गया एयरपोर्ट के लिए GAY कोड पर विवाद, संसदीय समिति ने कहा- पवित्र नगरी के किए YAG कोड होना चाहिए

एयरपोर्ट्स को कोड प्रदान करने वाली अंतरराष्ट्रीय निकाय ने कहा कि एयरपोर्ट कोड को स्थायी माना जाता है और इसे तबतक नहीं बदला जा सकता जबतक एक मजबूत और न्यायोचित तर्क न हो

Updated: Feb 06, 2022, 07:59 AM IST

Photo Courtesy: Wikipedia
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गया। बिहार के गया एयरपोर्ट का कोड को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है। पार्लियामेंट्री कमेटी ने इसे अनुपयुक्त बताते हुए इसे बदलने की मांग की है। संसदीय समिति ने अपने सुझाव में कहा है कि इस पवित्र नगरी के लिए एयरपोर्ट कोड YAG होना चाहिए। वहीं एयरपोर्ट्स को कोड प्रदान करने वाली अंतरराष्ट्रीय निकाय ने कहा कि एयरपोर्ट कोड को स्थायी माना जाता है और इसे तबतक नहीं बदला जा सकता जबतक एक मजबूत और न्यायोचित तर्क न हो।

दरअसल, सार्वजनिक उपक्रमों के लिए बनी पार्लियामेंट्री कमेटी ने जनवरी 2021 में संसद में पेश की गई अपनी पहली रिपोर्ट में गया हवाई अड्डे का कोड बदलने की सिफारिश की थी। बीते शुक्रवार को संसद में पेश की गई रिपोर्ट में संसदीय समिति ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि सरकार को यह विषय इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के सामने उठाना चाहिए। समिति ने कहा है कि यह हवाई अड्डा देश के पवित्र नगरी में है, लेकिन इसका कोड अनुचित, अनुपयुक्त, आपत्तिजनक और शर्मनाक है।

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केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि यह मामला IATA को भेजा था। इस संबंध में आईएटीए ने कहा कि नियम के अनुसार किसी भी एयरपोर्ट के कोड को स्थायी माना जाता है और इसे बदलने के लिए एक मजबूत और न्यायोचित तर्क देना चाहिए। मंत्रालय ने पैनल को यह भी कहा कि गया एयरपोर्ट का यह कोड तबसे है जब यहां हवाई पट्टी थी। इसलिए बिना हवाई सुरक्षा कारणों का हवाला दिए हुए आईएटीई ने इसके कोड को बदलने में असमर्थता जताई है। बता दें कि आईएटीए ही विश्वभर हवाई अड्डों के लिए कोड प्रदान करता है।

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बता दें कि साक 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। यानी कानूनी तौर पर इस तरह से संबंधों को देश में मान्यता दे दी गई है। हालांकि, LGBTQI लोगों के साथ देश में भेदभाव अभी भी हो रहे हैं। कानूनी रूप से वैधता मिलने के बाद भी सामाजिक रूप से इस समूह के लोगों को अपनाया नहीं जा रहा है। गया का कोड बदलने की मांग इस मानसिकता को जाहिर करता है। जबकि विकसित देशों में यह भेदभाव काफी हद तक कम हो गया है और शायद यही वजह से की अंतरराष्ट्रीय निकाय ने कोड बदलने से इनकार कर दिया है।