जी भाईसाहब जी: कचरा राजनीति में अब साम, दाम, दंड और भेद के 40 दिन
MP Politics: चालीस साल से पड़े यूनियन कार्बाइड के कचरे को खत्म करने के लिए सरकार ने नया साल चुना और खुद ही वाहवाही की। मगर राजनीति के मोर्चे पर खुद बीजेपी की विधायक और नेता अपनी सरकार के खिलाफ खड़े हैं। अब कोर्ट से राहत पा कर सरकार 40 दिन में माहौल बनाने का काम करेंगी।
कोर्ट में जीते, घर में हारे सरकार
यूं तो भोपाल हर साल 2 और 3 दिसंबर को गैस त्रासदी से मिले दर्द को याद करता है लेकिन अब तो पूरे प्रदेश खासकर मालवा क्षेत्र के धार जिले में भी लोग इस त्रासदी का परिणाम सुन-जान-सोच कर सिहर उठे हैं। चालीस साल बाद कचरे के निष्पादन के विरोध में उतर आए लोगों को डर है कि यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर को भी मौत और बीमारियों का घर बना देगा। सरकार लोगों को यकीन दिलाने का प्रयास कर रही है कि इतने वर्षों में कचरे का जहरीलापन समाप्त हो गया है। मगर जनता को भरोसा नहीं हो रहा है।
हालांकि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि जनता को भरोसे में लेने के बाद ही कचरे के निष्पादन पर निर्णय किया जाएगा। अब तो हाईकोर्ट ने भी सरकार की बात मान कर छह सप्ताह का समय दिया है कि वह जनता का डर दूर कर उन्हें भरोसे में लेकर पीथमपुर में ही कचरे का भस्म करवा दे। हाईकोर्ट में सुनवाई के कारण सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में दखल देने से इंकार कर दिया है। इस तरह कोर्ट से तो सरकार को राहत मिली है लेकिन वह तो अपने ही नेताओं और जनता विश्वास न जीत पाने के कारण संकटों से घिरी हुई है।
जनता के कई सवाल हैं। जैसे, जब कचरा ज़हरीला नहीं है तो फिर उसके पीथमपुर ले जाने के पहले और बाद में भी इतने सुरक्षा उपाय क्यों किए गए? आशंका जताई गई कि कहीं यह तेजी यूनियन कार्बाइड की जमीन को लेकर तो नहीं दिखाई गई है। असल में, सरकार से राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों ही स्तरों पर कुछ बड़ी चूके हुई हैं। कोर्ट ने अपने आदेश की अनदेखी पर मुख्य सचिव को तलब करते हुए अवमानना कार्रवाई का नोटिस दिया था। यही कारण है कि अधिकारियों ने पूरे मामले को प्रशासनिक दृष्टि से देखा। और इन तरीकों के कारण सरकार राजनीतिक रूप से घिरती चली गई।
एकदम से कचरा पीथमपुर भेजने के पहले जनता को भरोसे में लेने की कवायद की जानी थी। इसके लिए बीजेपी के स्थानीय संगठन और विधायकों को भरोसे में लिया जाना पहला चरण हो सकता था। धार-इंदौर के बीजेपी विधायक और नेता अब धर्मसंकट में हैं कि वे सरकार की पहल का साथ दें या जनता के साथ खड़े हों। आज वे अगर जनता का साथ नहीं देंगे तो राजनीतिक जमीन दरकने का खतरा है।
सरकार ने कोर्ट के निर्देश और सख्ती का हवाला देकर विरोध का जवाब देना चाहा लेकिन जनता यह तर्क सुनने को तैयार नहीं है। अलबत्ता कोर्ट ने कचरे के निपटारे के लिए समय सीमा तथा अवमानना का केस न करने की राहत दे कर सरकार को मोहलत दे दी है। अब सरकार का असल मोर्चा मैदान में हैं।
संभव है कि सरकार अब विरोध को खत्म करने के लिए साम, दाम, दंड और भेद के तरीकों को अपना सकती है। विरोध में उठ रही आवाजों को दबाने के लिए इमोशनल और प्रेशर बनाने वाले तरीकों को आजमाया जा सकता है। ये तरीके भी जोखिम भरे हो सकते हैं। बेहतर हो कि सरकार इस मसले का समाधान प्रशासनिक तरीकों में खोजने की जगह राजनीतिक उपायों में खोजे। यह इसलिए भी जरूरी है कि पीथमपुर केवल एक कस्बा नहीं है बल्कि यह औद्योगिक निवेश की दृष्टि से भी प्रदेश सरकार का चेहरा रहा है।
बीजेपी नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए पुराने दांव पेंच
मध्य प्रदेश बीजेपी में संगठन चुनाव की प्रक्रिया जारी है। संगठन ने तय किया था कि 31 दिसम्बर तक जिला अध्यक्षों की घोषणा कर देगी। मगर आपसी राजनीति का ऐसा दंगल कि अब तक लिस्ट अटकी है। प्रदेश संगठन के नेताओं की बैठक के बाद 45 संगठनात्मक जिलों में अध्यक्ष के नाम पर सहमति बन गई है लेकिन अब भी दो दर्जन जिले ऐसे हैं जहां जिला अध्यक्ष को लेकर बीजेपी नेताओं में रस्साकशी हो रही है। यह खींचतान बड़े जिलों में है। अंदरखाने की खबरों के अनुसार इंदौर, जबलपुर, सागर, ग्वालियर, नरसिंहपुर जैसे जिलों में बड़े नेता एक राय नहीं हैं। यही कारण है कि संगठन दो चरणों में जिलाध्यक्षों की सूची जारी करने की तैयारी में है।
