UGC के प्रस्तावित सिलेबस का इतिहासकारों ने किया विरोध, RSS और BJP पर लगा झूठा इतिहास गढ़ने का आरोप

इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा है कि यूजीसी के प्रस्तावित सिलेबस में ज्यादातर हिस्सा आर्यों को समर्पित है, जिसमें आर्यों को भारत का मूलनिवासी बताया गया है, वहीं इतिहासकार पंकज झा ने कहा है कि सिलेबस अपने आप में इतिहास को चुनौती दे रहा है

Publish: Sep 28, 2021, 07:18 AM IST

नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) पर शिक्षा का भगवाकरण का आरोप लगा है। यह आरोप देश के जाने माने इतिहासकारों ने लगाया है। यूजीसी के प्रस्तावित सिलेबस को लेकर इतिहासकारों का मत है कि इसके जरिए छात्रों को झूठा इतिहास पढ़ाने की तैयारी है। आरोप के मुताबिक यह छात्रों पर नस्लीय थ्योरी को थोपने की साजिश है। 

यूजीसी के प्रस्तावित सिलेबस का इतिहासकारों ने कड़े स्वर में विरोध किया है। बीते हफ्ते देश के जाने माने इतिहासकार 'डिफेंडिंग द हिस्टोरियंस क्राफ्ट' विषय पर आयोजित एक वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। इसमें इरफान हबीब, आदित्य मुखर्जी और पंकज झा जैसे इतिहासकार हिस्सा ले रहे थे। संबोधन के दौरान इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि यूजीसी के प्रस्तावित सिलेबस में ज्यादातर हिस्सा आर्यों को समर्पित है। जिसमें आर्यों को भारत का मूलनिवासी बताया गया है। 

इरफान हबीब ने इस संबंध में कहा कि हम ठीक वैसा ही कर रहे हैं, जैसे जर्मनी ने किया। पूर्ण रूप से यह एक नस्लीय थोपने की तैयारी है। उन्होंने आगे कहा कि हिटलर की यह थ्योरी थी कि जर्मन के लोग प्योर नस्ल के हैं।इसके बाद जर्मनी में जो हुआ वह दुनिया भर के लिए एक मिसाल और सबक है। इरफान हबीब ने कहा कि इसी तर्ज पर अब आरएसएस और बीजेपी एक झूठा इतिहास गढ़ने की साजिश रच रही है। हबीब ने यह भी कहा कि यूजीसी के प्रस्तावित सिलेबस में जाति व्यवस्था और सुधारक राजा राम मोहन राय के सुधार अभियानों का उल्लेख बेहद कम है।

द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूजीसी के स्नातक में इतिहास का सिलेबस में हिंदू मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों को ज्यादा तरजीह दी गई है, जिस वजह से इतिहास का भगवाकरण किए जाने और उसे भ्रामक बनाने की आशंका बढ़ गई है। वहीं टेलीग्राफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इतिहास के सिलेबस में ऐसे लेखकों की किताबों को जगह दी गई है, जिन्हें ज्यादातर लोग जानते तक नहीं। इनमें ऐसे लेखक हैं जो कि आरएसएस की विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं।

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लेडी श्री राम कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक पंकज झा इस प्रस्तावित सिलेबस को इतिहास को दी जाने वाली चुनौती के तौर पर देखते हैं। पंकज झा कहते हैं कि सबसे बड़ी समस्या यही है कि आप यह नहीं जानते कि आखिर ऐसा सिलेबस किसने बनाया? उनके नाम गुप्त रखे गए हैं। उन्होंने कहा इतिहास विचारों की बहुलता की वकालत करता है, लेकिन इस सिलेबस से यह पूरी तरह से नदारद है।

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एक अन्य इतिहासकार आदित्य मुखर्जी ने यूजीसी के प्रस्तावित सिलेबस को लेकर कहा कि यह एक काल्पनिक इतिहास को गढ़ने जैसा है। आदित्य मुखर्जी ने कहा कि सत्ता का इस्तेमाल एक काल्पनिक इतिहास को गढ़ने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने इस पूरी कवायद की तुलना अंग्रेज़ी हुकूमत की बांटो और राज करो वाली नीति से की। मुखर्जी ने कहा कि अंग्रेजों ने खुद को ऐसे ही प्रोजेक्ट किया था जैसे कि वह एक धर्म के लोगों को दूसरे समुदाय से बचाने के लिए हैं। उनकी कवायद दो समुदायों के बीच नफरत पैदा करने की थी ताकि वे शासन कर सकें। यह प्रयास भी कुछ वैसा ही प्रतीत हो रहा है।