दफ्तर दरबारी: रिटायर्ड आईएएस आईपीएस ने मांगा काम, बीजेपी बोली क्या आइडिया है
कल के बड़े साहब आज ‘बेकार’ बैठे हैं। अब साहब काम मांग रहे हैं। दूसरी तरफ, ज्योतिरादित्य सिंधिया के पसंदीदा मंत्री को तीन महीनों तक नंंगे पैर रहना पड़ेगा। मंत्री ही नहीं, दूसरे बीजेपी नेताओं की भी शिकायत है कि नेता उनकी सुनते नहीं हैं। आखिर अफसर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सख्ती से भी डरते क्यों नहीं हैं?
वे बड़े साहब थे। एक जमाने में उनकी तूती बोलती थी। ऐसा जलवा कि सबसे पॉवरफुल कही जाने वाली मंत्रालय की पांचवी मंजिल हो या पुलिस मुख्यालय उनका एक छत्र राज होता था। उनके इशारे के बगैर पत्ता भी न हिले, ऐसा रसूख था। अपना विभाग तो ठीक दूसरे विभाग में भी साहब की मंशा से काम होते थे। समय ऐसा बदला की आज वे साहब ‘बेकार’ बैठे हैं। काम है नहीं और वक्त है कि कटता नहीं। क्लब की टेबलों पर भी अतीत के किस्सों की जुगाली कब तक करें? ऐसे में जब सत्ताधारी पार्टी के सर्वेसर्वा मिलने पहुंचे तो हाल ए दिल जुबां पर आ ही गया।
मौका था बीजेपी की पहल का। पार्टी ने समाज के प्रभावशाली नागरिकों से संपर्क कर अपनी ताकत बढ़ाने का फैसला किया है। इस कार्य के लिए विशेष संपर्क अभियान शुरू किया गया है। इस पूरे अभियान का जिम्मा युवा नेता राहुल कोठारी को दिया गया है। तय कार्यक्रम के अनुसार भोपाल के भोजपुर क्लब में प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव एवं प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने एक दर्जन रिटायर्ड आईएएस व आईपीएस के साथ बैठक की। बैठक में पूर्व सीबीआई डायरेक्टर ऋषिकुमार शुक्ला, पूर्व डीजीपी स्वराज पुरी, पूर्व आईएएस तथा सीएम के प्रमुख सचिव रहे एसके मिश्रा, संभागायुक्त रहे अजातशत्रु, कवींद्र कियावत जैसे पूर्व अधिकारी शामिल हुए।
बीजेपी पदाधिकारियों ने तो पार्टी की विचारधारा एवं नीतियों की जानकारी देते हुए पूर्व अधिकारियों से सहयोग मांगा लेकिन अफसरों ने भी अपनी तकलीफ कह सुनाने का मौका जाने नहीं दिया। अफसरों ने कहा कि उम्र के चलते वे रिटायर हुए हैं। उनकी सक्रियता कम नहीं हुई है। मगर इतने अनुभवी अफसरों को प्रदेश ने भूला दिया गया है। प्रदेश के विकास में इन अफसरों के अनुभव का लाभ लेना चाहिए।
अपने लिए काम मांगते हुए अफसरों ने एक प्लेटफार्म की कमी भी बता दी। अफसरों का यह सुझाव पार्टी नेताओं को पसंद आ रहा है। आश्चर्य नहीं कि जल्द ही बीजेपी में रिटायर्ड अफसरों के एक प्रकोष्ठ का गठन कर उसकी कमान सक्रिय पूर्व आईएएस को दे दी जाए।
बुल्डोजर से डर है, सीएम शिवराज सिंह चौहान से नहीं
एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उद्योगों को प्रदेश में निवेश के लिए आमंत्रित करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश में असामाजिक तत्व बुलडोजर से खौफ खाते हैं, इसलिए निवेशक निर्भिक हो कर मध्य प्रदेश में निवेश कर सकते हैं। प्रदेश सरकार की बुलडोजर कार्रवाई से अपराधी डरे या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन अफसर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तीखे तेवर देख कर भी खौफजदा नहीं है।
बीते दिनों समीक्षा बैठकों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तीखे तेवर दिखाई दिए हैं। मुख्यमंत्री ने मंच से अफसरों को निलंबित भी किया है। जनता से दुर्व्यवहार के कारण एसपी झाबुआ और एडीएम इंदौर को सीएम ने तुरंत हटाया। झाबुआ कलेक्टर को भी शिकायतों के चलते हटाया गया। मगर अफसर है कि मुख्यमंत्री के ‘बुलडोजर’ से डरते नहीं है।
अफसरों को सरकार का डर नहीं है, इसके एक नहीं कई उदाहरण है। इंदौर के जिन एडीएम को मुख्यमंत्री ने तुरंत हटाया उन्हें निलंबित भी किया जा चुका है। उनके खिलाफ सरकार को आर्थिक हानी पहुंचाने का मामला भी है। मगर हर शिकायत से ऊपर उनका रसूख कि हर बार सजा के छोटी साबित होती है और वे ज्यादा बड़े पद पर वापसी करते हैं।
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अधिकारियों के न डरने का ताजा मामला टीकमगढ़ जिले का है जहां बीजेपी विधायक राकेश गिरी ने मंच पर ही दो मंत्रियों के सामने असहाय हो कर शिकायत की। विधायक राकेश गिरी गोस्वामी ने कहा कि गरीबों को राशन नहीं दिया जा रहा है, जब इस संबंध में अधिकारियों से बात की जाती है तो वे कहते हैं कि जो करना है कर लेना विधायक हमारा कुछ नहीं उखाड़ सकता है। ऐसी शिकायत किसी एक विधायक की नहीं बल्कि अमूमन हर जन प्रतिनिधि है।
