असत् से सत् की कल्याणमयी यात्रा कीजिए

मनमाना बोलना, मनमाना आचरण करना और मनमाना खाना-पीना मृत्यु है जबकि शास्त्र- नियंत्रित खाना, बोलना, आचरण करना अमृतत्व

Updated: Aug 31, 2020, 12:31 PM IST

तत्वपक्षपातो हि स्वभावो धियाम्... तत्व का पक्षपात करना बुद्धियों का स्वभाव है। हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने हमें धर्म और वेद, शास्त्रों के माध्यम से ज्ञान कराया है। हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि एक सन्यासी जो केवल कौपीन धारण करके वृक्ष के नीचे बैठकर ब्रह्मचिंतन करता है, उसके सुख की बराबरी समस्त भूमण्डल के सम्राट को मिलने वाला सुख भी नहीं कर सकता।

वेदों में एक प्रार्थना है- मुझे असत् से सत् की ओर ले चलो। तम से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो। इसका अर्थ है कि हे भगवन्! पाशविक प्रवृत्ति असत् है इससे हटाकर हमें शास्त्र सम्मत मार्ग पर ले चलो और परमेश्वर विषयक अज्ञान से जो कि तम है, उससे ब्रह्म साक्षात्कार स्वरूप प्रकाश की ओर ले चलो।असत् अज्ञान ही मृत्यु है, इससे बचाकर अमृतत्व की ओर ले चलो। यहां मृत्यु का पारिभाषिक अर्थ किया है। 

ईशावास्योपनिषद् में कहा गया है कि- कर्म से मृत्यु को पार करके उपासना से अमृतत्व को प्राप्त किया जाता है। कामवाद, कामचार, कामभक्ष ही मृत्यु है। मनमाना बोलना, मनमाना आचरण करना और मनमाना खाना-पीना मृत्यु है। जबकि शास्त्र- नियंत्रित खाना, बोलना, आचरण करना अमृतत्व है।

वेदों की यह प्रार्थना आज हमारी प्रार्थना बने और हम जीवन के उज्जवल पथ की ओर अग्रसर हों, इसके लिए हमें प्रयत्न शील होना है। साध्य, साधन का यथार्थ ज्ञान परमेश्वर की कृपा से ही प्राप्त हो सकता है। साध्य साधन का अर्थ है कि जो हमारे जीवन का लक्ष्य है उसकी प्राप्ति का वास्तविक साधन क्या हो सकता है? इसका ज्ञान हमें परमेश्वर और गुरु की कृपा से प्राप्त हो सकता है।

मनुष्य के अन्त:करण में जन्म-जन्मांतर के अच्छे बुरे दोनों प्रकार के संस्कार संचित रहते हैं। उसको जैसा संग मिलता है, वैसे ही संस्कार उद्बुद्ध हो जाते हैं। इसलिए असत् संग से बचकर सत्संग करना चाहिए और यह जान लेना चाहिए कि जिसका संग हम कर रहे हैं, वह सन्मार्ग की ओर ले जा रहा है या नहीं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक चौपाई से मार्ग दर्शन करते हुए कहा है कि -

 मति कीरति गति भूति भलाई, जब जेहिं जतन जहां जेहिं पाई।।

सो जानब सत्संग प्रभाऊ, लोकहुं वेद न आन उपाऊ।।

इसका अर्थ है कि मति (बुद्धि), कीर्ति (यश), गति (सद्गति), भूति (ऐश्वर्य), भलाई (कल्याण) जिनको भी प्राप्त हुए हैं उसके पीछे सत्पुरुषों का ही संग है। यही असत् से सत् की कल्याणमयी यात्रा है।