बंगाल चुनाव में केंद्र के झूठ की पोल खुली, किराए पर रहने वाली महिला को बताया आवास योजना का लाभार्थी

पश्चिम बंगाल के अखबारों में पीएम मोदी के साथ एक महिला की तस्वीर छापकर दावा किया गया कि इन्हें मोदी सरकार ने घर दिया है, लेकिन महिला ने कहा, उन्हें कोई घर नहीं मिला, वो 500 रुपए देकर झुग्गी में रहती हैं

Updated: Mar 22, 2021, 09:35 AM IST

Photo Courtesy : NewsLaundry
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कोलकाता। पश्चिम बंगाल चुनाव में लोगों का वोट पाने के लिए बोले गए झूठ की पोल खुलने से बीजेपी की किरकिरी हो रही है। कोलकाता के अखबारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक महिला की तस्वीर यह कहकर छापी गई कि उसे केंद्र सरकार ने घर दिया है। लेकिन अब पता चल रहा है कि दरअसल उस महिला को कोई घर नहीं मिला। उस महिला ने खुद सामने आकर कहा है कि वह एक किराए के मकान में रहती है। अख़बारों के विज्ञापनों में प्रधानमंत्री के साथ अपनी तस्वीर देखकर दंग रह गई महिला ने तब सर पकड़ लिया, जब उन्हें बताया गया कि विज्ञापन में सरकार ने आपको घर देने का दावा किया है।

दरअसल, बीते 14 और 25 फरवरी को कोलकाता के कुछ प्रमुख अखबारों के पहले पृष्ठ पर केंद्र सरकार ने एक विज्ञापन छपवाया था। प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने पर छपे आधे पेज के इस विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक मुस्कराती हुई बड़ी सी तस्वीर लगी थी। इसके साथ ही साड़ी पहने एक गरीब महिला की भी तस्वीर थी, जिनके चेहरे पर हल्की मुस्कान उनकी खुशी को बयान कर रही थी। साथ ही बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया था,, 'प्रधानमंत्री आवास योजना में मुझे मिला अपना घर। सर के ऊपर छत मिलने से करीब 24 लाख परिवार हुए आत्मनिर्भर। साथ आइये और एक साथ मिलकर आत्मनिर्भर भारत के सपने को सच करते हैं।'

अखबारों में यह विज्ञापन 'आत्मनिर्भर भारत, आत्मनिर्भर बंगाल’ के नारे के साथ छपवाया गया था। कोशिश यह बताने की थी कि मोदी सरकरा देश की खुशहाली के लिए कितना अच्छा काम कर रही है और किस तरह देश के आम नागरिकों के जीवन में सुधार हो रहा है। लेकिन केंद्र सरकार की वाहवाही कराने के लिए छपवाए गए इस विज्ञापन के झूठ ने अब वो सच सामने ला दिया है, जिस पर पर्दा डालने के लिए ऐसे विज्ञापन छपवाए जाते हैं। 

इस विज्ञापन की हकीकत तब सामने आई जब मीडिया ने उस महिला को ढूंढ निकाला जिसकी तस्वीर प्रधानमंत्री के साथ छपी थी। 48 वर्षीय लक्ष्मी देवी मूल रूप से बिहार के छपरा जिले की रहने वाली हैं, लेकिन आठ साल की उम्र में ही वह अपने परिवार के साथ कोलकाता चली आईं, जहां वे बहुबाजार थाने के मलागा लाइन इलाके में रहती हैं। हिंदी समाचार वेबसाइट न्यूज़लांड्री के पत्रकारों ने जब लक्ष्मी से पीएम आवास योजना के तहत मिले घर के बारे में पूछा तो वह रोने लगीं। 

लक्ष्मी ने रोते हुए बताया कि उनके पति बंगाल बस सेवा में काम करते थे। उनकी मौत के बाद 10 साल तक वह दौड़ती रहीं, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिला। वह इधर-उधर साफ-सफाई का काम करती हैं। वर्तमान में उनके पास एक पार्क में झाड़ू मारने का काम है जहां से उन्हें 500 रुपए महीने के मिलते हैं। लक्ष्मी ने बताया कि उनका पूरा जीवन फुटपाथ पर सोकर गुजरा है। उनके पास न बिहार में घर या जमीन है और न ही बंगाल में।

