15 महीने के इंतजार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया बने मंत्री, कांग्रेस से दग़ाबाज़ी का मिला ईनाम

कांग्रेस से पाला बदलकर बीजेपी में गए सिंधिया को आखिरकार मिल ही गया कमलनाथ सरकार गिराने का तोहफा, पीएम मोदी ने मंत्रिमंडल में दी जगह

Updated: Jul 07, 2021, 02:16 PM IST

Photo Courtsey : Rediffmail
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नई दिल्ली। ग्वालियर राजघराने के ज्योतिरादित्य सिंधिया का इंतजार आखिरकार खत्म हो गया है। करीब 15 महीने के इंतजार के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दे दी गई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सिंधिया को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई है। कयास लगाया जा रहा है कि उन्हें केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का प्रभार दिया जाएगा। इसके पहले आज ही रमेश पोखरियाल निशंक ने इस पद से इस्तीफा ले लिया गया था।

शपथग्रहण के साथ ही सिंधिया ग्वालियर राजघराने के पहले ऐसे पुरुष हो गए हैं, जो गैर कांग्रेसी सरकार में शामिल मंत्री बने हों। दरअसल, सिंधिया ने बीते साल मार्च में कांग्रेस से पाला बदलकर बीजेपी जॉइन कर लिया था। इस दौरान वह दो दर्जन से ज्यादा विधायकों को तोड़कर भी बीजेपी के पाले में ले गए थे। नतीजतन जनता द्वारा चुनी हुई कमलनाथ सरकार 15 महीने के भीतर गिर गयी और राज्य में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान की वापसी हुई।

कैबिनेट मंत्री बनाने को लेकर हुई थी डील

बताया जाता है की मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराने के लिए हुई डील के मुताबिक बीजेपी ने सिंधिया को राज्यसभा से संसद में भेजकर केंद्रीय कैबिनेट में एडजस्ट करने का वादा किया था। वादे के अनुसार बीजेपी ने सिंधिया को राज्यसभा सदस्य तो बना दिया लेकिन एक साल तक वे मंत्री बनने का इंतजार करते रहे। सूत्रों के मुताबिक इसके लिए सिंधिया ने काफी दबाव बनाया लेकिन हर बार कभी कोरोना और कभी राज्यों के चुनाव का हवाला देकर उन्हें टाला जाता रहा।

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हालांकि, लंबे इंतजार के बाद सिंधिया को मंत्री बना दिया गया है, जिससे उनके समर्थकों में काफी उत्साह है। सिंधिया अपने खानदान के पहले व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने कांग्रेस से बगावत कर राज्य की सरकार गिराई हो। उनकी दादी राजमाता सिंधिया ने भी साल 1967 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा की सरकार गिरा दी थी। 

दादी ने भी विद्यायकों को तोड़कर गिराई थी सरकार

राजमाता ने भी उस दौरान पार्टी के दो दर्जन से ज्यादा विधायकों को तोड़कर बगावत करते हुए पार्टी छोड़ दी थी और राजमाता के सहयोग से प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। हालांकि, इसके बावजूद ज्योतिरादित्य को कांग्रेस ने उनके पिता के निधन के बाद 2001, 2004, 2009, 2014 और 2019 में लोकसभा का टिकट दिया। हालांकि, 2019 में वे चुनाव हार गए और ये सिंधिया खानदान के लिए बहुत बड़ा झटका था।

माना जाता है कि इस हार से वे उबर नहीं पाए और मंत्री बनने के लिए उन्होंने अपने पुराने विचारधारा से समझौता कर बीजेपी के साथ जाना मुनासिब समझा। कांग्रेस में रहते हुए भी उन्हें मनमोहन सरकार ने मंत्रिमंडल में शामिल किया था। साल 2007 में उन्हें केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल किया गया। 2009 में जब वे लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए तो उन्हें वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया।