नोटबंदी का फैसला सही था, सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को बड़ी राहत, सभी 58 याचिकाएं खारिज

केंद्र सरकार के 1,000 रुपये और 500 रुपये के करेंसी नोटों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को रद्द कर सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को वैधानिक करार दिया है।

Updated: Jan 02, 2023, 07:05 AM IST

नई दिल्ली। नोटबंदी मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को वैध करार दिया है। कोर्ट की संविधान पीठ ने 4:1 बहुमत से केंद्र सरकार के छह साल पहले 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है। इसी के साथ कोर्ट ने सभी 58 याचिकाओं को भी खारिज कर दिया है।

दरअसल, केंद्र सरकार ने साल 2016 में कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए अचानक नोटबंदी का ऐलान किया था। आज सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायालय में अलग-अलग 58 याचिका दाखिल की गई थी। इसको सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए सरकार को क्लीनचिट दे दी।

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अदालत ने कहा कि नोटबंदी पर केंद्र सरकार का फैसला सही है और आर्थिक फैसले को पलटा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ी राहत देते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा, 'नोटबंदी के फैसले में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आती। जहां तक लोगों को हुई दिक्कत का सवाल है, यहां यह देखने की जरूरत है कि उठाए गए कदम का उद्देश्य क्या था।'

नोटबंदी को लेकर जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय अलग दिखाई दी। उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार के इशारे पर नोटों की सभी सीरीज का विमुद्रीकरण बैंक के विमुद्रीकरण की तुलना में कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है। इसलिए, इसे पहले कार्यकारी अधिसूचना के माध्यम से और फिर कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि धारा 26(2) के अनुसार, नोटबंदी का प्रस्ताव आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड से ही आ सकता है।'

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जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि आरबीआई ने स्वतंत्र दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया और केवल नोटबंदी के लिए केंद्र की इच्छा को मंजूरी दी। उन्होंने कहा, 'आरबीआई ने जो रिकॉर्ड पेश किए, उन्हें देखने पर पता चलता है कि केंद्र की इच्छा के कारण पूरी कवायद महज 24 घंटों में की गई।'

बहुमत के फैसले को पढ़ते हुए जस्टि बीआर गवई ने कहा कि नोटबंदी का उन उद्देश्यों (कालाबाजारी, आतंकवाद के वित्तपोषण को समाप्त करना आदि) के साथ एक उचित संबंध था जिसे प्राप्त करने की मांग की गई थी। उन्होंने कहा कि यह प्रासंगिक नहीं है कि उद्देश्य हासिल किया गया था या नहीं। पीठ ने आगे कहा कि नोटों को बदलने के लिए 52 दिनों की निर्धारित अवधि को अनुचित नहीं कहा जा सकता है।