एक तरफ जिलाध्यक्षों के चुनाव का मसला है तो प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भी दावेदारी शुरू हो चुकी है। जिला अध्यक्ष चुने जाने के कुछ दिनों के बाद ही प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है। नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जिन चेहरों की चर्चा है उनमें अधिकांश पुराने चावल हैं। पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, डॉ. नरोत्तम मिश्रा से लेकर आदिवासी चेहरे पर भी बात हो रही है। सीएम डॉ. मोहन यादव महिला आरक्षण को 33 के बजाय 35 फीसदी कर दिया है। माना जा रहा है कि संगठन में भी महिला पदाधिकारियों की संख्या अधिक होगी।
महिलाएं कितने पदों पर पहुंच पाती हैं, यह अलग बात है लेकिन प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भी महिलाओं की दावेदारी चर्चा में हैं। इन नेत्रियों में पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस, पूर्व सांसद और अब विधायक रीति पाठक आदि के नाम हैं। ये कयास लगाए जा रहे हैं कि जातीय समीकरण को साधते हुए बीजेपी प्रदेश में महिला नेतृत्व की पुरानी मांग को पूरा कर सकती है। तमाम कयासों में इस तथ्य का भी ध्यान रखा जा रहा है कि यदि केंद्रीय संगठन किसी चौंकाने वाले नाम पर भरोसा करता है तो वह नाम कौन हो सकता है।
बहरहाल, प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में पुराने दावेदार अपने अनुभवों और क्षमता के आधार पर चर्चा में हैं तो युवा और कम अनुभवी नेता नए चेहरे की परंपरा के पालन में अपने लिए अवसर देख रहे हैं।
नाम की पॉलिटिक्स से नया पॉवर
राजनीति में पाया मजबूत करने के लिए नाम बदलने का फॉर्मूला फिर चलन में है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उज्जैन की तीन पंचायतों के नाम क्या बदल कर नाम बदलने की पुरानी मांगों को नई ताकत दे दी है।
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए भोपाल के इस्लामनगर का नाम बदलकर जगदीशपुर किया था। शिवराज ने अपने गृह जिले सीहोर के नसरुल्लागंज का नाम बदलकर भेरूंदा किया और भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन किया था। डॉ. मोहन यादव जब मुख्यमंत्री बने तब आरंभिक बयानों और शासन की शैली को कट्टर हिंदुत्व वाली पाया गया। डॉ. मोहन यादव ने इस कड़ी में नाम बदलने की कवायद भी जोड़ दी है।
बीते सप्ताह उज्जैन पहुंचे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन जिले की तीन ग्राम पंचायतों के नाम बदल दिए। उन्होंने गजनीखेड़ी पंचायत का नाम चामुंडा माता नगरी, मौलाना का नाम विक्रम नगर और जहांगीरपुर का नाम जगदीशपुर रखने की घोषणा की। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा भी कि मौलाना नाम लिखते हुए पेन अटकता था।
मुख्यमंत्री के इस निर्णय का विरोध भी हुआ लेकिन विरोध से ज्यादा ताकत तो उन लोगों को मिली है जो अपने क्षेत्र के नामों को बदलवाने की मांग कर रहे हैं। इन मांगों में भोपाल का नाम भोजपाल करना आदि शामिल है। नाम बदलने की राजनीति से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की छवि ही पुख्ता नहीं होगी बल्कि स्थानीय नेता भी अपने एजेंडे को मजबूत कर पाएंगे।
‘अपनी’ विधायक के खिलाफ मैदान में कांग्रेस
नाम की कांग्रेसी और काम की बीजेपी की विधायक निर्मला सप्रे के खिलाफ विधानसभा, कोर्ट में लड़ाई लड़ रही कांग्रेस अब सड़क पर उतर गई है। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने जन सभा में निर्मला सप्रे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सागर पहुंचे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने बीना विधानसभा सीट पर उपचुनाव की तैयारी को धार देते हुए कहा कि बीना में किसी भी हालत में कांग्रेस को जीताना है।
सागर क्षेत्र से कांग्रेस की एकमात्र विधायक निर्मला सप्रे ने लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी का समर्थन कर दिया था। उन्होंने न केवल बीजेपी प्रत्याशी का प्रचार किया बल्कि बीजेपी के कई कार्यक्रमों में दिखाई भी दी। लेकिन उन्होंने कांग्रेस विधायक का पद नहीं छोड़ा। कांग्रेस ने जब विधानसभा में शिकायत की तो जवाब में निर्मला सप्रे बीजेपी की सदस्यता लेनी की बात गोल कर गई। अब कांग्रेस हाई कोर्ट में उनकी सदस्यता रद्द करने की पैरवी कर रही है।
इस बीच बीजेपी कार्यक्रमों में पहुंची निर्मला सप्रे ने आक्रामक जवाब दिए लेकिन विवाद गहराया तो संगठन के कहने पर वे मीडिया से बचने लगी हैं। लेकिन कांग्रेस की ही तरह निर्मला सप्रे ने भी उपचुनाव की तैयारी आरंभ कर दी है। इस तैयारी के पीछे एक भय भी है कि कहीं बीना में भी विजयपुर जैसा परिणाम न हो। विजयपुर में जनता ने कांग्रेस छोड़ कर गए नेता रामनिवास रावत को उप चुनाव में हरा दिया। यही कारण है कि बीना विधायक निर्मला सप्रे जनता में पैठ बनाने के साथ ही मंदिरों में भी पूजा अर्चना कर रही हैं।