सिंगरौली DM का फरमान, वैक्सीन नहीं लेने वालों पर करें FIR, एक्सपर्ट्स बोले- मजबूर नहीं कर सकते

मध्य प्रदेश में वैक्सीन के लिए प्रोत्साहन के बजाए  धमकाने का मामला, सिंगरौली कलेक्टर ने जारी किया फरमान, टीके नहीं लिए तो करेंगे एफआईआर, कानूनी जानकारों ने बताया कि टीकाकरण स्वैछिक है, किसी को मजबूर नहीं कर सकते

Updated: Nov 12, 2021, 02:38 PM IST

Photo Courtesy : Twitter
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सिंगरौली। मध्य प्रदेश में टीकाकरण का रिकॉर्ड सेट करने के लिए प्रशासन अजीबोगरीब फरमान जारी कर रही है। सिंगरौली कलेक्टर ने आदेश जारी किया है कि वैक्सीन नहीं लेने वालों पर आपराधिक प्रकरणों में मुकदमा दर्ज किया जाएगा। कानूनी जानकार इस फैसले असंवैधानिक करार दे रहे हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि टीकाकरण पूरी तरह से स्वैछिक है, इसके लिए किसी को डराया, धमकाया या मजबूर नहीं किया जा सकता है।

सिंगरौली कलेक्टर राजीव रंजन मीना ने आदेश जारी कर कहा है कि, '15 दिसंबर तक दोनों ही डोज नहीं लगवाए तो सार्वजनिक कार्यक्रम, होटल, निजी संस्थानों या कंपनियों में नौकरी करने वालों पर आपराधिक केस दर्ज किया जाएगा। 15 दिसंबर के बाद सिर्फ उन लोगों को छूट मिलेगी, जिन्हें चिकित्सा सलाह के तहत टीका लेने से मना किया गया है। जो व्यक्ति दोनों डोज नहीं लिया हो उसे ड्यूटी पर जाने की अनुमति नहीं होगी।' 

कलेक्टर राजीव रंजन मीना के आदेश के मुताबिक यदि 15 दिसंबर के बाद कोई भी व्यक्ति दोनों डोज लिए बगैर ड्यूटी करते पाया जाता है तो उसके खिलाफ धारा 188, 269, 270, 271, मध्यप्रदेश एपिडेमिक डिजीज कोविड 19 रेगुलेशन 2020 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 51 के तहत कार्रवाई की जाएगी।' बता दें कि इसी हफ्ते खबर आई थी कि इंदौर कलेक्टर ने भी बैंकों व निजी संस्थानों को मौखिक रूप से निर्देश दिया है कि दोनों डोज लिए बगैर किसी को सेवाएं न दी जाए।

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दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने निर्देश दिया है कि 1 दिसंबर के बाद बैंक में किसी भी ग्राहक को कोविड-19 के सेकंड डोज सर्टिफिकेट के बिना एंट्री ना दी जाए। इसी तरह कलेक्टर ने राशन दुकान संचालकों को भी निर्देश दिया है कि कि दुकानों पर राशन लेने आने वाले लोगों का वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट देखने के बाद ही उन्हें राशन दिया जाए। इंदौर में 1 दिसंबर से ही इसे लागू करने के निर्देश हैं।

लीगल और हेल्थ एक्सपर्ट्स इस तरह के निर्दशों को मौलिक अधिकारों का हनन बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील एहतेशाम हाशमी ने मामले पर हम समवेत से बातचीत के दौरान कहा, 'सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया है कि वैक्सीनेशन पूरी तरह से स्वैच्छिक है। किसी भी नागरिक को टीका लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है। मध्य प्रदेश के अधिकारी इस तरह का आदेश जारी कर सुप्रीम कोर्ट को ओवर रूल कर रहे हैं। इंदौर और सिंगरौली कलेक्टर के निर्देशों से प्रतीत होता है कि उनमें संवैधानिक समझ की कमी है।'

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जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह-संयोजक अमूल्य निधि ने भी सिंगरौली कलेक्टर के आदेश को संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को प्रदत मौलिक अधिकारों का हनन बताया है। अमूल्य निधि ने हम समवेत से बातचीत के दौरान कहा, 'सरकार का काम है लोगों का विश्वास जीतना और वैक्सीन लेने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना। भारतीय टीके पर लोगों का विश्वास शुरू में कम था। कोवैक्सीन को परमिशन लेने में 1 साल से ज्यादा लग गया। WHO ने अभी भी कहा है कि यह टीका गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। लेकिन सरकार ने गर्भवती महिलाओं को लगा दिया। भारत सरकार बोले की हम WHO को नहीं मानते हैं।'

अमूल्य निधि ने आगे कहा कि, 'कोविशिल्ड के डोज में सरकार ने काफी बदलाव किया कभी 28 दिन, कभी 45 दिन और फिर 84 दिन। इससे असमंजस बढ़ी। ये हकीकत है कि दूसरा डोज लेने के बाद बहुत सारे लोग गंभीर रूप से बीमार हुए हैं और कुछ लोगों की मौत भी हुई है। ऐसे कई सारे मामले आए हैं। एपेडमिक डिजीज एक्ट में भी साफ है कि स्प्रेड को रोकना है। स्प्रेड को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क को अनिवार्य किया जा सकता है, वैक्सीन को कतई नहीं। वैक्सीन लेने या नहीं लेने से कोविड के स्प्रेड का कोई लेना देना नहीं है।'