सैलानियों को लुभा रहा बांस ग्राम, प्राकृतिक नजारों के बीच लीजिए खानपान का मजा

अगरतला में 9 एकड के एरिया में बना बांस ग्राम, बांस से बने कॉटेड, रास्ते, बांस के पकवान हैं आकर्षण का केंद्र, 60 लाख की लागत से हुआ है तैयार

Updated: Jan 02, 2022, 01:05 PM IST

Photo Courtesy: instagram
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भारत में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में त्रिपुरा के अगरतला में देश के पहले बांस गांव की स्थापना की गई है। इसका उद्देश्य बांस उद्योगों को बढ़ावा देना, लोगों को प्रकृति के करीब लाना है। ताकि इकोपर्यटन को बढ़ावा मिल सके।  इस बांस गांव की स्थापना बांस वास्तुकार और एक्सपर्ट मन्ना रॉय के नेतृत्व में की गई है। यह 9 एकड़ बंजर भूमि पर बनाया गया है। यह भारत-बांग्लादेश बार्डर पर पश्चिमी त्रिपुरा के कटलामारा में स्थापित किया गया है। बांस ग्राम देशी, विदेशियों पर्यटकों और पर्यावरणविदों के आकर्षण का केंद्र है।यह जगह हरियाली से भरपूर है। इस हरे-भरे सुसज्जित बांस पार्क में योगा सेंटर, होस्टल सुविधा समेत दसवीं क्लास तक स्कूल, खेल का मैदान, पर्याप्त वनस्पतियों और जीवों के साथ कई तालाब हैं। वहीं बांस से बने आकर्षक कॉटेज, बांस के रास्ते और पुल लोगों का दिल जीत लेते हैं।

यहां आने वाले सैलानी फैमिली और फ्रेंड्स के साथ लंच और डिनर का आनंद लेने पहुंचते हैं। कोरोना काल के बाद अब इसे लोगों का अच्छा रिएक्शन मिल रहा है। यहां पर बांस के कॉटेज में रहना अपने आप में अनोखा अनुभव है। वहीं बीच में बना डोम और बांस के पेड़ों के बीच से लकड़ी के रास्तों पर सुबह की सैर किसी सपने जैसा फील देता है। यहां हर वस्तु इको फ्रेंडली है। बांस गांव को 2017 से विकसित किया जा रहा है। इस बांस ग्राम में बांस की 14 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। वहीं बहुत सी अन्य प्राकृतिक वनस्पतिक जड़ी-बूटियाँ, पेड़, फल-फूल इसे एक प्राकृतिक निवास स्थान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।इस बांसग्राम को विकसित करने में करीब 60 लाख रुपये की लागत आई है। इसके लिए सरकार या किसी वित्तीय संस्था से किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं ली गई है। इसे विकसित करने का मुख्य मिशन लोकल स्तर पर ग्लोबल मेडिकल और इको टूरिज्म हब विकसित करना है। इस बांसग्राम में एक बड़ा वाच टावर लोगों के आकर्षण का केंद्र है, जिससे यहां आने वाले पर्यटक भारत-बांग्लादेश सीमा के आस-पास चाय बागानों और आसपास स्थित प्राकृतिक सुंदरता का नजारा लेते हैं।इसे तैयार करने के लिए बांस कारीगरों ने काफी मेहनत की है। वहीं इसके माध्यम से स्थानीय महिलाओं को सशक्त बनाने का काम बखूबी किया गया है। यहां उपलब्ध संसाधनों के उपयोग से लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा देने की भी तैयारी है। भारत में बांस के जंगलों का लगभग 28 प्रतिशत पूर्वोत्तर में स्थित है। भारत में बांस की 145 प्रजातियां पाई जाती हैं। अगरतला से 45 किमी दूरी पर एक बांस संग्रहालय स्थापित करने की योजना है, जिसमें बांस से बनी सभी प्रकार की वस्तुएं डिस्प्ले की जाएगा- लुप्तप्राय, अप्रचलित, पुरानी और नई सामग्री प्रदर्शित की जाएगी।

इस बांस ग्राम में बांस से बने खाद्य पदार्थों को भी जगह दी गई है। बांस के बने आइटम्स बेदह स्वादिष्ट होते हैं। जो कि पूर्वोत्तर में काफी पसंद किए जाते हैं। त्रिपुरा औद्योगिक विकास निगम (टीआईडीसी) के अधिकारियों के अनुसार यहा बांस टाइल्स, बांस के बोर्ड, बांस से बने फर्नीचर, और बांस के डिवाइडर भी स्थापित किए गए हैं। यहां स्थित घरेलू डिजाइन सामग्री बेहद आकर्षक है।