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लक्ष्मी ने बताया कि पति के मृत्यु के बाद उन्होंने किसी तरह अपने तीन बेटे और तीन बेटियों को पाल-पोसकर बड़ा किया। अब सभी की शादी हो गई है। दो बेटे लक्ष्मी के साथ रहते हैं, जो कुरियर कंपनी में मजदूरी करते हैं। इससे उन्हें तकरीबन 200-300 रुपए प्रतिदिन मिल जाते हैं। लक्ष्मी के बेटे जब बड़े होकर मजदूरी करने लगे तब उन्होंने फुटपाथ को छोड़कर 500 रुपए महीने के किराए पर एक झुग्गी ली है, जहां वे अपने परिवार के 5 लोगों के साथ रहती हैं।

मीडिया से बातचीत के दौरान लक्ष्मी के बेटे राहुल और बहू अनीता ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलिंडर और स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय बनाए जाने की योजनाओं की भी पोल खोल दी है। लक्ष्मी देवी की बहू अनीता ने बताया, ‘हम लोग बहुत कष्ट से रहते हैं। 100 रुपये लीटर के हिसाब से केरोसिन तेल खरीदकर स्टोव पर खाना बनाते हैं।' अनीता के पति राहुल ने बताया कि सरकार से तो उन्हें गैस सिलिंडर मिला ही नहीं और वे खुद भी पैसे जमा करके गैस सिलिंडर नहीं खरीद सकते, क्योंकि वे खोलाबाड़ी (झुग्गी बस्ती) में रहते हैं और वहां गैस रखना मना है। 

उनके झोपड़ीनुमा घर में शौचालय भी नहीं है, मजबूरन घर के सभी सदस्यों को कोलकाता नगर निगम द्वारा बनाए गए सरकारी शौचालय में जाना पड़ता है। राहुल ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, 'जब घर ही नहीं है तो शौचालय कहां मिलेगा। पास में ही कॉरपोरेशन का शौचालय बना हुआ है। शौच के लिए मेरा पूरा परिवार उसी में जाता है। परेशानी यह है कि वहां भी एक बार शौच के लिए प्रति व्यक्ति पांच रुपए देने होते हैं।'

फ़ोटो को लेकर पूछे जाने पर लक्ष्मी देवी कहती हैं कि उन्हें पता ही नहीं कि यह तस्वीर कब और किसने ली है। उन्होंने बताया कि दिसंबर-जनवरी में जब बाबुघाट में गंगासागर का मेला लगा था, तब उन्हें मेले में टॉयलेट साफ करने का काम मिला था। उन्हें लगता है कि वहीं किसी ने उनकी यह तस्वीर खींच ली। उन्होंने बताया कि जबसे यह तस्वीर छपी है, वे परेशान हैं। जहां पेपर छपता है, वे वहां भी गई थी। प्रिंटिंग प्रेस के कार्यालय में उन्होंने जब पूछा कि ये फोटो आपके पास कहां से आया, तब उन्हें बताया गया कि ये तो सरकार से मिला है। फोटो किसने लिया ये सरकार से पूछो।'

बीजेपी की राज्य सरकारें पहले भी कर चुकी हैं ऐसे झूठे दावे

यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी की सरकारों पर बिना इजाजत किसी व्यक्ति की फ़ोटो झूठे दावे के साथ छापने का आरोप लगा हो। हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से भी ऐसा एक दावा किया गया था। सीएम के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से दुर्गेश नाम के एक युवक का वीडियो साझा किया गया था। वीडियो के कैप्शन में लिखा था कि, ‘सरकारी नौकरी हेतु आयोजित परीक्षाओं के समयबद्ध परिणामों एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया के लिए मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ महाराज को धन्यवाद ज्ञापित करते श्री दुर्गेश चौधरी जी। श्री दुर्गेश चौधरी की नियुक्ति राजस्व लेखपाल के पद पर पूर्ण पारदर्शिता के साथ हुई।' 

विज्ञापन के इस दावे से अलग हकीकत यह थी कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कार्यकाल में अब तक लेखपाल की कोई भर्ती ही नहीं हुई है। दुर्गेश को नौकरी अखिलेश यादव के शासनकाल में 2015 में मिली थी। इतना ही नहीं इसके पहले किसान आंदोलन को लेकर पंजाब में केंद्र सरकार की ओर से एक विज्ञापन जारी किया गया था। उसमें यह बताने की कोशिश की गई कि पंजाब के किसान सरकार द्वारा एमएसपी पर की जा रही खरीदारी से खुश हैं। जिस तस्वीर के जरिए यह बताने की कोशिश हो रही थी, वो पंजाब के फिल्म अभिनेता हरप्रीत सिंह की थी। हरप्रीत खुद उन दिनों सिंघु बॉर्डर पहुंचकर केंद्र के विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे। झूठे दावों के जरिए लोगों को भरमाने वाले विज्ञापनों के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार ने जो कमाल किया है, उस पर बीजेपी या सरकार की तरफ से सफाई आनी अभी बाकी है।