मृत्यु लोक के निवासियों के पास भी है कल्प वृक्ष

वेदों में उन सभी उपायों का प्रामाणिक वर्णन है जिनके अनुष्ठान से हो सकती है हमारे चार पुरुषार्थों की सिद्धि

Publish: Jul 31, 2020, 12:44 PM IST

पुण्य भूमि भारत वर्ष में मानव जन्म की प्राप्ति देवताओं को भी दुर्लभ है। देवता इस भूमि का गुणगान करते समय यहां के मनुष्यों की सराहना करते हुए कहते हैं-'अहो!इन मनुष्यों ने ऐसा कौन सा पवित्र कर्म किया है, क्या साक्षात श्री हरि ही तो इन पर प्रसन्न नहीं हो गये? जो मुकुन्द की सेवा के योग्य और हमारे लिए स्पृहणीय भारत की पवित्र धरित्री में इनको नर जन्म मिला है'।

यद्यपि स्वर्गादि लोकों में रहने वालों की आयु बहुत लम्बी होती है फिर भी पुण्यों का क्षय होने पर उनको दूसरा जन्म लेना ही पड़ता है। उससे अच्छा तो थोड़ी आयु वाला भारत भूमि में जन्म है, जिससे क्षण भर में ही मनस्वी पुरुष सर्वत्याग करके श्री हरि के अभय पद को प्राप्त कर लेता है। जहां भगवत्कथा की अमृत मय सरिता न हो, जहां भगवदाश्रित साधुजन न हों और जहां यज्ञों के द्वारा भगवान यज्ञ नारायण का अर्चन न होता हो, ऐसा इन्द्र लोक भी सेवनीय नहीं है।

स्वर्ग के नन्दन वन में कल्पवृक्ष है, कहा जाता है कि उसके नीचे बैठकर जो भी कल्पना या याचना की जाती है,वह पूर्ण होती है। पर वह कल्पना अर्थ और काम से सम्बंधित होनी चाहिए। धर्म और मोक्ष प्रदान करने का सामर्थ्य तो कल्पवृक्ष में भी नहीं है। यदि यह सम्भव होता तो वहां के निवासियों का पतन न होता। कल्पवृक्ष से यज्ञों का पुण्य मांगकर देवगण पतन से बंच जाते। इसके विपरीत दुःख बहुल मर्त्य लोक के निवासियों को ऐसा कल्पवृक्ष प्राप्त है जिससे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त किया जा सकता है। वह है हमारा निगम कल्पतरु जिसको वेद कहते हैं। वेदों में उन सभी उपायों का प्रामाणिक वर्णन है, जिनके अनुष्ठान से हमारे पुरुषार्थों की सिद्धि हो सकती है और हम अपने जीवन में इन चारों का समन्वय कर सकते हैं।