महाकाल लोक का पैसा भी खा गए अधिकारी
जिस महाकाल लोक के सहारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार के कामकाज और प्रदेश की ब्रांडिंग की जा रही है उस महाकाल लोक के निर्माण में भी अधिकारी पैसा खा गए हैं। जी हां, भ्रष्टाचार पर टांग देने की मुख्यमंत्री चौहान की चेतावनी को अफसरों ने सीरियसली नहीं लिया है तभी तो महाकाल लोक में भ्रष्टाचार का शिष्टाचार बेधड़क निभाया गया।
भ्रष्टाचार के ये आरोप शिकायत तक सीमित रहते तो बचाव में कुछ कहा भी जा सकता था, बात शिकायत से आगे निकल गई है। उज्जैन में महाकाल लोक परियोजना में भ्रष्टाचार और घोटाले के मामले में लोकायुक्त ने नोटिस जारी कर दिए हैं।
लोकायुक्त ने उज्जैन कलेक्टर के साथ स्मार्ट सिटी के अध्यक्ष आशीष सिंह, उज्जैन स्मार्ट सिटी के तत्कालीन सीईओ आशीष सिंघल और तत्कालीन निगमायुक्त अंशुल गुप्ता सहित 15 अधिकारियों को नोटिस भेजा गया है। महाकाल लोक कॉरिडोर के निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार की शिकायत के आधार पर जांच के निर्देश दिए गए थे। जांच करने पहुंची टेक्निकल टीम की रिपोर्ट के आधार पर तीन आईएएस अधिकारियों को नोटिस दिया गया है। इन अधिकारियों पर अपने पद का दुरुपयोग कर ठेकेदार को महाकाल लोक के निर्माण में आर्थिक लाभ देने और शासन को हानि पहुंचाने का आरोप है। इस परियोजना में कई रसूखदार नेताओं के नाम भी सामने आए हैं।
यह मामला तो पार्किंग एरिया को लेकर है मगर महाकाल कॉरिडोर में धातु या सीमेंट के बदले प्रतिमाओं एफआरपी (फाइबर रिइंर्फोस्टड प्लास्टिक) मटेरियल का बनाए जाने पर भी आपत्तियां उठाई जा रही हैं। बहरहाल, धर्म के काम में भी भ्रष्टाचार पर कांग्रेस हमलावर हो चुकी है।
नेताओं को शिकायत है कि अफसर नहीं सुनते
प्रदेश में सड़कों की दुर्दशा से ज्यादा बीजेपी नेता अफसरों के अक्खड़ रवैए से परेशान हैं। जनता को होने वाली परेशानी का अहसास करवाने के लिए अफसर को सड़क के गड्ढे में उतारने का आइडिया काम नहीं आया तो ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ने जूते-चप्पल पहनना बंद कर दिया है। उन्होंने सड़कें न बनवा पाने पर शहर की जनता से माफी भी मांगी है। तोमर ने कहा है कि जब तक ग्वालियर के लक्ष्मण तलैया, गेंडेवाली सड़क और जेएएच की रोड चलने लायक नहीं बन जाएंगी, तब तक जूते-चप्पल नहीं पहनेंगे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर के इस निर्णय पर तो प्रशासन को तुरंत एक्टिव हो जाना था। आनन-फानन में सड़क बनना शुरू हो जानी थी मगर ऐसा हुआ नहीं है। ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने जिन सड़कों को बनवाने के लिए जूते-चप्पल त्यागे हैं, अफसरों के मुताबिक उन सड़कों को बनने में कम से कम तीन महीने लगेंगे। ऐसे तो ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर को तीन महीने तक बिना जूते चप्पल के रहना पड़ेगा।
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ग्वालियर ही नहीं भोपाल में भी बीजेपी नेताओं के यही हाल हैं। वे सड़कों को लेकर अपनी ही सरकार में चिट्ठी-चिट्ठी खेल रहे हैं। भोपाल नगर निगम के अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने एक हफ्ते पहले नगर निगम कमिश्नर को पत्र लिख कर गारंटी पीरियड में खराब हुई सड़कों को सुधरवाने के लिए कहा था। इसके अगले दिन महापौर मालती राय ने निगम अधिकारियों को बचाते हुए पीडब्ल्यूडीके चीफ इंजीनयर को सड़कों की मरम्मत के लिए चिट्ठी लिख दी।
अफसरों ने इन नेताओं को टका सा जवाब दे दिया है।
पीडब्ल्यूडी ने निगम की कार्यप्रणाली को ही दोषी करार देते हुए नगर निगम कमिश्नर को चिट्ठी लिख दी। एक नहीं दो पत्र लिख कर पीडब्ल्यूडी अधिकारी ने कहा कि नगर निगम ने सीवेज, पानी और गैस पाइप लाइन डालने के लिए बिना अनुमति सड़कों को खोदा है अत: वही अब सड़कों को सुधारे। दो विभागों के अफसरों में चिट्ठी पत्री का क्रम जारी है और नेता बेबस सड़कों के गढ्डे भरे जाने का इंतजार कर रहे हैं। आखिर अपनी ही सरकार में वे कहें कैसे कि अफसर उनकी सुनते नहीं है।