जी भाईसाहब जी: अचानक मिलने लगी शिवराज सिंह और डॉ. नरोत्तम मिश्रा को बधाइयां
MP Politics: केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार में मंत्री रहे डॉ. नरोत्तम मिश्रा किसी न किसी बहाने चर्चा में रहते हैं। बीते सप्ताह दोनों अचानक दोनों को बधाइयां मिलने लगी। जिस बात के लिए बधाई मिल रही थी वह फैसला अभी दूर है।

राजनीतिक भी मौसम की तरह सर्वाधिक अनिश्चित होती है। कौन जानता था कि एक समय एमपी बीजेपी की नहीं मध्य प्रदेश की राजनीति के केंद्र रहे दो नेता शिवराज सिंह चौहान और डॉ. नरोत्तम मिश्रा का किरदार ऐसा हो जाएगा कि दोनों को अपने बने रहने के लिए संघर्ष करना होगा। दोनों ही नेता अपने कार्यों और सक्रियता के कारण हमेशा चर्चा में रहते हैं और गुजरे सप्ताह ऐसा मौका भी आया जब दोनों को एक साथ बधाइयां मिलने लगी। व्यक्तिगत और सोशल मीडिया पर अचानक चर्चा और बधाइयां देख कर पड़ताल हुई कि आखिर माजरा क्या है?
असल में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मध्य प्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है। कभी मध्यप्रदेश सरकार में नंबर दो की हैसियत पर रहे पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा 2023 का विधानसभा चुनाव हार गए हैं। उसके बाद से ही अनेक पदों पर उनके पुनर्वास की चर्चाएं होती हैं। समर्थक इस उम्मीद में रहते हैं कि बीजेपी सरकार के संकटमोचक रहे डॉ. नरोत्तम मिश्रा का संकट खत्म होगा और पार्टी उन्हें उनके कद का पद देगी। कई अवसर आए लेकिन डॉ. नरोत्तम मिश्रा खाली हाथ ही रहे।
अब जब प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव अंतिम चरण में है और बीजेपी के प्रदेश प्रभारी सहित प्रदेश के अन्य कद्दावर नेता अलग-अलग डॉ. नरोत्तम मिश्रा के घर मिलने जा चुके हैं तो समर्थक इसे शुभ संकेत मान रहे हैं।
दूसरी तरफ, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को अचानक बधाई मिलने की वजह बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनका नाम चल पड़ना है। लंबे समय तक एमपी के सीएम रहे हो, नेता प्रतिपक्ष, साधारण विधायक; शिवराज सिंह चौहान ने गजब की सक्रियता दिखाई है। कृषि मंत्री के बाद भी वे निरंतर अपने क्षेत्र और देश में अलग-अलग स्थानों का दौरा कर रहे हैं। वे बीजेपी में अटलजी की नरमवादी शैली की राजनीति के प्रतीक हैं। उन्हें वास्तविक रूप में अटलजी का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता है। यही वजह है कि केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, मनोहर लाल खट्टर सहित अन्य नेताओं की तुलना में शिवराज सिंह चौहान लोकप्रियता और व्यवहार के मामले में सबसे आगे हैं। कहा गया कि संघ भी उनके पक्ष में है।
हालांकि, दक्षिण को साधने के लिए वहां से किसी महिला को अध्यक्ष बनाने की चर्चा ज्यादा है लेकिन यदि दक्षिण फतह की रणनीति पर काम नहीं किया गया तो पार्टी हिंदीभाषी राज्यों में प्रभाव के लिए शिवराज सिंह चौहान को नेतृत्व सौंपा जा सकता है। इस समीकरणों के आधार पर ज्यों ही शिवराज का नाम चर्चा में आया समर्थकों के चेहरे खिल गए। फिलहाल, दोनों नेताओं के समर्थक दम साधे पार्टी के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अगले कुछ दिनों में दोनों पदों पर पार्टी के निर्णय घोषित हो जाने की संभावना है।
भिखारी वाले बयान पर कितना कारगर मंत्री प्रह्लाद पटेल का बचाव
धीर गंभीर छवि वाले मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल अपने एक बयान पर विपक्ष और मीडिया के निशाने पर आ गए हैं। मुठालिया में वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के वायरल वीडियो में पंचायत मंत्री प्रह्लाद पटेल कहते दिखाई दे रहे हैं कि जनता को भीख मांगने की आदत हो गई है। नेता आते हैं, उन्हें एक टोकरा भरकर मांग पत्र पकड़ाए जाते हैं। यह अच्छी आदत नहीं है। लेने के बजाय देने का मानस बनाएं। भिखारियों को प्रोत्साहित करना समाज को मजबूत करना नहीं, बल्कि उसे कमजोर करना है।
फ्री बीज के विरोध के बीच पंचायत मंत्री प्रह्लाद पटेल के इस बयान पर हंगामा होना तय था और हुआ भी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि ये बीजेपी का अहंकार है। यह दुख में डूबे लोगों की उम्मीद और आंसुओं का भी अपमान है। मीडिया में बयान पर किरकिरी होती देख समर्थक मंत्री प्रह्लाद पटेल के समर्थन में आ गए। उन्होंने मंत्री पटेल द्वारा अतीत में किए गए कार्यों, उनके व्यक्तित्व का गुणगान करते हुए उन्हें सबका हितैषाी तथा नर्मदा पुत्र जैसे संबोधन दे कर उनकी मंशा को सही बताया।
पार्टी ने इस बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन मामला बढ़ता देख खुद मंत्री प्रह्लाद पटेल मीडिया से रूबरू हुए। प्रह्लाद पटेल ने इस बयान को अपनी राय कहते हुए पार्टी को अलग कर दिया। उन्होंने कहा कि यह समाज सुधार के लिए उनकी व्यक्तिगत राय है और वे आगे भी इस पर कायम रहेंगे। उल्टे होने कहा कि बीजेपी को बदनाम करने के लिए जीतू पटवारी को माफी मांगनी चाहिए।
मंत्री प्रह्लाद पटेल भले ही राजनीतिक बिसात पर माहौल ठीक करने का प्रयास करें लेकिन उनके इस बयान की चर्चा कई दिनों तक होती रहेगी। उनके बयान तथा इसकी मंशा के पक्ष-विपक्ष में भी बहस जारी रहना तय है।
उमा भारती को पसंद आए नेहरू, अखर गई सरकार की चुप्पी
साध्वी से राजनेता बनी मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अक्सर अपने बयानों के कारण चर्चा और विवादों में रहती हैं। कभी भरी सभा में पार्टी नेतृत्व के कामकाज पर सवाल उठा कर बैठक छोड़ देने वाली उमा भारती की एक सलाह फिर चर्चा में है। खासबात यह नहीं है कि यह सलाह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को है, खास बात तो यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पंडित नेहरू की राह पर चलने की सलाह दी है।
उमा भारती ने मध्य प्रदेश में ग्लोबल समिट को सफल बनाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को सुझाव दिया है कि नए निवेश के दौरान नेहरू की औद्योगिक नीतियों को भी शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि हमें पंडित नेहरू और गांधी के विकास मॉडल का संतुलन बनाकर रखना होगा।।जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में यह संतुलन दिखता है, उसी तरह अगर मुख्यमंत्री मोहन यादव भी इसे अपनाएं। उज्जैन में महाकाल दर्शन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए दी गई उमा भारती की इस सलाह पर हैरत होना लाजमी है। आमतौर पर पंडित नेहरू और उनकी नीतियां बीजेपी नेताओं की आलोचना का केंद्र रहते हैं। ऐसे में उमा भारती की यह सलाह पार्टी लाइन के विपरीत ही मानी जाएगी।
इतना ही नहीं अमेरिका गए अवैध प्रवासियों को वापस स्वदेश भेजे जाने की प्रक्रिया पर भी उमा भारती ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि अमेरिका गए भारतीयों के साथ जो अन्याय हुआ, वह न सिर्फ शर्मनाक बल्कि हिंसक भी था। उमा भारती ने साफ नहीं कहा लेकिन उनकी प्रतिक्रिया से जाहिर है उन्हें अमेरिका की कार्रवाई पर भारत सरकार का चुप रहना रास नहीं आया है। उमा भारती और उनके बयानों को पार्टी भले ही तवज्जो नहीं दे रही है लेकिन आम जनता और कार्यकर्ताओं में एक संदेश तो पहुंच ही जाता है।
विरोध के लिए कांग्रेस के पास छोटा सा मौका
विपक्ष यूं तो सड़क पर हर समय सरकार के विरोध में प्रदर्शन करता रहता है लेकिन विधानसभा एक ऐसा अवसर हैं जहां विरोध में कही गई हर बात तथा किया गया हर कार्य दर्ज होता है। अतीत में ऐसे कई क्षण गवाह है जब विपक्ष ने जनहित के मुद्दो तथा खामियों पर सरकार को बुरी तरह घेरा है और मंत्रियों को पसीना-पसीना किया है। विधानसभा के मानसून, शीतकालीन और बजट सत्र में बजट सत्र सर्वाधिक महत्व का माना जाता है जब सरकार बजट प्रस्तुत करती है और विभागवार चर्चा के बाद बजट पारित होता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से विधानभा के सत्र छोटे से छोटे होते जा रहे हैं।
इस बार 10 मार्च से आरंभ हो रहा बजट सत्र अब तक का सबसे छोटा बजट सत्र होगा। 15 दिवसीय सत्र में कुल 9 बैठकें प्रस्तावित हैं। इन्हीं 9 दिन में सरकार बजट पेश करेगी और विभागवार बजट पर चर्चा भी करा लेगी। विपक्ष को इसी बात से आपत्ति है कि इसी सत्र में विधायकों के सवाल भी होंगे, सरकार कुछ विधेयक भी पेश करेगी। फिर इतने कम दिनों में इन पर चर्चा कैसे हो सकेगी? सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग को लेकर कांग्रेस विधायक राज्यपाल से भी मिल चुके हैं लेकिन अवधि तो वही है।
कांग्रेस भ्रष्टाचार सहित अन्य मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी है। लगता नहीं है कि इन नौ बैठकों में भी सदन की कार्यवाही सुचारू सम्पन्न होगी। सरकार का मतलब बजट पारित करवाने से है। विपक्ष को बात रखने का मौका चाहिए। ऐसे में विपक्ष कांग्रेस को इस कारीगरी से काम करना होगा कि उसका विरोध भी दर्ज हो जाए, सरकार से सवाल भी हो जाएं और सत्र अवधि के पहले खत्म भी न हो।