नरसिंहपुर की बेटी ने ग्रामीणों के लिए घर को बनाया अस्पताल, टेलीमेडिसिन के जरिए हो रहा इलाज

कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों की मदद के लिए अमेरिका से नरसिंहपुर आईं माया विश्वकर्मा, नौकरी छोड़ अपनाया है सेवा का रास्ता

Updated: May 22, 2021, 07:47 PM IST

Photo Courtesy: Amar Ujala
Photo Courtesy: Amar Ujala

नरसिंहपुर। मध्यप्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर ने बुरी तरह कहर बरपाया है। राज्य के ग्रामीण इलाकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण गांव में लोगों की सर्दी बुखार से जान चली जा रही है लेकिन वह कोरोना टेस्ट भी नहीं करा पा रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में यदि गांव के लोगों को कोई घर जाकर दवाइयां दे तो उनके लिए वह फरिश्ता से कम नहीं। ऐसा ही एक वाकया नरसिंहपुर में देखने को मिला है जहां कोरोना से लड़ाई के बीच छोटे से गांव की एक बेटी ढाल बनकर खड़ी हो गई है।

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरागांव में जन्मी 38 वर्षीय माया विश्वकर्मा पिछले कई वर्षों से अमेरिका के कैलिफोर्निया में रह रहीं थीं। उनका गांव आदिवासी बाहुल्य रायसेन और होशंगाबाद जिले की सीमा पर बसा है। माया यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में एएमएल वैक्सीन और बोनमेरो ट्रांसप्लांट पर पीएचडी कर रही थीं। लेकिन समाज सेवा में आने के बाद उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़ना पड़ा।

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माया के गांव से शासकीय सिविल अस्पताल करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है, वहीं गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में न तो डॉक्टर्स हैं न ही दवाएं। उन्हें बस इसी बात की चिंता थी कि यदि गांवों में कोरोना फैला तो गांव वालों का इलाज कौन करवाएगा। माया सुकर्मा फाउंडेशन की मदद से नरसिंहपुर के ग्रामीण इलाकों में जरूरतमंदों के बीच राशन पिछले साल लॉकडाउन से ही बांट रहीं हैं। हालांकि, इस बार परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने एक छोटा सा अस्पताल भी खोल दिया है।

माया ने गांव में अपने छोटे से घर को 10 बेड वाले अस्पताल में बदल दिया है। माया का गांव करीब 2,000 की आबादी वाला गांव है। यहां माया ने टेलीमेडिसिन सेंटर खोला है जहां दिल्ली और जयपुर के डॉक्टर्स वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मरीजों की समस्याएं सुनते हैं और उनका प्रेस्क्रिप्शन ईमेल के जरिए माया को भेजते हैं। यहां मरीजों से सिर्फ दवा के पैसे लिए जाते हैं, डॉक्टर्स के पैसे माया खुद अपनी तरफ से भरती हैं।

हालत बिगड़ने पर मरीजों को माया अपने घर के हेल्थ केयर सेंटर के बिस्तर पर अपनी निगरानी में रखती हैं। यहां दो नर्स भी हैं जो मरीजों को इंजेक्शन वगैरह देने का काम करती हैं। यहां ऑक्सीजन लेवल, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज चेक करने के लिए पर्याप्त उपकरणों के साथ ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर भी है। बकौल माया उन्होंने अमेरिका के साउथ डकोटा में थर्मो स्टेबल एंजाइम पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली के एम्स में भी न्यूक्लियर मेडिसिन ऑस्टियोपोरोसिस के डॉक्टरों का सानिध्य रहा है।

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गांव में काम करने को लेकर माया कहती हैं कि, 'अपने लोगों की मदद करने में मुझे दुनिया की सारी खुशियां मिलती हैं। मैं लोगों के काम आ पाई यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुण्य है। मेरी कोशिश यही है कि गांव के लोगों की मुश्किलें कम की जा सकें, यही कारण है कि मैंने अमेरिका छोड़ने में ज़रा भी देर नहीं की। माया पिछले साल भी कोरोना काल में गांव आई थीं और उन्होंने जरूरतमंदों को राहत सामग्री उपलब्ध करवाई थी। करीब 5-6 साल पहले माया ने महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन के प्रति जागरूक करने की मुहिम छेड़ी थी। इसके बाद से लोग उन्हें पैड वूमेन या पैड जीजी के नाम से भी जानते हैं।