खाली हाथ किसान

मूलचंद मीना मध्‍यप्रदेश के एक ऐसे अभागे किसान हैं जिनके खून पसीने की कमाई पानी हो गई।

Publish: Apr 25, 2020, 07:58 AM IST

मूलचंद मीना मध्‍यप्रदेश के एक ऐसे अभागे किसान हैं जिनके खून पसीने की कमाई पानी हो गई। जान लगाकर गेहूं की खेती की। ढ़ाई एकड़ की खेत में उपजे गेहूं में से कुछ खाने और बोने के लिए बचाया, बाकी 16 क्विंटल गेहूं बेचने मंडी गए। गेहूं का दाम लगा 30,800 रूपया… लेकिन मूलचंद के हाथ आया सिर्फ 636 रूपया। स्थानीय समिति वालों ने कहा कि उनका पैसा कर्ज पटाने में कट गया… हालांकि कर्ज से वो अब भी पूरी तरह से मुक्त नहीं हुए हैं। 3000 रूपये अब भी उनके ऊपर कर्ज बचा हुआ है। 

मूलचंद कहते हैं कि उन्हें ज्यादा याद तो नहीं लेकिन दो तीन साल पहले क्वार में कर्जा लिया खरीफ की फसल के लिए और आषाढ़ में खाद के लिए… शायद कुल मिला कर 25-50 हजार होने चाहिए थे... वो कहते हैं अनपढ़ आदमी को ज्यादा नहीं सूझता लेकिन उनका सहकारी बैंक कहता है कि उनके ऊपर 61,456 रूपये का कर्ज था। हमसमवेत की टीम ने जब सहकारी बैंक (प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति मर्यादित बाई बोड़ी, सीहोर) से पूछा कि उनका कर्ज माफ क्यों नहीं हुआ तो पहले बताया गया कि मूलचंद 50 हजार से ज्यादा के कर्जदार थे। फिर कहा कि शायद उनके कर्ज पटाने की मियाद खत्म नहीं हुई थी इसलिए उनका कर्ज माफ नहीं हुआ। 

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समिति ने ये जरूर माना कि उनके बैंक में लेनदेन के 1450 खातों में से 900 के ऋण माफ हुए हैं। लेकिन ये सभी किसान 50 हजार रूपये से कम के कर्जदार थे। समिति के अफसर ये भी स्वीकार करते हैं कि 50 हजार से ऊपर के लोन एनपीए वालों में से 439 का भी कर्ज माफ हुआ.. लेकिन अभागे मूलचंद ना एनपीए वालों की लिस्ट में आ सके और ना ही ऋण माफी हो सकी। 

अब वो छह महीने की मेहनत और 16 क्विंटल गेहूं बेचकर भी खाली हाथ हैं। मूलचंद मीना के बैंक जिला सहकारी केंदीय बैंक मर्यादित, सीहोर (शाखा- इटावा) ने ये तो बताया कि 1123 सदस्यों को पीएम किसान सम्मान का पैसा उनके बैंक में आया है लेकिन मूलचंद कहते हैं कि बैंक ने उन्हें फोन पर कोई सूचना नहीं दी...तो शायद पैसा भी नहीं आया होगा। मूलचंद  अपने बेटे को पढ़ाना चाहते हैं। उनकी चाहत है कि बेटे को सरकारी नौकरी मिल जाए तो खेती की इस अनिश्चितता से राहत मिले। ये कहते हुए वो सोच में पड़ जाते हैं कि बेटे को पढ़ाएंगे तो फिर कर्ज लेना होगा। नहीं पढ़ाएंगे तो उनकी बदकिस्मती लेकर बेटे को भी जीना पड़ेगा। 

कोरोना से लड़ रही सरकार ने किसानों को उनकी लड़ाई में अकेले छोड़ दिया है। गेहूं खरीदी की राशि से सहकारिता के कर्ज का सेटलमेंट अगर कुछ दिन के लिए रोक दिया जाए तो इस मुश्किल में किसानों को राहत मिल सकती है।