Coal Mines Strike : काेयला खदानों के निजीकरण का विरोध

कोयलेे की कमर्शियल माइनिंग व निजीकरण के विरोध में एटक, सीटू, बीएमएस, एचएमएस व इंटक के आव्हान पर तीन दिनी हड़ताल

Publish: Jul 04, 2020, 04:56 AM IST

केंद्र सरकार ने कोयला खदानों के व्यावसायिक खनन की अनुमति का फैसला लिया है। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ 2 जुलाई से कोल माइन्‍स में हड़ताल और देश भर में प्रदर्शन किए जा रहे हैं। शुक्रवार को 25 संगठनों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया।

छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ किसान सभा का कहना है कि निजीकरण में छत्तीसगढ़ के 9 कोयला खदान भी शामिल हैं। जिस पर विचार कर झारखंड सरकार की तरह छत्तीसगढ़ सरकार भी कोर्ट में आपत्ति दर्ज करें। वहीं नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रवर्तक मेधा पाटकर ने किसानों के खिलाफ लाए गए तीनों अध्यादेशों को ‘किसानों की लूट कारपोरेट को छूट’ प्रदान करने वाली नीति के तहत लाये गए अध्यादेश  बताया है।

छत्तीसगढ़ किसान सभा ने राजनांदगांव, महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, कोरबा, चांपा, मरवाही, सरगुजा, सूरजपुर, बस्तर और बलरामपुर सहित 15 से ज्यादा जिलों में प्रदर्शन किया। छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने राज्य सरकार से भी मांग की है कि झारखंड की तरह छत्तीसगढ़ सरकार भी केंद्र के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें क्योंकि केंद्र सरकार का यह फैसला राज्यों के अधिकारों और संविधान की संघीय भावना का भी अतिक्रमण करता है।

झारखंड़ और छत्तीसगढ़ सरकार भी हैं नीलामी के खिलाफ

छत्तीसगढ़ के नौ कोल ब्लॉकों सहित देश के 41 कोल ब्लॉकों को केंद्र सरकार द्वारा नीलामी के लिए रखा गया है। कोयला मजदूर और खदान क्षेत्र के किसानों और आदिवासि इसका विरोध कर रहे हैं। कोयला मजदूर तीन दिनों की हड़ताल पर हैं, और कल प्रदेश में 90% से ज्यादा मजदूरों के हड़ताल पर थे। झारखंड और छत्तीसगढ़ की सरकारें भी इस नीलामी के खिलाफ खुलकर सामने आ गई है। इसका नतीजा यह हुआ है कि सघन वन क्षेत्र हसदेव अरण्य की चार कोयला खदानों को नीलामी की प्रक्रिया से बाहर रखने की घोषणा केंद्र सरकार को करनी पड़ी है।  

विस्थापन से सांस्कृतिक, परंपरागत अधिकारों का होता है हनन

आदिवासी एकता महासभा ने सूरजपुर और सरगुजा के कई गांवों में विरोध प्रदर्शनों किया। आदिवासी एकता महासभा का आरोप है कि विकास के नाम पर विभिन्न परियोजनाओं की आड़ में अभी तक दो करोड़ से ज्यादा आदिवासियों और गरीब किसानों को उनकी भूमि से विस्थापित किया गया है। वैश्वीकरण की नीति, जो प्राकृतिक संपदा को हड़पने की भी नीति है, ने विस्थापन की इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के इस विनाशकारी फैसले से इन कोल ब्लॉकों में रहने वाले वन्य जीवों और आदिवासियों का अस्तित्व तथा पर्यावरण भी खतरे में पड़ जाएगा। विस्थापन से आदिवासी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक-आध्यात्मिक और परंपरागत अधिकारों का भी हनन होता है।

केंद्र के तीन अध्‍यादेश किसान विरोधी

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और  नर्मदा बचाओ आंदोलन,जन आंदोलनों की राष्ट्रीय प्रवर्तक मेधा पाटकर ने किसानों के खिलाफ लाए गए तीनों अध्यादेशों को ‘‘किसानों की लूट कारपोरेट को छूट’’ प्रदान करने वाली नीति के तहत लाये गए अध्यादेश  बताया है। कृषि उपज, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सुविधा अध्यादेश 2020), मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता अध्यादेश 2020), आवश्यक वस्तु (संशोधन अध्यादेश 2020) तथा साथ में बिजली कानून (संशोधन) विधेयक 2020) आदि अध्यादेशों को लाकर राज्यों के कृषि संबंधी अधिकार छीन लिए हैं। कृषि मार्केट कानून में भी बदलाव किए हैं। मेधा पाटकर का कहना है कि इस कानून से जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी, फसल के दाम घटेंगे।  सरकारी एमएसपी समाप्त हो जाएगा।  बाजार में खाने के दाम बढ़ेंगे, किसानों की कर्जदारी और जमीन से बेदखली और आत्महत्याएं बढ़ेंगी।