IT सेक्टर में प्रतिदिन 14 घंटे करना होगा काम, कर्नाटक सरकार विवादास्पद प्रस्ताव पर कर रही विचार
कर्नाटक सरकार आईटी कर्मचारियों को 14 घंटे की ड्यूटी अनिवार्य करने के फैसले पर विचार कर रही है। इस प्रस्ताव पर हाल ही में एक बैठक में चर्चा की गई जिसमें श्रम विभाग की ओर से उद्योग जगत के विभिन्न पक्षकारों को बुलाया गया था।

बेंगलुरु। कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार लगातार विवादों में घिरती नजर आ रही है। निजी क्षेत्र में 75 फीसदी आरक्षण के सरकारी फैसले की वापसी के बाद अब एक और विवादास्पद प्रस्ताव सामने आया है। राज्य सरकार आईटी कर्मचारियों को 14 घंटे की ड्यूटी अनिवार्य करने के फैसले पर विचार कर रही है।
दरअसल, इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक साल पहले ही अपने विवादित बयान में युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी। अब कर्नाटक में आईटी कंपनियों ने राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है। इसमें कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ाकर 14 घंटे करने की मांग की गई है। राज्य सरकार इस पर विचार भी कर रही है।
बताया जा रहा है कि इस प्रस्ताव पर हाल ही में एक बैठक में चर्चा की गई, जिसमें श्रम विभाग की ओर से उद्योग जगत के विभिन्न पक्षकारों को बुलाया गया था। श्रम मंत्री संतोष लाड, श्रम विभाग के अधिकारियों के साथ इस बैठक में आईटी/बीटी मंत्रालय के लोग शामिल हुए। इसमें यूनियन के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था। यूनियन ने बहुत सख्ती से इस प्रस्ताव का विरोध किया।
आईटी/आईटीई के कर्मचारियों की यूनियन (किटू) ने सिद्दरमैया के नेतृत्व वाली सरकार से आईटी/आईटीई/बीपीओ सेक्टर में काम के और चार घंटे बढ़ाने के विधेयक (संशोधन) पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। यूनियन का कहना है कि 24 घंटे में से 14 घंटे काम करने के फैसले से कर्मचारियों के निजी जीवन जीने के मूल अधिकार का हनन होगा। इसके बाद श्रम मंत्री ने कोई फैसला लेने से पहले इस विषय में एक दौर की वार्ता की बात कही थी।
बता दें कि इस संशोधन के जरिये कंपनियों को तीन शिफ्ट की प्रणाली के बजाय दो शिफ्ट का सिस्टम बनाने का अवसर मिल जाएगा। ध्यान रहे कि नियमित 14 घंटे काम करने का मतलब अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी दफ्तर के कामकाज में खपा देना है। इससे एक-तिहाई कार्यबल को कामकाज से बेदखल करना भी हो सकता है। यूनियन ने सरकार से इस पर पुनर्विचार करने को कहा। यूनियन ने यह भी कहा कि यह संशोधन ऐसे समय में लाया जा रहा है जब दुनिया ने यह मानना शुरू कर दिया है कि काम के अधिकाधिक घंटों से उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।