विश्व के मंगल के लिए मिली सज्जनों को शक्तियां

विवेक को बांधने की आवश्यकता नहीं है, विवेक को खुला छोड़ना पड़ता है, विवेक जिधर ले जाए बल को उधर ही जाना चाहिए

Updated: Sep 12, 2020, 01:07 PM IST

भगवान श्री राम ने श्री विभीषण जी को उपदेश करते हुए धर्म रथ के चक्र और ध्वजा पताका का वर्णन तो किया अब पूछा गया कि बिना घोड़े के रथ कैसे चलेगा।तो बताते हैं कि -

बल विवेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।

बल, विवेक,दम और परहित ये चार घोड़े हैं जो छमा, कृपा और समता की तीन रस्सियों से बंधे हुए हैं। घोड़ों को नियंत्रित करने के लिए रस्सी की आवश्यकता पड़ती है उससे उनको बांधा जाता है। तो छमा कृपा आदि रस्सी से बांधने का रूपक तैयार करते हैं।अब यहां पर विचारणीय विषय ये है कि घोड़े तो चार हैं। प्राचीन काल में जो रथ बनते थे उनमें चक्र तो दो होते थे लेकिन घोड़े चार होते थे। तो घोड़े चार और रस्सियां तीन। छमा कृपा समता रजु जोरे। प्रश्न ये है कि चार घोड़ों की क्या आवश्यकता है? एक ही घोड़ा रथ को खींच सकता है। बल रूपी घोड़ों के द्वारा सौरज धीरज रूपी चकों को खींचा जा सकता है। विवेक, दम, और परहित रूपी घोड़े क्यों जोड़े गए?

इस प्रकार का रथ तो रावण के पास भी हो सकता है। शौर्य, धैर्य उसमें है ही और बल भी है। तो बल रूपी घोड़ा रथ को खींच रहा है। जिसमें केवल बल होता है,छमा, कृपा और समता नहीं होती उसका बल अनर्थ का ही हेतु होता है।

एक प्रसिद्ध श्लोक है-

 विद्या विवादाय धनम्मदाय, शक्तिं परेशां परिपीडनाय।

खलस्य साधोर्विपरीत मेतद्, ज्ञानाय, दानाय च रक्षणाय।।

खल की विद्या विवाद के लिए होती है। खल यदि विद्वान हो तो वो दूसरों को शास्त्रार्थ में हराने के लिए ही सोचता रहता है, और खल के पास धन हो तो वो मद मत्त होकर अभिमानी हो जाता है। और यदि खल के पास शक्ति हो,बल हो तो दूसरों को पीड़ा पहुंचाने लग जाता है। जबकि बल दीनों की रक्षा के लिए होना चाहिए।

वाल्मीकि रामायण में कथा आती है कि भगवान श्रीराम ने  ऋषि मुनियों के कष्ट को सुना। ऋषियों ने देखा कि राम जी आ रहे हैं तो राक्षसों के द्वारा जिन ऋषि मुनियों को मार दिया गया था उनके हड्डियों का ढ़ेर लग गया था। ऋषियों ने भगवान श्रीराम का ध्यान उस ओर आकर्षित किया तो श्री राम जी ने पूछा कि दक्षिण में हिमालय पर्वत कैसे आ गया? तो ऋषियों ने कहा कि महाराज! ये हिमालय पर्वत नहीं, ये ऋषि मुनियों की हड्डियां हैं जो राक्षसों के द्वारा खा लिए गए हैं।

निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुनाथ नयन जल छाए।

राक्षसों ने ऋषियों को खाया है। यह सुनकर भगवान श्रीराम के आंखों में आंसू आ गए और उसी समय उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली-  

