हल षष्ठी के रूप में मनाई जाएगी बलभद्र जयंती, छठ व्रत से पुत्र को मिलेगी दीर्घायु और सुख समृद्धि

भगवान श्रीकृष्‍ण के बड़े भाई बलराम का जन्मोत्सव भाद्रपद मास के कृष्‍ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है, वे संतान के रक्षक मानें जाते हैं, शनिवार को माताएं अपनी संतान की कुशलता के लिए व्रत-पूजन करेंगी

Updated: Aug 27, 2021, 02:01 PM IST

Photo Courtesy: Patrika
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भादौं के महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का पर्व मनाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे हरछठ या ललही छठ के नाम से भी पुकारा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जिन्हें बलराम भी कहते हैं, यह उनके जन्मोत्सव का दिन है। इस दिन हलषष्ठी का व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान बलराम हल और मूसल अपने हाथ में धारण किए हैं। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। इसलिए संतान सुख देने वाले इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है। इस वर्ष संतान सुख देने वाला यह पर्व शनिवार 28 अगस्त को मनाया जा रहा है।

शुक्रवार 27 अगस्त से भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत हो जाएगी। शाम 6.50 बजे से शनिवार 28 अगस्त के रात्री 8.55 मिनट तक छठ तिथि रहेगी। उदया तिथि होने की वजह से हलछठ का पर्व शनिवार को पूरे दिन मनाया जाएगा। हलछठ के दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं शाम को महुआ, पसही धान, या मोरधन खाकर व्रत खोलती हैं।

इस दिन के बारे में मान्यता है कि छठ की पूजा में उपयोग किया जाने वाला दूध, दही, घी, उस भैंस का हो जिसके पाड़ा हो। पूजा में भैंस के गोबर का उपयोग किया जाता है। किसी सरोवर के किनारे या फिर घर पर ही पानी के टब में गमला रखकर उसमें कुश, पलाश, बेर, महुआ की टहनी रखी जाती है। कुश पलाश को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। वहीं भगवान शिव के स्वरुप शिवलिंग समेत शिव परिवार को पूजा में रखा जाता है। एक साफ पटे पर कपड़ा बिछाकर उसमें चौक पूरकर कलश, गौरी-गणेश, दीपक, नवग्रह की स्थापना की जाती है। इसकी पूजा विधि विधान से की जाती है। पूजा के दौरान भगवान का जल,पंचामृत से स्नान करवाया जाता है, हल्दी चंदन, रोली और सिंदूर चढ़ाया जाता है। फूल, बेलपत्र, तुलसी की मंजरी, दूर्वा, अर्पित की जाती है। माता पार्वती के लिए श्रंगार का सामान चढ़ाया जाता है। शिव जी को जनेऊ और माता पार्वती को वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।

इस व्रत को करने वाली सभी महिलाएं एक स्थान पर बैठकर पूजन करती है। फिर हलषष्ठी की कथा सुनती हैं, हवन और आऱती के बाद जच्चा गीत गाती हैं। जिसे बुंदेलखंड और बघेल खंड में सोहर कहा जाता है।

हलछठ के दिन केवल उसी खाद्यान का उपयोग किया जाता है, जिसे उगाने हल का उपयोग नहीं किया गया हो। हल षष्ठी के दिन गाय का दूध, दही घी का सेवन नहीं किया जाता। इसदिन भैंस के दूध, दही, घी का उपयोग किया जाता है। मान्यता है कि बलराम जयंति याने हल षष्ठी का व्रत करने से संतान की उम्र लंबी होती है। जीवन के सभी कष्ट कट जाते हैं। बच्चों के सुखमय जीवन के लिए छठ का व्रत रखा जाता है।