब है कि रंजन गोगोई जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों के साथ मुख्य  न्यायाधीश के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी तब वे एक नायक बनकर सामने आए थे। माना जा रहा था कि ऐसा करने से वह देश का प्रधान न्यायाधीश बनने का मौका खो सकते थे। इन चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस एक तरह से मोदी सरकार पर भी आक्षेप थी। जजों के मोर्चा खोलने के कारण मोदी सरकार की आलोचना हुई थी। हालांकि, जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद रंजन गोगोई ही देश के मुख्यी न्यायाधीश बनाए गए। किन अयोध्या और राफेल से जुड़े दो मामलों में उनकी अगुवाई में दिए गए फैसलों पर विपक्ष ने सवाल खड़े किए थे। माना गया कि उन्होंनने ऐसी कोई टिप्पीणी नहीं की जो केन्द्र  सरकार को परेशानी में डालती हो। इसलिए उनका राज्यसभा में जाना संदेह से देखा जा रहा है। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने इसलिए कहा कि गोगोई को ईमानदारी से समझौता करने के लिए याद किया जाएगा। 

हालांकि, कहा जा रहा है कि न्याय क्षेत्र से विशिष्ट व्यक्ति को मनोनित करने के उद्देश्य से जस्टिस गोगोई का नॉमिनेशन किया गया। दूसरी तरफ, इसे भाजपा सरकार द्वारा असम में राजनीतिक लीड लेने के लिए किया गया फैसला बताया गया है। भाजपा ने गोगाई के बहाने उनके समुदाय का ध्याान अपनी ओर खिंचना चाहा है। गोगोई के जातीय समुदाय का असम में अच्छा  मत प्रतिशत है।