Pitru Paksha 2020: श्राद्ध से मिलेगी पूर्वजों की कृपा

Shradh Paksha 2020: हिन्दू परंपरा के अनुसार आश्विन मास में पूर्वजों का श्राद्ध करने से मिलता है उनका आशीर्वाद, पितृऋण से मिलती है मुक्ति

Updated: Sep 02, 2020, 07:58 AM IST

Photo Courtesy: Bhaskar
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शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों पर 3 तरह के ऋण होते हैं। देव, ऋषि और पितृऋण । पूजन हवन और जप-तप से देव और ऋषि ऋण चुकाया जाता है। वहीं पितृऋण चुकाने के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। इसलिए अश्विन महीने में 16 दिनों तक पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, हवन पूजन और ब्राह्मण भोजन करवाने से पितृऋण से मुक्ति मिलती है, और पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।

हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा से अमावस्या तक पितरों के लिए श्राद्ध और दान पुण्य किया जाता है। माना जाता है इन दिनों तक पूर्वज धरती पर आते हैं। पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध के साथ दान करने का विधान बताया गया है। कहा जाता है ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आर्शीवाद प्रदान करते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान संयमित दिनचर्या का पालन किया जाना चाहिए। द्वार पर आए किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर किसी भी रूप में आ सकते हैं। 

पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। लोक मान्यता है कि पितर नाराज हो जाएं तो व्यक्ति के जीवन में कई तरह की समस्याएं आती हैं। घर में अशांती, व्यापार में हानी की आशंका बनी रहती है। श्राद्ध पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना बेहद आवश्यक माना जाता है। श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है।

  हिंदू धर्म में मनुष्य की मृत्यु के बाद उसका श्राद्ध करना आवश्यक माना जाता है। यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा तृप्त होती है।

 जिस तिथि पर पितरों की मृत्यु होती है उसी तिथि पर श्राद्ध का विधान है। यदि किसी की अकाल मृत्यु होती है तो चतुर्दशी के श्राद्ध होता है। दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है. वहीं जिन पितरों की मृत्यु की तिथि पता नहीं हो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए। वहीं सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है।

 पितृ पक्ष के दौरान रोजाना तर्पण किया जाना चाहिए। पानी में दूध, जौ, काले तिल,चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है। इस दौरान पिंड दान भी किया जाता है। इनदिनों कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान आदि नहीं किया जाता है। आप अपनी दैनिक पूजा कर सकते हैं। तर्पण और पिंड दान के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दी जाती है।

निश्चित तिथि को पितरों के श्राद्ध के दिन उनकी पसंद का भोजन बनाकर पुरोहित को खिलाया जाता है। वहीं गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी के लिए भी भोग निकाला जाता है। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन किया जाता है। ताकि पूर्वजों की आत्मा को शांति मिल सके।