केंद्रीय गृहमंत्री से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक, हैदराबाद नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने क्यों उतारी दिग्गजों की फौज

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव बना बीजेपी के लिए नाक का सवाल, सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर, युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या समेत सभी दिग्गज कर रहे हैं प्रचार

Updated: Nov 29, 2020, 09:01 PM IST

Photo Courtesy: Scroll.in
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हैदराबाद। हैदराबाद में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव काफी दिलचस्प हो गए हैं। यह निकाय चुनाव इसलिए ख़ास बन गए हैं क्योंकि यह पहली बार है जब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर देश के गृहमंत्री तक ने एक नगर-निगम चुनाव के जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इसके अलावा बीजेपी ने केंद्रीय मंत्रियों की पूरी फौज और कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी इसमें लगा दिया है।

अब सवाल यह उठता है की तेलंगाना राज्य के एक छोटे से नगर निकाय चुनाव के लिए देश की सबसे मजबूत पार्टी आखिर क्यों अपना सर्वस्व दांव पर लगा रही है? दरअसल, हैदराबाद का निकाय चुनाव बीजेपी के लिए नाक का विषय बन गया है। चूंकि नगर निगम के चुनाव अक्सर स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। बिजली, पानी, सड़क, कूड़ा यही मुद्दे होते हैं। राज्य के बड़े नेता चुनाव प्रचार में चले जाएँ तो वो ही बड़ी बात होती है, क्षेत्रीय पार्टी का अध्यक्ष प्रचार कर ले तो बात फिर भी समझ आती है, लेकिन पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री प्रचार के लिए मैदान में उतरे तो लगता है कि पार्टी का कुछ खास दांव पर है। हैदराबाद सांसद ओवैसी ने तो इसपर तंज कसते हुए यह कहा दिया है कि यहां प्रचार में अब बस ट्रम्प का आना ही बाकी रह गया है।

कैसे बना यह चुनाव नाक का सवाल?

नबंवर की शुरुआत में दुब्बाक असेंबली सीट के लिए यहाँ उपचुनाव हुए थे। यह सीट पारंपरिक रूप से टीआरएस की सीटिंग सीट थी, जो विधायक की मौत के बाद ख़ाली हुई थी। पार्टी ने विधायक की पत्नी को ही उम्मीदवार बनाया था और प्रचार का जिम्मा पार्टी का मुख्य रणनीतिकार सीएम चंद्रशेखर राव के भतीजे हरीश राव के कंधो पर था। लेकिम तमाम कोशिशों के बीच टीआरएस यह चुनाव हार गई और बीजेपी ने तमाम पॉलिटिकल पंडितों के अनुमानों को धता बताते हुए यहां भगवा पताका फहरा दिया। इसी जीत के बाद से पार्टी के हौसले बुलंद हैं।

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वहीं दूसरी ओर बिहार विधान सभा चुनावों में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM पांच सीटें जीतने में कामयाब हुई। इससे उसका मनोबल बढ़ा हुआ है। वहीं बीजेपी भी एनडीए गठबंधन में अब छोटे भाई की भूमिका से निकलकर बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है। दोनों ही दलों ने मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर न केवल अपनी सियासी पैठ जमाई बल्कि विधानसभा में अच्छी सीटें भी जीती हैं। अब दोनों पार्टियां वही प्रयोग पश्चिम बंगाल में करने का भी एलान कर चुकी हैं लेकिन उससे पहले हैदराबाद में दोनों दल दो-दो हाथ करने में पीछे नहीं हटना चाहते हैं।

बीजेपी और एआईएमआईएम दोनों हैं मजबूर

धार्मिक आधार पर वोटरों का ध्रुवीकरण करने वाली देश की दोनों पार्टियां बीजेपी और एआईएमआईएम के लिए हैदराबाद में जी जान लगाना मजबूरी है। आंकड़ों पर गौर करें तो ग्रेटर हैदराबाद की धार्मिक बनावट और जनसंख्या ने बीजेपी की विस्तारवादी नीति को बल दिया है। दक्षिण भारत में निजाम के इस शहर पर फोकस करने कर बीजेपी इस पैसेवाले शहर पर अपना दबदबा बनाना चाहती है। ग्रेटर हैदराबाद में करीब 64.9% हिन्दू हैं, जबकि 30.1% मुस्लिम आबादी है। यहां ईसाई 2.8%, जैन 0.3%, सिख 0.3% और बौद्ध 0.1% हैं।

बीजेपी की इस मजबूरी का ही नतीजा है कि आज हैदराबाद में अमित शाह रोड शो कर रहे हैं जबकि कल ही फायरब्रांड नेता व उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ रोड शो करके गए हैं। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर समेत महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस और युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या लगातार मेहनत कर रहे हैं। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान सीएम योगी ने अपने पुराने अंदाज में जीत के बाद हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने तक की घोषणा कर दी है। 

राम से लेकर रोहिंग्या, जिन्ना, चीन, अमरीका मुख्य चुनावी मुद्दे

ध्रुवीकरण के प्रयास का ही नतीजा है कि हैदराबाद निकाय चुनाव में नाली, सड़क और पानी की जगह अंतराष्ट्रीय स्तर के मुद्दे मुख्य रूप से हावी हैं। इनमें चीन, पाकिस्तान, अवैध घुसपैठिये, आतंकवाद, रोहिंग्या, सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल दिवंगत मोहम्मद अली जिन्ना नेताओं की जुबान पर लगातार छाए हुए हैं। उदाहरण के तौर पर तेजस्वी सूर्या ने चेंज हैदराबाद कार्यक्रम के उद्घाटन में कहा कि एआईएमआईएम को दिया गया हर वोट उसे मिलेगा जो भारत के खिलाफ खड़ा है। उन्होंने दावा किया कि ओवैसी जिन्ना के अवतार हैं और वह जय श्री राम के नारे से डरते हैं। 