निशिचर हीन करुउं महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह।।

भगवान ने कहा कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से खाली कर दूंगा। ये प्रतिज्ञा कर डाली। सभी मुनियों के आश्रम में गए और उनसे कहा कि महाराज आप लोग निश्चिंत रहिए हम इन राक्षसों से आपकी रक्षा करेंगे। आपको चिंतित और भयभीत रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब ऋषि मुनि अपने- अपने आश्रम में चले गए तब श्री जानकी जी ने कहा महाराज आपने ये क्या कर डाला? ये तो पिता की आज्ञा का उल्लंघन है। पिता जी ने कहा था कि उदासीन भाव से चौदह वर्षों तक वन आप रहेंगे। और आप निशाचरों का वध करने की प्रतिज्ञा कर बैठे। तो वस्तुत: आपने जो अस्त्र शस्त्र धारण कर रखा है ये आपके मन में हिंसा का भाव उत्पन्न कर रहे हैं। आपको तो उदासीन होने के कारण धनुष बाण ही नहीं धारण करना चाहिए। 

श्री सिया जी ने उदाहरण दिया कि एक महात्मा के यहां कोई व्यक्ति अपनी तलवार धरोहर रख कर चला गया।अब उन मुनि को जहां जाना हो उस तलवार को लेकर ही जाते थे कि कहीं ये धरोहर छूट न जाए। बराबर तलवार साथ में रखने के कारण उनके मन में हिंसा की भावना आ गई। और उनकी गति बिगड़ गई। इसी प्रकार से आपके मन में भी धनुष बाण के कारण ही यह प्रवृत्ति आई और आपने प्रतिज्ञा कर डाली। फिर श्री जानकी जी ने कहा कि यदि मैं कुछ अनुचित कह रही हूं तो मुझे समझाने की कृपा करें। तो भगवान श्रीराम ने कहा कि क्षत्रिय इसलिए शस्त्र धारण करता है कि उसके सामने कोई आर्त नाद न करे। किसी को मारने और दु:खी करने के लिए क्षत्रिय शस्त्र धारण नहीं करता। अपितु असहाय की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करता है इसलिए शस्त्र रखना ग़लत नहीं है उसका प्रयोग ग़लत नहीं होना चाहिए।

अर्जुन के पास पाशुपतास्त्र था किन्तु अर्जुन ने कह रखा था कि जब तक पांडवों में से किसी को कोई नहीं मारेगा तब-तक मैं पाशुपतास्त्र का प्रयोग नहीं करूंगा। पाशुपतास्त्र वो है जिससे सारे संसार का विनाश हो जाए। तो उस डर से किसी ने युधिष्ठिर को मारा नहीं। अन्यथा महाभारत में कई बार ऐसा अवसर आया जब युधिष्ठिर जी मार दिए गए होते। भगवान श्रीराम के पास ब्रह्मास्त्र था लेकिन उन्होंने उसका प्रयोग नहीं किया।

सज्जनों के पास जो शक्ति होती है वह विश्व के मंगल के लिए होती है। अमंगल के लिए नहीं। तो बल यदि खल के पास हो तो न जाने रथ को कहां ले जाए। इसलिए इसके साथ तीन घोड़े और लगा दिए गए। बल, विवेक,दम, और परहित ये घोड़े हैं।बल के साथ विवेक को लगा दिया। और रस्सी तीन लगाई गई... क्षमा,दया और समता।रस्सी तीन वर्ग की होती है इस अर्थ में भी ले सकते हैं। और घोड़ों को सीधे बांधना चाहें तो एक विवेक के घोड़े को नहीं बांधना है। बाकी तीन रस्सियों से तीन घोड़ों को बांध दिया जाए। बल रूपी घोड़े को क्षमा की रस्सी से,दम रूपी घोड़े को दया की रस्सी से तथा परहित को समता की रस्सी से बांध दिया जाए। विवेक को बांधने की आवश्यकता नहीं है। विवेक को खुला छोड़ना पड़ता है। विवेक जिधर ले जाए बल को उधर ही जाना चाहिए, विवेक जिधर ले जाए उधर ही दम और परहित को भी जाना चाहिए। विवेक से हम समझ सकते हैं कि बल,दम और परहित का प्रयोग हमें कहां और किस परिस्थिति में करना चाहिए।

बल विवेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।