बेबुनियाद और दुर्भावना से भरे हुए हैं सभी आरोप, ED की कार्रवाई पर राणा अय्यूब ने तोड़ी चुप्पी

प्रवर्तन निदेशालय द्वारा संपत्ति अटैच किए जाने के बाद महिला पत्रकार राणा अय्यूब ने बताई हकीकत, सिलसिलेवार ढंग से बताया कब कितने रुपए मिले और कहां खर्च किया, बोलीं- ईडी के रिकॉर्ड झूठे हैं और दुर्भावना से ग्रस्त हैं

Updated: Feb 12, 2022, 08:36 AM IST

नई दिल्ली। केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी की कार्रवाई के बाद विश्वविख्यात महिला पत्रकार राणा अय्यूब ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। विश्व के मशहूर अखबारों और पत्रिकाओं की नियमित कॉलमनिस्ट राणा अय्यूब में सभी आरोपों को दुर्भावना से ग्रसित करार दिया है। गुजरात फाइल्स पुस्तक के माध्यम से तत्कालीन गुजरात की मोदी सरकार की कलई खोलने वाली राणा अय्यूब ने एक प्रेस स्टेटमेंट जारी कर विस्तृत रूप से बताया है कि किस तरह उन्होंने कोरोना प्रभावित गरीबों की मदद के लिए अभियान छेड़ा और जांच एजेंसियां इसमें किस तरह बाधक बनी।

राणा अय्यूब ने शुक्रवार को इस संबंध में चार पन्नों का प्रेस स्टेटमेंट जारी किया है जिसमें सिलसिलेवार ढंग से सभी घटनाक्रमों का विवरण है। राणा अय्यूब ने इसमें लिखा है कि, 'COVID-19 फंड रेजर शुरू करने के लिए कीटो प्लेटफॉर्म ने उन्हें दो बैंक अकाउंट्स पेश करने के लिए कहा था, जहां लोगों के डोनेट किए गए पैसे भेजे जा सकते थे। उस दौरान मेरे पर्सनल बैंक अकाउंट का उपयोग नहीं किया जा सकता था क्योंकि कीटो को तत्काल मेरे पैन कार्ड की हार्ड कॉपी चाहिए थी जो मेरे पास उस समय मौजूद नहीं थी। मैंने सोचा कि कोरोना पीड़ितों को तत्काल सहायता चाहिए, इसलिए मैने कीटो को अपने पिता और बहन के बैंक अकाउंट डिटेल्स दिए।'

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राणा अय्यूब कहती हैं कि वह नियमित रूप से सोशल मीडिया के माध्यम से जुटाए गए रुपयों के बारे में अपडेट पोस्ट करती थी। उन्हें पता था कि रुपयों का एक हिस्सा रमजान के महीने में भारतीय मुसलमानों द्वारा जकात के रूप में दिया जा रहा है। एक मुस्लिम होने के नाते वह जकात की पवित्रता और जरूरतमंदों के लिए इसके उपयोग को समझती हैं। राणा अय्यूब बताती हैं कि कोरोना राहत कार्य के दौरान वह वायरस के चपेट में आ गईं और ऑक्सिजन लेवल गिरने के कारण उन्हें अस्पताल में भी भर्ती होने पड़ा। 

इतना ही नहीं वह बताती हैं कि राहत कार्य में उनके साथ जो वालंटियर्स जुटे हुए थे उनमें से दो लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई। इसके बाद अस्थायी रूप से उन्हें सेवा कार्य बंद करना पड़ा। जरूरतमंद लोगों को राहत सामग्री उपलब्ध कराने के दौरान वह स्लिप डिस्क के चपेट में भी आ गईं। जनवरी 2021 में उन्होंने स्लिप डिस्क का ऑपरेशन कराया ही था कि देश कोरोना की दूसरी लहर के चपेट में आ गया और लोग उनसे मदद की गुहार लगाने लगे। राणा अय्यूब एक बार फिर लोगों की सेवा में हाजिर थीं।

राणा अय्यूब के मुताबिक कीटो द्वारा जुटाए फंड से वह  अस्पताल बनाना चाहती थीं लेकिन उतना समय नहीं था इसलिए उन्होंने एक एनजीओ के माध्यम से चालू अस्पताल को देने का निर्णय लिया। बाद में जब यह संभव नहीं हो पाया तो उन रुपयों को उन्होंने अपने गृहराज्य महाराष्ट्र के सरकार और पीएम केयर्स के फंड में रुपए डाल दिए ताकि लोगों को मदद मिल सके। इस बारे में वह सारी जानकारी जांच एजेंसियों को भी दे चुकी हैं।

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राणा अय्यूब के मुताबिक उन्हें दान स्वरूप दो करोड़ से ज्यादा रुपए मिले जिसमें 1 करोड़ से ज्यादा उन्हें टैक्स देना पड़ा। टैक्स को लेकर भी राणा अय्यूब ने एजेंसियों को गुजारिश किया कि ये रुपए उनके निजी कमाई के नहीं है बल्कि जनता के लिए है, इसलिए टैक्स न थोपा जाए। हालांकि, इसपर कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने विदेशी फंडिंग को लेकर लिखा है कि उनके बहन अथवा पिता के अकाउंट में कोई विदेशी चंदा नहीं आया है। चूंकि, रुपए पहले कीटो के पास आते थे और उसके बाद उन दो खातों में ट्रांसफर किए जाते थे। उन्होंने कीटो को पहले ही कह दिया था कि विदेशी रुपए वापस दान-दाताओं को दे दिया जाए।

राणा अय्यूब ने अपने बयान के आखिर में लिखा है कि मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप मुझे एक पत्रकार के रूप में अपना काम जारी रखने और विशेष रूप से महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने और कठोर सवाल पूछने के लिए मेरी पेशेवर प्रतिबद्धता से नहीं रोकेगा। उन्होंने बतौर पत्रकार इसे अपना कर्तव्य बताया है। वह लिखती हैं कि संवैधानिक लोकतंत्र में मुझे विश्वास है और मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप किसी भी निष्पक्ष और ईमानदार जांच का सामना नहीं कर पाएंगे। 

बता दें कि राणा अय्यूब ने कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान लोगों की मदद के लिए कीटो प्लेटफार्म के माध्यम से चंदा जुटाया था और यथासंभव कोरोना पीड़ितों की मदद भी की थी। इसी मामले में उनके खिलाफ चंदा के रुपयों के निजी इस्तेमाल करने के आरोप लग रहे हैं। बतौर पत्रकार राणा अय्यूब केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ लगातार मुखर रही हैं और इसी वजह से अक्सर उन्हें अक्सर रेप और जान से मारने की धमकियां मिलती रही हैं। महिला पत्रकार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी ईडी की कार्रवाई को कई सोशल मीडिया यूजर्स स्वतंत्र आवाजों को दबाने के लिए सरकार का हथकंडा करार दे रहे हैं।