वहीं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बी संजय कहते हैं कि यहां रोहिंग्या मुसलमानों को वोटर आईडी कार्ड दे दिया गया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि ओवैसी पाकिस्तानियों और बांग्लादेशियों के वोट से चुनाव जीतते हैं। यदि बीजेपी यह चुनाव जीतती है तो हम पुराने शहर में रह रहे इन घुसपैठियों पर सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे। मामले पर ओवैसी पलटवार करते हुए कह रहे हैं कि बीजेपी जिनपर स्ट्राइक करने की बात कर रही है, वह सभी भारतीय हैं। क्या बीजेपी सरकार में रहने के बावजूद इतनी कमजोर है कि भारतीय जमीन पर अतिक्रमण करने वाले चीनी सेना पर स्ट्राइक नहीं कर सकती? पहले वहां तो स्ट्राइक कर लीजिए।

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इसी बीच सीएम चंद्रशेखर राव ने पुलिस के साथ आपात बैठक के बाद हैदराबाद में दंगे और साम्प्रदायिक तनाव पैदा किए जाने की खुफिया रिपोर्ट होने की बात कही है। टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव ने भी कहा है कि बीजेपी नेता कुछ वोटों के लिए इतने पागल हो गए हैं कि धर्म का मुद्दा उठाकर हैदराबाद की शांति और ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

टीआरएस पर चोट करने का सबसे सही मौका

बीजेपी को लगता है कि यह चुनाव तेलंगाना राज्य में टीआरएस पर चोट करने का भी सही मौका है। इस बार के मॉनसून में जब दो बार तेज़ बारिश हुई तो शहरी इलाक़ों में इसका बहुत बुरा असर पड़ा था। एक तरह से पूरा शहर दो बार डूब गया था। टीआरएस को इस वजह से स्थानीय जनता का रोष झेलना पड़ा था वहीं उपचुनाव में हार के बाद टीआरएस बाहर से थोड़ी कमजोर भी दिख रही है। इस बात का फायदा बीजेपी अपने पुराने तौर-तरीके जिसमें एक 'साइकोलॉजिकल वॉर' रहा है उसे अपना अहम हथियार बनाना चाहती है। 

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माना जाता है कि सीएम चंद्रशेखर राव अपने बेटे केटी रामा राव को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं पर अबतक पार्टी कार्यकर्ताओं में पकड़ उनके भतीजे हरीश राव की है। हरीश राव अबतक पार्टी के जीत के सूत्रधार के तौर पर देखे जाते रहे हैं। हालांकि, उपचुनाव में हार के बाद उन्हें पूरी तरह से साइडलाइन कर दिया गया है। इसकी वजह से पार्टी में गुटबाजी भी उभरकर सामने आई है और बीजेपी को पता है कि तेलंगाना में मजबूत होने के लिए इससे सही मौका फिर कभी नहीं मिल सकता।

दक्षिण का किला फतह करने का हो सकता है शुरुआत

अमित शाह को भी जब पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था तो उन्होंने अपना लक्ष्य बीजेपी को पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक मजबूत बनाने रखा था। बीजेपी कई राज्यों में स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं को मजबूत कर और स्थानीय निकाय चुनाव जीतकर विधान सभा चुनावों में जीत का सफल प्रयोग कर चुकी है। हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में इसी फार्मूले के तहत बीजेपी ने न केवल कार्यकर्ताओं में जोश भरा बल्कि सत्ता भी कब्जाई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी बीजेपी में सांगठनिक विस्तार के मूल मंत्र पर काम करती रही है। 

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हैदराबाद निकाय चुनाव में जीत दर्ज कर बीजेपी न केवल दक्षिण में स्थानीय स्तर पर संगठन का विस्तार करना चाहती है बल्कि यह संदेश भी देना चाहती है कि बीजेपी का प्रभाव देशभर में है और उसका प्रसार निरंतर जारी है। इसी हथियार के बल पर बीजेपी पार्टी  कैडर की लंबी श्रृंखला बनाना चाह रही है, जिसके बल पर दक्षिण का किला फतह करने में आसानी हो सके। बीजेपी यह भी चाहती है कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में जीत की गूंज पड़ोसी राज्य तमिलनाडु तक पहुंचे, जहां अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं।

बता दें कि ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (GHMC) की कुल 150 सीटों पर पार्षदों का चुनाव 1 दिसंबर को होना है और 4 दिसंबर को उसके नतीजे आने हैं। इस चुनाव में 1,122 उम्मीदवार मैदान में हैं। खास बात यह है कि इस नगर निगम का सालाना बजट लगभग साढ़े पाँच हजार करोड़ का है और आबादी लगभग 82 लाख लोगों की है। माना जाता है कि हैदराबाद निगम का चुनाव तेलंगाना में सत्ता की चाबी है। पिछले  चुनावों में राज्य की सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति ने 99 सीटें जीती थीं और मेयर पद पर कब्जा जमाया था। तब बीजेपी को सिर्फ 4 और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 44 सीटों से संतोष करना पड़ा था। 

बीजेपी कभी भी तेलंगाना में बड़ी पार्टी नहीं रही है। साल 2018 के अंत में हुए तेलंगाना के 119 सीटों वाली विधानसभा में 88 सीटों के साथ टीआरएस ने कब्जा जमाया था। वहीं 19 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, एआईएमआईएम के केवल सात विधायक जितने में कामयाब हुए थे वहीं बीजेपी के हिस्से केवल 1 विधानसभा आई थी। हालांकि उपचुनाव के बाद अब बीजेपी के 2 वहीं टीआरएस के 87 विधायक हैं।